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कॉमेडी और इमोशन से भरपूर फिल्म है ‘पति पत्नी और वो’

पति, पत्नी और वो

जब कोई पति अपने सर्वगुणी पत्नी के होते हुए दूसरी लड़की पर लट्टू हो जाए, तब ऐसे पुरुष को आप क्या कहिएगा? ऐसा तब जब वह पुरुष उल्टा पत्नी के चरित्र पर ही सवाल खड़े कर दे फिर एक बार वही सवाल कि उस पुरुष को आप क्या कहिएगा, छिछोरा, लुच्चा, लफंगा, बदमाश, बदनियत, बेहया, बेशर्म, बदचलन या कुछ और?

कहने को तो आप कुछ भी कहें मगर हमेशा से कुछ पुरुषों की प्रवृत्ति यही रही है। अपनी बीवी के होते हुए भी वे गैर लड़कियों पर डोरे डालते रहे हैं। इन्हीं हालात को लेकर पहले बीआर चोपड़ा ने 1978 में और अब मुदस्सर अजीज़ ने 2019 में फिल्म बनाई ‘पति पत्नी और वो’।

कहानी की बात

फिल्म की कहानी के अनुसार कानपुर का रहने वाला अभिनव उर्फ चिंटू त्यागी यानी कार्तिक आर्यन पढ़ाई-लिखाई में तेज़ होने के कारण पीडब्ल्यूडी की परीक्षा पास कर लेता है। नौकरी मिलने के बाद वह पूरे धूमधाम से अरेंज मैरेज करता है। वो खुद भी नौकरी करता है और पत्नी वेदिका त्रिपाठी यानी भूमि पेडनेकर भी शिक्षक हैं। पति अपने काम में व्यस्त तो पत्नी अपने काम में लीन।

इसी तरह से तीन साल बीत जाते हैं। रोज़-रोज़ के एक ही काम से ज़िंदगी नीरस हो चुकी है। तभी पति-पत्नी के बीच ‘वो’ यानी तपस्या सिंह बोले (अनन्या पांडे) की एंट्री होती है। ऑफिस की पहली मुलाकात से ही चिंटू त्यागी उस पर फिदा हो जाते हैं। अभिनव यानी चिंटू त्यागी प्लॉट देखने आई तपस्या सिंह के दिल में जगह बनाने हेतु अपनी पत्नी के चरित्र पर गलत सवाल उठाता है। देखते ही देखते वह दिल में जगह बना लेता है। फिर शुरू होता है लुका-छिपी का खेल यानी छिप-छिपकर मुलाकातों का सिलसिला।

लेकिन इस बारे में जब पत्नी को पता चलता है तो वह अपनी राह चली जाती है। फिल्म के अंत में एक ट्विस्ट है जो पूरी फिल्म की कॉमेडी को ही बेहद गंभीर और संदेशात्मक बना देता है। ट्विस्ट क्या है यदि इसे जानने की जिज्ञासा है, तो थिएटर जाइए।

कलाकारों के काम का आंकलन

लीड रोल में कार्तिक आर्यन हैं, जो सादा मिज़ाज के आदमी होने के साथ-साथ बड़े दिल फेंक किस्म के इंसान बने हैं। तपस्या सिंह से पहली मुलाकात में ही वह उस पर लट्टू हो जाते हैं मगर उस लट्टू होने में भी एक अदा छिपी है। वह अदा यह है कि वह बड़ी सादगी से शरमाते हुए तपस्या सिंह से अपनी निकटता बढ़ाते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है कि खूबसूरत लड़की से मिलते ही वह मुंह के बल गिर जाएं। स्क्रिप्ट की मांग के हिसाब से उन्होंने अपने किरदार को उम्दा तरीके से निभाया है।

अचानक खूबसूरत लड़की से मिलने पर एक पुरुष विशेषकर पति का नर्वस हो जाना, अपनी पत्नी से छुप- छुपाकर महिला मित्र से मिलना हो या मौसा के साथ उनका सेंस ऑफ ह्यूमर वाला किरदार सबको उन्होंने तगड़े ढंग से निभाया है। उनकी डायलॉग डिलीवरी, उनका अंदाज़ और टाइमिंग सब लाजवाब है।

पत्नी के रूप में वेदिका त्रिपाठी यानी भूमि पेडनेकर बखूबी जंची हैं। वो अपने जीवन में काफी प्रोग्रेसिव हैं, जो कानपुर से निकलकर दिल्ली जैसे महानगरों की लाइफ जीना चाहती हैं। उनहोंने एक धर्मपत्नी के रूप में अपने धर्म को बखूबी निभाया है। वो अपने पति पर अपना पूरा प्यार लुटाती हैं।

फोन कॉल के माध्यम से अपने पति की हकीकत को जानने का उनका प्रयास दर्शाता है कि उन्हें अपने पति की कितनी परवाह है। वह एक मुखर और आधुनिक पत्नी के रोल को पूरी ईमानदारी से निभाती हैं। उसके लिए शादी से पहले वर्जिनिटी का कोई मसला ही नहीं है। जब पहली बार अभिनव त्यागी पूछता है कि आपके हॉबीज़ क्या-क्या हैं? तो जवाब में वो कहती हैं, “जी हमें सेक्स बहुत पसंद है।”

