आज हमारे देश में शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है। शिक्षा के नाम पर घृणा, अज्ञानता और अंधविश्वास फैलाया जा रहा है। सरकार की ओर से जहां तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के बाद भी स्कूल और बच्चों के बीच का फासला बढ़ रहा है। ‘मिड डे मील’ के नाम पर बच्चों को बीमार करने वाला भोजन दिया जा रहा है। शिक्षा के गिरते स्तर के कारण अभिभावकों में भी ऐसी ही मानसिकता विकसित हो गई है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती, जो सही भी है।
हमें यह समझना होगा कि अगर हम अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देंगे तब वह अपनी आने वाली पीढ़ी को कैसे शिक्षित करेगा। यही वजह है कि आज बेरोज़गारों की संख्यां में जबरदस्त इज़ाफा हो रहा है। अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त करने वालों को अच्छी नौकरी भी नहीं मिल पा रही है। आम जनता जिसकी माली हालत बेहद खराब है, वह कुछ भी खरीदने से पहले दस बार सोचता है।
गरीबी के कारण देश में अधिकांश लोग अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं और इस वजह से उन्हें ना सिर्फ आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है बल्कि अपने मनमुताबिक नौकरी नहीं मिलने की वजह से तनाव में भी रहने को मजबूर हैं। आए दिन सड़कों पर छात्रों का धरना प्रदर्शन दिखाई पड़ता है, यह ना सिर्फ भविष्य के उभरते हुए छात्रों के लिए संकट की वजह है, बल्कि सरकारों की नाकामी पर भी करारा तमाचा है।
मौजूदा दौर में कई प्राइवेट विद्दालयों में शिक्षकों का औसत से भी कम वेतन होना चिंता का विषय है। यहां तक कि कई स्कूलों में कम पैसे मिलने की वजह से शिक्षक बाध्य होकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं।
आज का समाज एक ऐसे मुहाने पर आकर खड़ा है जहां मानवीय मुल्य भौतिक लाभ के लिए शून्य हो चूके हैं। हर उत्पादन और सेवा मुनाफे के लिए होता है। शिक्षा और स्वास्थ्य भी लाभ के दायरे में आ चुका है। रोज़गार और रोज़गार के अवसर तो लगभग समाप्त ही होते जा रहे हैं। जनता को जीवन निर्वाह के साधनों से विमुख कर धर्म, जाति, क्षेत्रीयता और व्यक्तिवाद में उलझाया जा रहा है।