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“मेरे प्रेम विवाह में सारी रुकावटों की जड़ बन रही है हमारी जाति”

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मैं एक 25 साल का युवक हूं। मैंने एक लड़की से प्यार किया है। अभी उसका नाम नहीं लूंगा क्योंकि वह समय अभी नहीं आया है कि उसका नाम दुनिया के सामने खुलकर रख पाऊं। कारण उसकी इज्ज़त और ये समाज है। आज के इस दौर में भी जातिगत समाज का एक आतंक जो फैला हुआ है। आसान नहीं है कि एक व्यक्ति सबकी उपस्थिति में बिना डर के अपने परिवार का साथ हासिल कर सके और अपने अंतरजातीय प्रेम विवाह को संपन्न करा सके।

प्रेम विवाह में सारी समस्याओं की जड़ हो जाती है “जाति”

वैसा ही विवाह करूंगा जैसे एक ही जाति वालों में होती है। यह सोचकर अपनी प्रेमिका के परिवार वालों को अपने मन की बात कह डाली। हम दोनों ने मिलकर यह काम किया। होना क्या था? 4 दिन हुए और उनके घर से इनकार हो गया कि यह नहीं हो पाएगा। कारण पूछने पर जवाब मिला कि आपके समाज में अंतरजातीय विवाह के बाद आपको और आपके परिवार को समाज से अलग कर दिया जाएगा। ऐसी स्थिति में हमारी बेटी कहां खुश रह पाएगी? उसे समाज में आने जाने में प्रतिबंध लगाया जाएगा। इज्ज़त और सम्मान नहीं मिलेगा।

इस तरह की भावनाओं के साथ उन्होंने रिश्ते से साफ इनकार कर दिया। अब सारी समस्याओं की जड़ बन गई यह “जाति”। मैं ओबीसी और मेरी प्रेमिका एससी जातिवर्ग से आते हैं। यह बात केवल मेरी ही नहीं, हर युवक और युवती की है जो अपनी पसंद व इच्छा से अपने परिवार के बीच विवाह करना चाहते हैं लेकिन सामाजिक प्रतिबंधों की वजह से परिवार से विद्रोह करके छिपकर विवाह करते हैं।

चूंकि मेरे माता-पिता मेरी खुशी की खातिर जात-पात से दूर बिना किसी दबाव में आए मेरी अंतरजातीय विवाह के लिए तैयार थे परंतु उसके माता-पिता की परेशानी भी लाज़मी थी।

समाज के प्रबुद्ध लोगों ने कहा कि वो इस कृत्य में भागीदार नहीं बन सकते

शादी न होने का पूरा कारण वह सामाजिक प्रतिबंध था जिससे कि मेरे रिश्ते की डोर जुड़ नहीं पाई। हम दोनों यह चाहते थे कि हम छुपकर नहीं बल्कि माता-पिता के आशीर्वाद से उनकी मौजूदगी में सभी की हंसी-खुशी को शामिल करते हुए विवाह करेंगे। मैंने समाज के कुछ प्रबुद्ध जनों से बात भी की पर उनका कहना है कि इस कृत्य में हम कभी भागीदार नहीं बन सकते।

आप ही बताइए संविधान में कानून बना है लेकिन कानून मान कौन रहा है? आज भी नवविवाहित अंतरजातीय जोड़े अपने परिवार से दूर समाज के नाम पर बेफ़िज़ूल के नियमों को मानने के लिए मजबूर हैं। कारण कौन? वही जातिगत समाज और उसके रूढ़िवादी नियम हैं। क्यों आज भी अंतरजातीय विवाह को घृणा की नज़र से देखा जाता है?

समाज में उन्नति हो गई है यह सोच कर हम चुप बैठ जाते हैं लेकिन आज भी कई लोगों का प्यार यूं ही दम तोड़ देता है, वह भी बस समाज के पुजारियों की वजह से।

मेरी नैया जैसी मझधार में अटकी है वैसी ही कइयों की नैया अटक रही होगी या अटक चुकी होगी। हम उनमें से हैं जो परिवार को भी नहीं छोड़ सकते और प्यार को भी नहीं। जातिगत भेदभाव को मिटाना आसान बिल्कुल नहीं लेकिन कानून बनाकर उसका पालन नहीं करवाना बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। पुलिस प्रशासन तक खबर पहुंचने के बाद भी ऐसी गैर-कानूनी मीटिंग्स नहीं रुकती। गज़ब हालात है कि समाज के लोग बैठक करवाकर दंड देते हैं।

सर्वधर्म समभाव का कानून लागू हो तो समाज में स्नेह बढ़ेगा

साथ ही कई नियम जैसे लड़का अपने पिता की अर्थी नहीं उठाएगा। दोनों दम्पत्ति किसी भी शादी-विवाह या मांगलिक कार्य में नहीं आएंगे। अपने परिवार से दूरी बनाकर रखना आदि। मानो जैसे विवाह नहीं पाप कर दिया हो। ऐसी स्थिति में यहाँ का कानून क्या करता है? बस चुप्पी साधे रहता है। ये समाज के ठेकेदार खुद को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मानकर बैठे हैं। यह नियम बनाने वाले भी खुद जातपात के भेदभाव में शामिल होते हैं।

दरअसल दुनिया को सुधारने हेतु कानून बनाने वाले खुद को सुधार नहीं पा रहे हैं। सरकार बस देख रही है। ऐसे ही मानवाधिकार का उल्लंघन होते देख हर बार पेटिशन का इंतज़ार करते हैं। ऐसे मौके आने ही ना दिया जाए कि किसी को याचिका लगानी पड़े। आप कानून बनाए हो तो पालन करवाओ। समझाकर या डराकर दोनों ही परिस्थिति में कानून की रक्षा होनी चाहिए।

समाज के इन प्रतिबंधों और भेदभाव को हटाकर सर्वधर्म समभाव की बात को कानूनन लागू कर दिया जाए और कड़ाई से पालन को मजबूर किया जाए। ऐसे में अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़े और उनके परिवार पर समाज कोई पाबंदी या प्रतिबंध नहीं लगाएगा। ऐसा होने पर कई दिल टूटने से बचेंगे और कई हत्याएं रुकेंगी। इस तरह से कई नासमझियां भी रुकेंगी। छुपकर होने वाले विवाह रुकेंगे। स्नेह बढ़ेगा और एक ऐसा दौर शुरू होगा जिसमें कोई विशेष समाज या जाति नहीं बल्कि सर्वधर्म समभाव होगा।

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