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किसानों की आत्महत्या और बलात्कार वाला देश कैसा विकास कर रहा है?

कहते हैं हर क्षेत्र में परिवर्तन होने चाहिए क्योंकि क्रान्ति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम है। इसलिए एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरी भी यही कोशिश है कि मैं इन परिवर्तनों को समझूं, जानू और उनके प्रति सबको जागरूक करूं।

यह दौर है, बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे अर्थात् अपनी हर बात सब तक बेझिझक पहुंचाने का। हर लेखक को सच्चाई लिखकर समाज का सही मार्गदर्शन करके विश्व कल्याण में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

सोशल मीडिया ने हर आदमी को अभिव्यक्ति की सच्ची आज़ादी दी है और 21वीं सदी को जिसे विकास की सदी संज्ञा दी जाती है उसका विश्लेषण करने का मौका भी। ऐसे में सोशल मीडिया के इस दौर में हम युवाओं की ज़िम्मेदारी हो जाती है कि हम मुद्दों के बारे में बात करें और साथ ही चर्चा का एक माहौल बनाएं।

रैली कै दौरान युवा, फोटो साभार- Flicker

आज युवा लेखक अच्छा कर रहे हैं

आज युवा लेखक और नए लेखक बहुत बेहतर कर रहे हैं लेकिन मुझे लगता है कि स्थापित लेखक नहीं। तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत विकसित बनकर उभरा है और देश में विकास की गंगा बही है लेकिन हकीकत कुछ यूं है कि इस दौर में किसान आत्महत्याओं और बलात्कार के मामले हद से ज़्यादा सामने आए।

किसानों की स्थिति पर बीते साल हुई कुछ घटनाओं पर आपकी नज़र दौड़ाना चाहूंगा,

जहां तक शिक्षा के बात है तो इस क्षेत्र में भी किसानों-मज़दूरों के बच्चों की अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि कुछ को छोड़कर ज़्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही।

प्राईवेट शिक्षण संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोज़गार और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार हो गई है और युवाओं को सरकार सिर्फ जुमले दे रही है।

खेती में नुकसान झेलते किसान, फोटो साभार: Getty Images

आरक्षण ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा

मेरा मानना है कि भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है, आरक्षित लोग ही नौकरी पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वही लोग हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान मज़दूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है।

भुनाए गएं कुछ मुद्दे

सन् 2014 का आम चुनाव अयोध्या राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर जीता गया लेकिन अभी तक राम मंदिर नहीं बना और ना ही बनने की संभावना है। सन् 2019 का आम चुनाव पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर जीता गया लेकिन देश के अंदर के विवादों को सुलझाने की कोशिश नहीं की जा रही है।

अब धर्म और सीमा सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाना भारत के हित में नहीं है। भारत के हित में है- शिक्षा, पर्यावरण, महिला सुरक्षा, किसान, मज़दूर कल्याण और रोज़गार को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव जीतना और भारत को विकसित भारत बनाने में अपना अतुलनीय योगदान देना।

क्रान्ति से ही आएगा परिर्वतन

अब लगने लगा है कि देश का पतन हो रहा है लेकिन सब चुप बैठे हैं। सबको अपने काम से मतलब है और किसी से कोई लेना-देना नहीं है। मैं जनता से आग्रह करता हूं कि देश को बचाने के लिए  हम सशक्त क्रान्ति करे, तभी हम भी बच पाएंगे।

मोदी सरकार ने देश की ऐतिहासिक इमारत लाल किले समेत अनेक सरकारी कम्पनियों को बेच दिया है और निजीकरण कर दिया है। जागरूक देशवासियों अपना एक ही लक्ष्य बनाओ, क्रान्ति मन, क्रान्ति तन और क्रान्ति ही मेरा जीवन।

देश में दंगे, फोटो साभार- Getty Images

भाषाई भेदभाव बढ़ गए

देश में भाषाई भेदभाव कुछ ज़्यादा ही देखने को मिल रहे हैं। हर ओर हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी का बोलबाला रहा। आज हिन्दी भाषा आधुनिक भारतीय भाषाओं का नेतृत्त्व कर रही है।

हिन्दी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जानेवाली भाषा भी बन गई है फिर भी उसकी जन्मभूमि भारत में ही हिन्दी और उसकी जननी संस्कृत की घोर उपेक्षा की जा रही है।

आज दुनिया के विभिन्न देशों के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है और हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में भारतीय संघ की राजभाषा और देश की सम्पर्क भाषा, कई राज्यों की राजभाषा होने के बावजूद विदेशी भाषा अंग्रेज़ी से मात खाती हुई दिखाई दे रही है, जो हम सबके लिए सोचनीय है।

आजकल हमारे देश में उस अंग्रेज़ी को विकास की भाषा, आधुनिक बुद्धजीवियों और प्रतिभाशालियों की भाषा करार दिया जा रहा है। हर जगह हिन्दी सह अंग्रेज़ी की बदौलत हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी नज़र आ रही है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348  में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में संसद व राज्य विधानमण्डल में विधेयकों और अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा उपबंध होने तक अंग्रेज़ी जारी रहेगी। जब देश की आम जनता को न्याय उसकी मातृभाषा में ही ना सुनाया जाए तो इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है? आखिर कब हमें न्याय अपनी भाषा में मिलेगा?

गाँव-गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल

आज हमारे लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह है कि भारतीय संस्कृति पर नाज़ करने वाली, हिन्दूवादी एवं राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्त्व वाली योगी सरकार प्रदेश के गाँव-गाँव ने अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोल रहे हैं। इसके साथ अगर वे हिंदी माध्यम के स्कूलों की व्यवस्थआ दुरुस्त करती तो ज़्यादा बेहतर होता।

हमारी शिक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त ना होने की वजह से इन गाँवों के सरकारी स्कूलों में हिन्दी माध्यम की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो रही है। ऊपर से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के माता -पिता, किसान या मजदूर हैं, जिन्हें अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। यदि फुर्सत मिले तो ही यह अपने बच्चों की पढ़ाई का जायजा भी ले सकें।

यह किसान और मजदूर कर ही क्या सकते हैं, जो करना है सरकार को करना है। सरकार द्वारा अंग्रेज़ी माध्यम के सरकारी स्कूल खोलकर जनमानस में बेरोज़गारी और कुशिक्षा को बढ़ावा देने की साजिश नज़र आ रही हैं।

स्कूल में बच्चे, फोचो साभार- Getty images

क्षेत्रीय भाषाओं में स्कूल खुलने चाहिए

अंग्रेज़ी माध्यम की जगह सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों वाले माध्यमों में स्कूल खोलने चाहिए ताकि विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त कर सके और मातृभाषा का विकास कर सके।

माननीय मुख्यमंत्री को हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए। तभी हमारी भारतीय संस्कृति की विजयी पताका सारी दुनिया में लहरा सकेगी और भारत देश विकसित देश बन सकेगा।

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