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बस एक नज़र देखा और इश्क हो गया

आंखों में नींद थी लेकिन हाथ में मोबाइल था। जैसे रोज ही होता था। फेसबुक खोल कर देखने लगा। सामने एक किसी दोस्त की शादी का फ़ोटो था। दो लड़कियां दुल्हन को पकड़े स्टेज की तरफ जा रही थी। वो सीन देखा तो मुझे अपनी जिंदगी के गुजरे हुए कुछ पल याद गए।

बात तब की है जब मैं मसूरी में जॉब किया करता था। मेरे चचेरे भाई की शादी थी। मैं भी बारात गया हुआ था। स्टेज सज गया था। भैया-भाभी का स्टेज पर इंतजार हो रहा था। बैंड बाजे डीजे सब बज रहे थे। एक तरफ लोग खाना खा रहे थे वहीं दूसरी तरफ डांस लेकिन उन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी थे जिनकी निगाह उधर थी जहां से दुल्हन आती है।

मैं भी कुछ दोस्तों के साथ वहीं खड़ा था। वो वक्त आया जब अपनी बड़ी बहन को उसकी दोनों छोटी बहनें पकड़ कर धीरे-धीरे स्टेज की तरफ ला रही थीं। मुझे तब नहीं पता था यह भाभी की बहनें हैं। मैंने एक नज़र भाभी को देखा और दूसरी नजर उनकी दाहिनी तरफ चल रही बहन को और फिर मैं देखता ही रह गया।

बला सी खूबसूरत लग रही थी वो। हर एक लड़के की नज़र उसी पर थी। मगर वो किसी की तरफ भी नहीं देख रही थी। मैंने उसे छुपकर कई बार देखा लेकिन इसका भी पूरा ख्याल रखा कि वो न देखे। खाने का टाइम आया तो मैंने थोड़ा दिमाग लगाया और बोला कि सब साथ खाएंगे। टेबल लग गई। सारी फैमिली बैठ गई थी लेकिन भाभी के साथ उनकी बहन नहीं आई थी।

मैंंने साले साब को बोला कि बहनों को भी भेजो। भाभी अकेली हैं। उसने दोनों बहनों को भेज दिया। उनकी बहन और मैं दोनों बिल्कुल आमने-सामने बैठे थे। इंट्रोडक्शन हुआ सबका तो उसे पता चला कि मैं कौन हूँ? नाम तो मेरा पहले से सुन रखा था लेकिन देखा पहली बार था।

मैंने देखा कि वो मुझे देख रही थी लेकिन मैं बार-बार नज़रें चुरा रहा था। बहन, भाई और भाभी सब बैठे थे। मुझे शक था कि कहीं किसी के दिमाग में गलत न आ जाए इसलिए नजरें चुरा रहा था। तब शायद पहली बार हमारी नज़र आपस में मिली थी। अब अजीब सा अहसास और सिरहन सी दौड़ पड़ी थी पूरे शरीर में।

खाना के बाद रात का पूजापाठ वाला प्रोग्राम शुरू हो गया। कुछ लोगों को छोड़कर सारे सोने के लिए चले गए। मैंने सोचा थोड़ी देर बैठते हैं जहां पूजा चल रही थी। वहीं बैठ गया। थोड़ी देर में वो भी आ गई और जाकर भाभी के पास बैठ गई। मैंने सोचा अगर अब मैं यहां बैठा तो लोग समझेंगे मैं उसे निहार रहा हूं इसलिए वहां से उठा और सोने चला गया।

सुबह नाश्ते की रस्म जिसको कलेवा कहते हैं, वहां पर फिर एक बार दिखी। जूता चोरी वाली रस्म पर वो छोटे भाई से गुस्सा हो गई। तब मुझे उठकर उसे समझाने जाना पड़ा। समझाते वक्त भी मेरी नज़र उससे ठीक से मिल नहीं पा रही थी। मेरे दो शब्द बोलते ही वो शांत हो गई थी। विदाई हुई और मैं वापस मसूरी पहुंच गया। ऑफिस का काम शुरू हो गया। शादी के दो महीने निकल गए थे लेकिन उसकी याद मुझे मुझे बार बार आ रही थी।

एक दिन अचानक मेरा फ़ोन बजा मैंने उठाया तो उधर से आवाज आई पहचाना मुझे? मैं कौन बोल रही हूं? मैं वो आवाज सुनकर बिल्कुल स्तब्ध हो गया। अपने आप मेरे होंठ हिले और उसी का नाम निकला। शायद मेरी वाली स्थिति उसकी भी थी कि मैंने उसे पहचान कैसे लिया और मुझे तो ऐसा लगा जैसे मुझे सबकुछ मिल गया।

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