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“देश के अर्थशास्त्र के बारे में नोबेल विजेता बेनर्जी ने जो कहा वह सच साबित हुआ”

आजकल भारतवासी बहुत उत्साहित हैं क्योंकि फिर एक हिंदुस्तानी को नोबेल पुरस्कार मिलने वाला है और इस बार मिलेगा अमेरिका के मैसेच्यूट्स इंस्टीटूट ऑफ टेक्नोलॉजी के इकोनॉमिक्स विभाग (जहां से RBI के पूर्व गवर्नर और महान अर्थशास्त्री डॉ रघुराम राजन ने पढ़ाई की थी) के प्रोफेसर डॉ अभिजीत बेनर्जी , उनकी पत्नी डॉ एस्थर दुफलो और डॉ माइकल क्रेमर को।

यह पुरस्कार उन्हें अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए मिल रहा है। डॉ बेनर्जी 6वें बंगाली हैं जिनको नोबेल सम्मान मिलने वाला है। भारत में जन्मे और आज अमेरिका के नागरिक डॉ बेनर्जी का जीवन एक स्कॉलर का रहा है। अपनी ज़िंदगी के आधे से भी ज़्यादा साल उन्होंने अर्थशास्त्र को समर्पित कर दिए।

कहते है 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की न्याय नीति का खाखा भी इन्होंने ही बनाया था।

शुरुआती जीवन का परिचय

21 फरवरी 1961 को मुम्बई में जन्मे डॉ बेनर्जी के माता-पिता भी अर्थशात्र में थे। इन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीएससी, दिल्ली को जेएनयू से एम ए और उसी दौरान 1983 जेएनयू के वाईस चांसलर पी एन श्रीवास्तव का विरोध करते हुए जेल भी गए।

उसके बाद अभिजीत ने जेएनयू और फिर अमेरिका के हारवर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की और जिसका विषय ही अर्थशास्त्र यानी इकोनॉमिक्स था। उनकी थीसिस एस्से ऑफ इंफोर्मेशन एकॉनोमिक्स (Essay of Information Economics) था। वे अमेरिका की हारवर्ड और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में भी वो पढ़ा चुके हैं।

उनका काम विकास अर्थशास्त्र पर केंद्रित है। उन्होंने अपनी बीवी एस्तेर दुफलो और अपने साथी प्रोफेसर माइकल क्रेमर, जॉन ए लिस्ट और सेंथिल मुलैनाथन के साथ, अर्थशास्त्र में कारण एवं संबंधों की खोज के लिए एक महत्वपूर्ण पद्धति के रूप में क्षेत्र प्रयोगों का प्रस्ताव दिया है।

एक लेखक के रूप में डॉ अभिजीत बेनर्जी 2005 से लेकर अब तक 7 किताबें लिख चुके हैं। इस साल उन्होंने अ शॉर्ट हिस्टरी ऑफ पोवर्टी मेज़रमेंट्स नाम से एक किताब लिखी है। इसके अलावा कई अखबारों में लेख भी लिखते हैं।

मोदी सरकार के धुर विरोधी

एक हिंदी न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू देते हुए डॉ बेनर्जी ने एनडीए- 2 यानी 2014-19 की मोदी सरकार को यूपीए-3 कहा था क्योंकि यूपीए-2 के राज में देश में काफी मंदी छा गई हैं और नौकरियां भी चली गई थी।

मोदी सरकार की कई नीतियों की आलोचना करने वाले डॉ अभिजीत बनर्जी ने 2016 के नोटबंदी का विरोध किया था। उनका लेख एक वेबसाईट में प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने ने कहा था,

500 और 1000 रुपये के नोटों की कुल हिस्‍सेदारी देश की नकदी में लगभग 86 फीसदी है और 500 और 2000 के नये नोट को जारी करने की प्रक्रिया कई कारणों से प्रभावित होगी।

उन्‍होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जब भारत में लोग ATM मशीनों के बाहर लाइन लगा कर खड़े थे तो मशीनों में 2000 के नोट फिट नहीं आ रहे थे और साथ में उन्होंने यह भी कहा कि 23 दिसंबर 2016 यानी नोटबंदी के डेढ़ महीने बाद भी सर्कुलेशन के लिए ज़रूरी कुल राशि में भारी कमी थी। यानी मोदी सरकार ने जो 2 महीने दिक्कत खत्म होने का वादा किया था, वह भी धरा रह गया।

उन्होंने यह भी कहा था कि इसका सबसे ज़्यादा नुकसान असंगठित क्षेत्र को होगा, जहां भारतीय श्रम क्षेत्र में 85 प्रतिशत या उससे ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। यह बात बाद में सच साबित भी हो गई।

भारत का असंगठित क्षेत्र पहले नोटबन्दी और फिर जीएसटी की वजह से काफी नुकसान में गया बाद में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि भारत में 2017 में बेरोज़गारों की संख्या में वृद्धि हुई है और यह भी कहा गया कि सितंबर 2018 में श्रम भागीदारी दर घटकर 43.2% हो गई है जो सितंबर 2016 में 46 प्लस थी।

फिलहाल इस महान अर्थशास्त्री को अपनी पत्नी के साथ यह पुरस्कार मिलेगा और ये भारत के लिए गर्व की बात है।

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