यानी कि वह एक अबला नारी नहीं है, जो अपने पति के बदचलन हो जाने पर सदा रोती चिल्लाती रहे, बल्कि वो जीवन में हमेशा आगे बढ़ने की पक्षधर रही हैं। वह शादी के बाद भी अपने नाम के पीछे पुराना वाला सरनेम ‘त्रिपाठी’ लगाती हैं ना कि अभिनव त्यागी वाला ‘त्यागी’ सरनेम।

तपस्या सिंह यानी कि अनन्या पांडे को फिल्म में एक खूबसूरत लड़की का रोल दिया गया है, जिसे देखते ही लड़के या पति फिदा हो जाएं। इस भूमिका को उन्होंने बड़े शानदार तरीके से निभाया है। फिल्म के अंत में अनन्या पांडे के किरदार में जो सरप्राइज़ है, वह किसी मेच्योर लड़की का किरदार लगता है, जो अनन्या पांडे जैसी भोली-भाली मासूम लड़की पर थोड़ा कम जंचता है मगर फिर भी ओवरऑल वो अच्छी लगी हैं।

फहीम रिज़वी यानी अपारशक्ति खुराना का इंटरेस्टिंग किरदार है, जो अभिनव त्यागी के लंगोटिया यार हैं। वो अभिनव त्यागी और तपस्या सिंह के बीच की कड़ी हैं। एक लंगोटिया यार का रोल उन पर खूब भाता है। वह हर उस जगह अभिनव को वेदिका से बचाता है, जहां तपस्या सिंह के साथ उसका भांडा फूटने वाला होता है।

उनके द्वारा बोले गए ‘वन लाइनर’ दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर करते हैं। लगता है उनके हिस्से आए सारे संवाद उनकी एक्टिंग पोटेंशियल को देखकर ही लिखे गए हों। मतलब यह कि संवाद और उनके बीच गज़ब की केमिस्ट्री दिखती है।

उनका किरदार इतना मज़ेदार है कि आप उनको हर सीन में देखने की इच्छा रखेंगे। अन्य कलाकारों में नीरज सूद, राजेश शर्मा, केके रैना, नवनी परिहार और सनी सिंह आदि ने भी अपना सौ प्रतिशत दिया है। विशेषकर शुभम कुमार ने अपने राकेश यादव के छोटे मगर इंटरेस्टिंग रोल के ज़रिये गज़ब की छाप छोड़ी है।

निर्देशन की बात

यह फिल्म 1978 में आई बीआर चोपड़ा की ‘पति पत्नी और वो की’ ऑफिशल रिमेक है मगर मुदस्सर अजीज़ ने अभी के हिसाब से उसमें मनोरंजन और मसाला बखूबी डाला है। एक कॉमेडी फिल्म में जो गति चाहिए, वह गति उन्होंने बखूबी अदा की है। उनका स्क्रीनप्ले काफी कसा हुआ है। चिरंतन दास का छायांकन मनमोहक है।

सीन को जिस ढंग से वह इंट्रोड्यूस करते हैं, वह लाजवाब है। सारे दृश्य अच्छे लोकेशन पर फिल्माए गए हैं। निनार खानोलकर और बेहतर संपादन कर सकते थे मगर फिर भी अच्छा है।

गीत-संगीत

सभी गानों में तनिष्क बागची और रोचक कोहली का संगीत काफी पावरफुल है। विशेष तौर पर ‘धीमे-धीमे’ और ‘दिलबरा’ जैसे गानों में संगीत कर्णप्रिय है। हां मगर ‘अंखियों से गोली मारे’ के लिए उनकी थोड़ी बहुत आलोचना की जा सकती है।

खूबियों की बात

फिल्म की खूबी इसका कॉमेडी पंच है, जो कहीं से भी जबरदस्ती की कॉमेडी नहीं लगती है। फिल्म का डायलॉग और “वन लाइनर” काफी प्रभावित करता है। पूरी फिल्म में बैकग्राउंड संगीत काफी धमाकेदार और पॉवरफुल है।

इंटरवल के समय जिस तरह से म्यूज़िक धीरे-धीरे ऊंचा होता है, वह सीन के साथ खूब न्याय करता है। फिल्म के अंत में सरप्राइज़िंग संदेश भी है, जो काफी सामाजिक है। गीत-संगीत भी अच्छा है। ओवरऑल फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करती है।

खामियों की बात

फिल्म सेकंड हाफ में थोड़ी देर के लिए भावनात्मक लगने लगती है, जो अपने कॉमेडी ज़ोनर से भटक जाती है। ‘अंखियों से गोली मारे’ जैसे आइकॉनिक गाने की ऐसी-तैसी कर दी गई है।

अगर उतने हिट गाने को आप रीक्रिएट कर रहे हैं तो उसे उसी स्तर का बनाना चाहिए। अनन्या पांडे को ज्यादा मैच्योर रोल दे दिया गया है जो थोड़ा खलता है। एक-दो डायलॉग को लेकर विवाद हो सकता है।

निर्देशक: मुदस्सर अज़ीज़

कलाकार: कार्तिक आर्यन,भूमि पेडनेकर,अनन्य पांडे,अपारशक्ति खुराना आदि

गीत-संगीत: कुमार,सब्बीर अहमद,रोचक कोहली तनिष्क बागची

रेटिंग- 3.5/5

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