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राजा राम पर सवाल उठाने वाले क्या उनकी पूरी कहानी जानते हैं?

यह  कोई और नहीं अयोध्या नरेश भगवान श्री रामचन्द्र हैं, जिन्हें मैं और दुनिया के कई लोग सबसे महान राजा मानते हैं। उनके राज और जनता के प्रति त्याग के कारण ही वह कुछ लोगों के लिए एक काल्पनिक किरदार हैं।

भगवान राम ने अपने माता-पिता खुद चुने

कहा जाता है कि बहुत साल पहले एक बड़े ऋषि प्रजापति सुतापा (राजा दशरथ के पिछले जन्म वाला नाम) और उनकी पत्नी प्रशानी (माता कौशल्या का पिछला जन्म वाला नाम) ने विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उन्होंने हज़ारों वर्षों तक विष्णु से प्रार्थना की।

उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने उनसे उनकी इच्छा पूछी, जिसमें उन्होंने विष्णु के माता-पिता बनने की इच्छा व्यक्त की और भगवान ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें “तथागत” के रूप में तीन बार आशीर्वाद दिया।

भाई के लिए त्यागा राजपाठ

जहां आज के ज़माने में जायदाद के लिए भाई-भाई को मार देता है। वहीं राम अपने पिता, माँ कैकयी और अन्य भाई के लिए 14 वर्ष के लिए वनवास चले गए। वह भी तब जब वह राजा बनने वाले थे। उनके साथ सीता और लक्षमण भी साथ गए थे। साथ ही महाराज भरत राजा होते हुए भी कभी राजगद्दी पर नहीं बैठे। ऐसा इन भाइयों का प्यार था।

क्या राम सच में अपनी बीवी के गुनहगार थे?

जो लोग भगवान राम पर यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि वह सीता को चरित्रहीन मानते थे इसलिए उनकी अग्निपरीक्षा ली और फिर कई सालों बाद उन्हें छोड़ दिया मगर मेरे उनसे चार सवाल हैं और मेरे कुछ जवाब भी हैं-

क्या भगवान राम ने कभी भी अपने मुंह से अपनी पतिव्रता पत्नी को चरित्रहीन कहा था? जवाब है, कभी नहीं, क्योंकि कही इसका ज़िक्र ही नहीं है।

क्या भगवान राम ने सीता के जाने के बाद कभी दूसरा विवाह किया? जवाब है, भगवान राम ने दूसरा विवाह नहीं किया क्योंकि वह वचनबद्ध थे।

क्या आप अग्निपरीक्षा के पीछे की असली कहानी जानते हैं? जवाब है, जिसे रावण उठाकर लेकर गया था, वह असली सीता थी ही नहीं। वह सीता की एक ऑर्चि थी और असली सीता अग्नि देव के पास थी। जिसे वापस बुलाने के लिए नकली सीता को अग्निपरीक्षा देने के लिए बोला गया था।

क्या सीता ने कभी भगवान राम को दोष दिया था? जवाब है, कभी नहीं। यहां तक कि जब धरती माँ भगवान राम से नाराज़ होकर उनकी अयोध्या को हिला दिया था, तब भी सीता ने ही उनको रोका था।

अगर भगवान राम सच में सीता को चरित्रहीन मानते तो लव-कुश को अपनी औलाद के तौर पर कभी नहीं स्वीकारते मगर उन्होंने स्वीकार क्योंकि वह जानते थे कि यह उन्हीं के बच्चे हैं।

जनता ने मज़बूर किया

भगवान राम को उनकी अपनी जनता ने मजबूर किया। एक ऐसी जनता, जिन्हें अपनी ही रानी पर यकीन नहीं था इसलिए गुनहगार तो वह जनता हुई। आप कैसे भगवान राम को दोषी ठहरा सकते हैं, जिन्होंने देवी अहिल्या को श्राप मुक्त किया था।

उनपर यह इल्ज़ाम कैसे लगा सकते हैं कि एक राजा अपनी जनता की सुनता है। क्या वह इसी राजधर्म की बात करते हैं?

राजधर्म बलिदान मांगता है और भगवान राम से राजधर्म ने उनकी पत्नी का बलिदान मांग लिया और सारी ज़िंदगी के लिए उनको वैरागी बना दिया।

भगवान राम की खिली उड़ाना आसान है मगर उनके जैसा बनना मुश्किल। इतिहास गवाह है कि जब भी राजा ने परिवार को राजधर्म से ऊपर रखा है, तब-तब विनाश हुआ है और महाभारत इसका उदाहरण है।

मैं यह नहीं कहता कि सीता को ना चुनकर भगवान राम ने कोई विनाश रोका था या सही किया था बल्कि यह कहता हूं कि राजा के लिए राजधर्म हमेशा परिवार से ऊपर रहा है और रहना भी चाहिए। चाहे मज़बूरी में ही सही राजा को राजधर्म निभाना ही पड़ता है।

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