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आर्थिक तंगी से जूझते स्कूल के बच्चे

स्टूडेंट्स

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आज मैं नवाबगंज ब्लॉक के जमदान न्याय पंचायत के आदर्श विद्यालय गंगापुर गुलरिहा जो राबति नदि के किनारे और नेपाल के आउटर सीमा पर है, यहां मैं पिछले 13 माह से जाने का प्लान कर रही थी मगर कभी मेरा, तो सर का दूसरा प्लान ही होता। अकेले मैं यहां नहीं जा सकती, क्योंकि बीच मे 7 किलोमीटर का जंगल और साथ में नो नेटवर्क!

अच्छी बात यह है कि मैं ना सही मगर मेरी बातें जरूर यहां तक आयी हैं। आज जैसे ही मैं इस विद्यालय में पहुंची, अजय सर (संकुल) के साथ, बच्चे बाहर मैदान में कक्षा एक और दो एक साइड, तीन, चार और पांच एक साइड और एक कक्षा मे छ:, सात और आठ के बच्चे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं।

विद्यालय में बाल संसद, पुस्तकालय और नो बैग डे के बारे मे बच्चों से बात कर ही रही थी कि देखा 139 बच्चों मे केवल 8 बच्चों के जूते रखे हुए हैं। बाकी सभी चप्पले हैं। देखकर लगा शायद जूता बंटा नहीं होगा मगर मयंक सर ने बताया कि चाहे कितनी भी ठंडी या गर्मी हो, यहां बच्चे जूते पहनकर ही नहीं आते।

पूछा ऐसा क्यों। क्यों नहीं पहनते हो आप सभी जुते? तो बाल संसद के उप-प्रधानमंत्री ने बोला, “मैडम जी पैर दुखाये लागत है।” दूसरे ने बोला कि बार-बार निकाले के पड़त है और दुर्गेश ने बताया कि काम करे मे दिक्कत होवत है मैडम जी।

मैडम जी ने पूछा, “काम, कैसा काम?” दुर्गेश ने बोला, “ईटा बनावे मे दिक्कत होत है।” इन सारी बातों को सुनकर समझ में आ रहा था कि बच्चों से किस तरीके की बात करने की ज़रूरत है। तो अब शुरू होती है हमारी बिना सिर पैर की बातें! उनकी बातों से ही उनकों समझाना और NO BAG DAY ( शनिवार) का अस्त्र हमारे आज बहुत काम आया क्योंकि खेलना सबको पसंद है। भाई साहब और बिना जूते के हम खेल ही नहीं सकते मैडम जी  साकेथ! तभी आवाज़ आई हां मैडम जी कल से आवेंगे पहन के हमलोग जूता।

5 दिन बाद, 18 दिसंबर 2019

हां भाई लोग, तो बात शुरू करते हैं प्राथमिक विद्यालय गंगापुर गुलरिहा में जाने से। आज यहां ठंड 24 डिग्री सेल्सियस है। यानी अच्छा खासा ठंडा। सिद्धार्थ सर अपने कागज़ी कार्रवाई में लगे हैं, क्योकि सर अर्ली चाइल्ड ट्रेनिंग जो कि बी.आर.सी. पर चल रही है, में ना पहुंच पाए थे जिसकी वजह से BSA सर की तरफ से उनको लेटर आया।

उससे संबंधित ही क्रियाकलाप में लगे हैं। उधर शिक्षामंत्री और प्रधानमंत्री कक्षा एक, दो और तीन के बच्चों को पढ़ाने मे लगे हुए हैं। बाकि बच्चे हिंदी की किताब खोले कहानी पढ़ रहे हैं। तभी नज़र पड़ी जूतों और चप्पलों के रखे हुए स्थान पर, “ओ भाईसाह।”

जूतों की संख्या चप्पलों से ज़्यादा है, 129 उपस्थित बच्चों में 98 बच्चों ने पहना था आज जूता। अच्छा लगा देखकर ये सब, बच्चे भी बहुत उतावले और खुश हैं यह बताने के लिए कि मैडम जी हम जूता पहिने लगे हैं! बाकी बच्चे शांत और सिर नीचे किए हुए बैठे थे मगर कहीं ना कहीं वो कल से पहनने का वादा कर रहे थे, तभी दो-चार बच्चों ने बोल भी दिया बातचीत करने पर ।

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