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“देश की आंतरिक सुरक्षा में सत्याग्रह एक विफल कोशिश है”

Naxals Menace in Dantewada District police officers patrolling the naxal infested forests at Bijapur near Dantewada. (Photo by Sattish Bate/Hindustan Times via Getty Images)

सत्याग्रह का अर्थ है, सत्य हेतू आग्रह करना अर्थात अपनी सत्य बात विनम्रता समेत सत्ता, सिंघासन, वरिष्ठ व्यक्ति या संस्था के समक्ष आग्रह करना ही सत्याग्रह को परिभाषित करता है।

सत्याग्रह का अर्थ किन्हीं मायनों में याचना नहीं है बल्कि यह सहजता और शालीनता के साथ अपनी बात रखने का वह मार्ग है, जहां हिंसा का कोई स्थान नहीं होता है।

सत्याग्रह के मार्ग को सर्वप्रथम गाँधी ने 19वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों के रक्षण हेतू चुना था। देश की आज़ादी में भी विभिन्न सत्याग्रही आंदोलनों की अपनी उपयोगिता सिद्ध होती है। विभिन्न देशों ने महात्मा गाँधी के सिद्धांतों को हूबहू स्वीकार करने का प्रयास किया गया और उसे स्वीकार भी किया।

सत्याग्रह की रोमांचित करने वाली कहानी

मार्टिन लूथर किंग से लेकर इटली के डैनिलो डोलची के सत्याग्रह की कहानी किसको रोमंचित नहीं करती है। यह सारे प्रयास भले ही सत्याग्रह की कसौटी पर खरे ना उतरते हो परंतु यह शांति और अहिंसा की दिशा में एक कदम अवश्य हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर सत्याग्रह के सकारात्मक परिणाम स्पष्ट दिखाई देते हैं तथा उसकी उपयोगिता भी सिद्ध होती है। विचारणीय यह है कि क्या सत्याग्रह के यही सकारात्मक परिणाम अंतरराष्ट्रीय विषयों पर भी उतने ही प्रभावी रहेंगे, जितने राष्ट्रीय स्तर पर रहे हैं या रहते हैं? इस सम्बन्ध में आचार्य विनोबा भावे ने अपने स्पष्ट विचार दिए हैं, जो चिंतन योग्य है।

आचार्य विनोबा कहते हैं,

मान लीजिए, आक्रमणकारी हमारे गाँव में घुस जाता है, तो मैं कहूंगा कि तुम प्रेम से आओ। हम उनसे मिलने जाएंगे मगर डरेंगे नहीं परंतु वह कोई गलत काम करना चाहते हैं, तो हम उनसे कहेंगे, हम यह बात मान नहीं सकते हैं , चाहे तुम हमें समाप्त कर दो।

उक्त वक्तव्य के आधार पर विनोबा भावे ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्याग्रह आंदोलन गतिमान हो सकता है? यदि हो सकता है, तो उसका स्वरुप क्या होगा? क्या अहिंसा के मार्ग से अंतरराष्ट्रीय विषयों को सुलझाया जा सकता है?

विषय चिंतनीय है क्योंकि यदि आक्रमणकारी हमारे देश की सीमा में प्रवेश करता है, तो क्या हम उस समय उसका प्रतिकार उसकी भाषा में करें या अहिंसा के मार्ग को स्वीकार करें।

सत्याग्रह और वर्तमान परिदृश्य

सत्याग्रह को वर्तमान परिदृश्य से परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है। मैं यह नहीं कहता कि हमें हिंसा का मार्ग अपना लेना चाहिए परन्तु यह निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक है कि सत्याग्रह की सीमाएं क्या है। हमें यह भी निर्धारित करने कि आवश्यकता है कि वर्तमान समय में सत्याग्रह के निर्देशों कि प्रासंगिकता उतनी ही है जितनी पूर्व में थी।

मेरे नज़रिये से, सत्याग्रह, किसी देश की आंतरिक समस्याओं से लड़ने हेतू सशक्त माध्यम हो सकता है परन्तु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्याग्रह आंशिक रूप से असफल सिद्ध होगा।

मैं आंशिक सफल इस मत से कहता हूं कि यदि विषय किसी देश की आंतरिक सुरक्षा व बाह्य सुरक्षा से सम्बंधित है, तब सत्याग्रह पूर्णतः विफल सिद्ध होगा परन्तु जलवायु संकट, पर्यावरण सुरक्षा, जल संरक्षण, अंतरिक्ष अभियान पर सूक्ष्म नियंत्रण, परमाणु बम निर्माण व प्रयोग पर सहमति आदि विषयों पर सत्याग्रह के माध्यम से विश्व को एक बड़े संकट से बचाया जा सकता है।

सत्याग्रह का स्वरूप समझने और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमल लाने की गहन आवश्यकता है क्योंकि इसके बिना सुखद विश्व की संकल्पना सिद्ध नहीं होगी।

 

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