लेखक- जोएल देब बर्मा
आपने चावल के बड़े-बड़े खेत तो देखें ही होंगे लेकिन त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों में ढाल बनाकर चावल की खेती की जाती है। यह पानी का अच्छा वितरण और मिट्टी के उपजाऊपन को संजोकर रखता है।
इसे झूम खेती कहते हैं। त्रिपुरा में रहने वाले आदिवासी लोग झूम की खेती करके निकालते हैं मामीता राइस। इस चावल से वे अपना परंपरागत भोजन बनाते हैं।
यह मामीता राइस समतल खेतों से नहीं, लेकिन झूम की खेती से मिलता है। यह त्रिपुरा का खास चावल है, क्योंकि त्रिपुरा के अलावा इसकी खेती किसी भी और राज्य में नहीं होती है, ऐसा लोगों का कहना है।
यह त्रिपुरा के कुछ गाँवों में मिलता है। इसकी खेती शहरी इलाकों में नहीं होती है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में आप मामीता राइस की खेती नहीं पाएंगे। यह बाज़ार में खरीददारी से ही मिलता है।
बाज़ार में इस राइस को 100 प्रति किलोग्राम के दर पर बेचा जाता है। इसकी महक बहुत ही खुशबूदार होती है और स्वाद भी मज़ेदार होता है। इस राइस को बनाने के लिए बहुत ऊंचे पहाड़ और बहुत बड़ी खाली जगह की ज़रूरत होती है।
माइनिंग और शहरीकरण के कारण पहाड़ और खाली स्थान कम हो रहे हैं। इसलिए त्रिपुरा में भी मामीता राइस की खेती कम होकर कुछ गाँवों में ही सीमित हो गई है।
सबसे पहले इस राइस को 30 मिनट के लिए पानी में छोड़ देते हैं। उसके बाद उसको निकालकर उसमें थोड़ा सा अदरक, नमक और तेल मिलाया जाता है। इनको अच्छे से मिक्स करने के बाद इस राइस को पत्ते के अंदर डाला जाता है।
इससे पता पाउच जैसा बन जाता है फिर इस पत्ते के पाउच को बांस के पतले टुकड़े से अच्छे से बांधा जाता है। इसे बांधने के बाद आपका कच्चा ‘Awang Bangwi’ बन गया। इसे थोड़े से पानी में डालकर पकाया जाता है। इसे पकने में कम-से-कम 1 से 2 घंटे लगते हैं।
इसे पकने में समय जरूर लगता है, लेकिन इसकी खुशबू और स्वाद लोगों की इसे चखने की इच्छा को और बढ़ाती है। तिरपुरा में जो भी यात्री आते हैं, उनका भी यह मनपसंद खाना है।
पकने के बाद भी इसे खाने के लिए इंतज़ार करना पड़ता है। वो कहते हैं ना, इंतज़ार का फल मीठा होता है! इसे गर्म खाने में ज़्यादा स्वाद नहीं आता है लेकिन जब यह ठंडा हो जाए, तो इसका स्वाद और बढ़ जाता है। इस व्यंजन को त्रिपुरा के अलावा बाकी राज्यों में कम देखा जाता है।
लेखक- जोएल देब बर्मा आपने चावल के बड़े-बड़े खेत तो देखें ही होंगे लेकिन त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों में ढाल बनाकर चावल की खेती की जाती है। यह पानी का अच्छा वितरण और मिट्टी के उपजाऊपन को संजोकर रखता है।इसे झूम खेती कहते हैं। त्रिपुरा में रहने वाले आदिवासी लोग झूम की खेती करके निकालते हैं मामीता राइस। इस चावल से वे अपना परंपरागत भोजन बनाते हैं।त्रिपुरा का खास मामीता राइसयह मामीता राइस समतल खेतों से नहीं, लेकिन झूम की खेती से मिलता है। यह त्रिपुरा का खास चावल है, क्योंकि त्रिपुरा के अलावा इसकी खेती किसी भी और राज्य में नहीं होती है, ऐसा लोगों का कहना है।यह त्रिपुरा के कुछ गाँवों में मिलता है। इसकी खेती शहरी इलाकों में नहीं होती है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में आप मामीता राइस की खेती नहीं पाएंगे। यह बाज़ार में खरीददारी से ही मिलता है। बाज़ार में इस राइस को 100 प्रति किलोग्राम के दर पर बेचा जाता है। इसकी महक बहुत ही खुशबूदार होती है और स्वाद भी मज़ेदार होता है। इस राइस को बनाने के लिए बहुत ऊंचे पहाड़ और बहुत बड़ी खाली जगह की ज़रूरत होती है।माइनिंग और शहरीकरण के कारण पहाड़ और खाली स्थान कम हो रहे हैं। इसलिए त्रिपुरा में भी मामीता राइस की खेती कम होकर कुछ गाँवों में ही सीमित हो गई है।….#AdivasiAwaaz #AdivasiLivesMatter #AdivasiFood #IndigenousFood #CountryFoods #DigitalStoryteller #EndangeredFoods #JhumCultivation #Tripura #Khumulwng #TribalFoods #RuralFood #InstaFood #FoodBlog
Posted by Adivasi Lives Matter on Wednesday, March 25, 2020
इसको पकाने का प्रॉसेस भले ही आसान लगे लेकिन यह सबके बस की बात नहीं है। इसे पत्तों में डालने की अलग ही कला होती है। यह देखने में भी बहुत सुंदर और लुभावना दिखता है। अगर अच्छे से पत्तों में नहीं लपेटा गया तो पानी में पकाते वक्त यह पत्तों से निकलकर बिखर सकता है, जो सारा गुड़ गोबर कर देता है।
जब यह ठंडा हो जाता है, तो इसकी मिठास और बढ़ जाती है। खाने के लिए इसके लपेटे पत्तों को खोला जाता है। यह थोड़ा चिपचिपा होता है और खाते समय हाथ में चिपकता है।
त्यौहारों और खास उत्सवों पर यह स्पेशल पकवान होता है। इसे ज़्यादातर बंगाली न्यू ईयर में आदिवासी लोग खाते हैं। गरिया पूजा के समय आदिवासी इसे खाना पसंद करते हैं। मामीता राइस का यह पकवान आदिवासियों में खूब मशहूर है। इसे Debbarma, Reang, Halam, Jamatia और Chakma जनजातियां ज़्यादातर खाते हैं।
इसमें स्वास्थ्य और स्वाद दोनों होता है। पानी में बिना तेल-मसाले के बनने के कारण यह ज़्यादा प्रोसेस्ड नहीं होता और सेहत के लिए अच्छा होता है। इसे खाने से पेट भरा रहता और स्वाद तो इसमें खूब होता ही है। अगर आप कभी त्रिपुरा आते है, तो इसे ज़रूर चख कर देखें, आप भी इसके फैन बन जाओगे!
लेखक के बारे में: जोएल देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। वह अभी BA की पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें गाने और घूमने के शौक के अलावा लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। वह आगे जाकर LLB की पढ़ाई कर वकील बनना चाहते हैं।
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