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“मोदी जी, आपके कदम तो उद्योगपतियों की तरफ सिर्फ उनके विकास के लिए ही आगे बढ़े हैं”

PM Narendra Modi.

आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी,

सादर प्रणाम

हम युवा तो कुशल नहीं हैं, आशा करता हूं कि आप सकुशल ही होंगे। यह पत्र एक घोर निराशा के बीच बैठकर लिख रहा हूं। हम युवाओं की निराशा की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करवाना चाहता हूं।

अभी तक हम युवा बेरोज़गार हैं, क्या करें? बेरोज़गारी का मंज़र कुछ इस तरह की है कि अगर चपरासी के लिए भी कोई आवेदन आता है तो उसके लिए PhD किए हुए छात्र तक आवेदन कर रहे हैं। S.S.C की नौकरी आती है, तो परीक्षा से पहले ही उसके प्रश्नपत्र लीक हो जाते हैं। अगर कुछ नौकरियों के आवेदन आते भी हैं, तो उसकी फीस पांच से दस गुणा तक बढ़ा दी गई है।

आखिरकार बेरोज़गार स्टूडेंट्स इतनी धनराशी कहां से लाएंगे? हमारे माता-पिता हमलोगों को पढ़ाने-लिखाने के लिए अपने बुढ़ापे की सेविंग इसलिए लगा देते हैं ताकि हम कुछ बनकर उनके बुढ़ापे का सहारा बन सकें। अब आप ही बताइए कि ऐसी बेरोज़गारी में जब हम युवा खुद का सहारा नहीं बन सकते तो उन बुज़ुर्गों का सहारा कैसे बनेंगे?

आपने 2 करोड़ रोजगार देने की बात कही थी। कहां हैं वो हमारे 2 करोड़ रोज़गार? मुझे याद है आपने अपने एक भाषण में कहा था कि अगर हिंदुस्तान की सवा सौ करोड़ जनता अगर एक-एक कदम भी आगे की ओर बढ़ेगी तो पूरा देश सवा सौ कदम आगे बढ़ेगा। हमलोगों ने अपने-अपने हिस्से का एक कदम चल लिया मगर आपकी सरकार के एक कदम हमारे लिए बाकी रह गए, बल्कि आपके कदम तो उद्योगपतियों की तरफ सिर्फ उनके विकास के लिए ही आगे बढ़े हैं।

आपने एक बार रोज़गार के बदले पकौड़े तलने का सुझाव दिया था। पकौड़े तलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन बचपन से जो हमने एक उम्मीद के साथ जो सपने देखे आख़िर उन सपनों का क्या करें? क्या उन सपनों का गला घोट दें? अगर हम उन सपनों का गला घोटकर पकौड़े की दुकान खोल भी लेते हैं, तो हमारे उन सपनों का हत्यारा कोन होगा? हम खुद या आप?

हमारा सुझाव बस इतना ही है कि हमारे देश के युवाओं को रोज़गार देकर इस देश को बेहतर देश बना दीजिए, यही आपसे हमसब की अपेक्षा है।

प्रणाम

जय हिंद

अमित कुमार

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