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अपने निश्चित तापमान से चार गुणा अधिक गर्म हो चुकी है पृथ्वी

हमारी धरती के अलावा ब्रह्मांड में कहां पर जीवन संभव है, यह आज भी किसी को पता नहीं है। जिस धरती पर हम रहते हैं, वह भी अपने आप में रहस्य से भरी हुई है।

इसके बारे में कहा जाता है कि यह पहले आग का गोला थी। समय के साथ इस पर कई चीज़ों का निर्माण हुआ। एक समय यह बर्फ से भी ढकी हुई थी। इसी तरह परिवर्तन होते-होते यह जीवन के अनुकूल हुई।

फिर से गर्म हो रही है हमारी धरती

हमारी धरती फिर से गर्म हो रही है और इसमें ग्रीन हाउस गैस एक बड़ी वजह है। वैसे तो ये गैसें धरती पर सही तापमान बनाए रखने के लिए काकी ज़रूरी हैं, क्योंकि अगर ये गैसें नहीं होती तो धरती का तापमान -18 डिग्री C होता।

अब ये प्रकृति के निश्चित तापमान से लगभग चार गुना बढ़ चुकी है।

ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ने की वजह

ये गैसें अपने आप नहीं बढ़ रही हैं। इन गैसों के बढ़ने का कारण मानव का लालच है। ग्रीन हाउस गैस इतनी तेज़ी से बढ़ रही है कि ये मानवीय जीवन के साथ पूरे प्रकृति के लिए खतरा बनते जा रही हैं। इन गैसों के बढ़ने से ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे पृथ्वी अपने सामान्य तापमान से ज़्यादा गर्म हो रही है।

ग्रीन हाउस गैस के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण किसी भी प्रकार के ईंधन का जलना है। इसके अलावा इन गैसों के बढ़ने के कारण मानव की अन्य क्रियाएं भी हैं, जैसे – A.C और फ्रीज़ का उपयोग इत्यादी।

कृषि प्रक्रिया से भी उत्सर्जित हो रही है बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें

इन सबके अलावा मानव जीवन की एक मुख्य क्रिया है, जिससे बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, वो है कृषि।

क्या है ग्रीन हाउस गैस और कृषि प्रक्रिया किस तरह है इसके लिए ज़िम्मेवार

ग्रीन हाउस गैस कई प्रकार के गैसों का सम्मलित रूप होती है, जिसमें मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और क्लोरोफ्लोरोकार्बन हैं।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेटिक चेंज के अनुसार,

यूरोपिय यूनियन एग्रि-एनवार्नमेंटल इंडीकेटर (European Union agri-environmental indicator) के अनुसार,

किस तरह कृषि प्रक्रिया पृथ्वी के लिए नुकसानदेह साबित होने लगी

कृषि की शुरुआत मानव ने अपनी भोजन पूर्ति के लिए की और उसमें यह सहायक भी हुई। इससे कई सभ्यताओं का विकास भी हुआ।

शुरू में तो यह काफी सहायक रही लेकिन बदलती दुनिया के साथ कृषि के तौर-तरीके भी बदले। अब यह ज़्यादातर मशीनों पर आधारित हो गई है। पहले से ज़्यादा अब इसमें रसायनों का प्रयोग होने लगा है।

कुछ संस्थाएं और कुछ लोग कॉरपोरेट फायदे के लिए ग्रीन हाउस गैस की ज़्यादातर गलती कृषि पर ही थोप देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। हां, यह सही है कि कृषि पहले से ज़्यादा विकृत तरीके से हो रही है। इन तरीकों को अपनाने में पूरी गलती किसानों की भी नहीं है। गलती सरकार की तथा कृषि के फायदे से जुड़ी कंपनियों की है, जो अपने फायदे के लिए कृषि में कई प्रकार के हानिकारक वस्तुओं के प्रयोग के लिए किसानों को प्रेरित करते हैं।

उदाहरणस्वरूप –

यह सही है कि पराली जलाने पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से प्रदूषण तो हो रहा है लेकिन क्या इसके लिए किसानों को दोषी ठहरा देना सही होगा। इसमें उन नीति निर्माताओं की गलती है, जिन्होंने भविष्य के बारे में बिना सोचे ही किसानों को पराली जलाने के लिए कहा।

कृषि तो ज़रूरी है, इसके बिना आज के समय में जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं और अगर इसी तरह विकृत रूप से कृषि पद्घति चलती रही, तो भी जीवन नहीं बचेगा।

इससे बढ़िया है कि हम कृषि में कुछ सुधार कर लें। वे सुधार इस तरह है-

1. फसलों में रसायनों का प्रयोग ना करें।
2. कृषि कार्य में मशीनों का प्रयोग कम करें, जिससे कि ईंधन की खपत कम होगी।
3. क्षेत्रीय विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए, खेती के लिए फसल का चुनाव करें। जैसे- सुखे वाले क्षेत्र में धान की खेती ना करें।
4. फसल कटने के बाद खेत में फसल के बचे अवशेष को जलाने की बजाए, इसे खेतों में सड़ाकर जैविक खाद के रूप में प्रयोग करें।
5. नीति निर्माता भी किसानों और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किसी भी नियम को बनाएं
6. जैविक खेती के प्रति लोगों को प्रेरित करें।
7. किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूक करेें।

अगर हम कृषि में कुछ सुधार करते हुए कुछ बेहतर तरीके अपनाएं, तो मानव जीवन के लिए काफी बेहतर होगा। इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी होगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसानों पर तुगलकी फरमान थोप दिए जाएं। कोई भी नीति को बनाते समय पर्यावरण के साथ किसानों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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