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“पर्यावरण संरक्षण के लिए मैं बच्चों को सोलर उपकरण बनाना सीखा रहा हूं”

हमारा मानना है कि हम आज एक विकसित दौर में जी रहे हैं। हमारे पास ज़रूरत की तमाम सुविधाएं हैं और ये सुविधाएं घर बैठे-बैठे आसानी से हमें मिल भी जाती हैं। हमारे पास बड़े मकान हैं, बड़ी गाड़ियां हैं लेकिन जब हम अपने घर और कमरों की तरफ ध्यान से देखें तो समझ आएगा कि ये सारी सुविधाएं कुछ ही दिनों की मेहमान हैं।

हमें लगता है कि एक स्विच से सारे विद्युत उपकरण चल रहे हैं और इससे कोई धुआं नहीं हो रहा है, इसके कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं हो रहे हैं, तो यह सोच बिलकुल गलत है। हम यह भूल जाते हैं कि हर एक यूनिट बिजली के लिए 135 किलो कोयले को जलाया जाता है।

हम सब इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हर मिनट पूरे विश्व या भारत में कितना कोयला जल रहा है। इससे होने वाला प्रदूषण कितना ज़्यादा है। दूसरी ओर कोयला एक ऐसा ऊर्जा का स्रोत है, जो आने वाले कुछ ही सालों में खत्म हो जाएगा। फिर जो हम हर दिन इतने सारे उपकरणों का प्रयोग कर रहे हैं, उनका क्या होगा?

बिजली उत्पादन की लंबी और जटिल प्रक्रिया से पर्यावरण को भारी नुकसान

आज एक ओर ऊर्जा की ज़रूरत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, दूसरी ओर हमारे ऊर्जा के मुख्य स्रोत घटते जा रहे हैं, फिर भी आज तापीय ऊर्जा के स्टेशनों की संख्या बढ़ रही है और हम सब जानते हैं कि ये स्टेशन शहरी इलाकों से दूर बनाए जाते हैं, क्योंकि इनके लिए ईंधन और बाकी कच्ची सामग्री शहरों के पास नहीं मिल सकती हैं।

साथ ही इनको बनाने के लिए काफी जगह की ज़रूरत होती है। अब शहर से दूर बने इन स्टेशनों से शहरों तक बिजली तारों द्वारा लाई जाती है इसमें बहुत ज़्यादा विद्युत ऊर्जा की हानि होती है। जहां एक तरह पूरा विश्व प्रदूषण की मार झेल रहा है, जिसमें भारत के दस प्रमुख शहरों में प्रदूषण खतरे के निशान से बहुत आगे बढ़ चुका है, उसमें विद्युत ऊर्जा का इस तरह बनना काफी खतरनाक है।

इसमें हर मिनट कितने ही टन कोयले जल रहे हैं और फिर जो ऊर्जा बनी है उसे भी हानि करते हुए प्रयोग में लाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में प्रति व्यक्ति ऊर्जा का मूल्य बढ़ते जा रहा और प्रदूषण के स्तर में तो बढ़त हो रही है।

वैकल्पिक ऊर्जा के प्रति लोगों को जागरूक करने का मेरा प्रयास

स्कूली बच्चों को सोलर एनर्जी के उपकरण की ट्रेनिंग देते अजय।

मैंने यूथ फॉर इंडिया फेलोशिप के सफर के ज़रिए इस दिशा में लोगों को जागरूक करने का काम किया है। बिहार के समस्तीपुर का गंगानगर टोला, जहां बिजली नहीं थी, ना ही बच्चों की पढ़ाई के लिए, ना ही महिलाओं को खाना बनाने के लिए, वहां मैंने सोलर एनर्जी के बारे में लोगों को बताया।

जब उनसे शुरुआत में मैंने इस दिशा में बात की, तो उनके पास कई सवाल थे। उन्होंने पूछा कि यह सोलर प्लेट बल्ब जला सकता है? मोबाइल चार्ज कर सकता है?

शुरुआत में मैंने गॉंव वालों को एक छोटे से मॉडल के रूप में सारी चीज़ें समझायी, जिसके बाद सारे घरों में इस मॉडल को लगाने के लिए लोगों ने अपने पैसे खर्च किए और इसकी देखरेख का ज़िम्मा भी अपने ऊपर लिया।

ये बदलाव मुझे यह साहस देता है कि अगर समझ और तकनीक को साधारण तरीके से लोगों तक पहुंचाया जाए तो इसका बेहतर तरीके से प्रयोग किया जा सकता है। साथ-ही-साथ ये दीर्घकालीन बदलाव लाते हैं।

मेरा प्रयास है कि पर्यावरण से संबंधित गतिविधियों को किताब से निकालकर ज़मीनी स्तर पर लाया जाए, इससे स्कूलों के साथ-साथ आसपास के समुदाय भी पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर इस दिशा में ज़रूरी कदम उठा सकेंगे।

लोकल संसाधनों के ज़रिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल

स्कूली बच्चों को सोलर एनर्जी के उपकरण की ट्रेनिंग देते अजय।

हम डू ईट योर सेल्फ के तरीके से बच्चों के साथ वर्कशॉप के दौरान लोकल संसाधनों का उपयोग करते हैं। जैसे प्लास्टिक की बोतल या गत्ते की पेटियों का उपयोग करके सौर-ऊर्जा से चलने वाले टेबल लैम्प, टॉर्च, मोबाइल चार्जर, सोलर कुकर, सोलर कार, बायो गैस प्लांट एवं नर्सरी इत्यादि बनाना सिखाते हैं।

अभी तक हमारी टीम देश के 12 राज्यों के 20 ज़िलों में 120 वर्कशॉप आयोजित कर चुकी है, जिनमें बच्चों एवं युवाओं सहित लगभग 2000 लोग शामिल हो चुके हैं।

बच्चों और युवाओं को जागरूक करना ज़रूरी है

आज स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों में अगर इन चीज़ों की समझ नहीं होती है, तो हमारा आने वाला समय और भी भयानक हो सकता है। आज की परिस्थिति यह है कि हमारी मूलभूत ज़रूरत की वस्तुएं हवा, पानी और भोजन भी प्रदूषित होने लगी हैं। अगर हम इस दिशा में कुछ करना चाहते हैं, तो इसमें हमें अपनी भागीदारी को भी समझना होगा और व्यक्तिगत स्तर पर ज़रूरी कदम उठाने होंगे। इसके लिए ज़रूरी है कि आज की पीढ़ी को इन चीज़ों के प्रति जागरूक किया जाए।

सोलर एनर्जी के उपकरण बनाते स्कूली बच्चे।

हमारा मुख्य उद्देश्य बच्चों तथा युवा वर्ग को सोलर ऊर्जा के लाभ से अवगत कराना है। इसकी शुरुआत भले ही छोटे स्तर पर क्यों ना हो। अपने घर में एक छोटे से लैंप से ही इसकी शुरुआत की जा सकती है। एक छोटी सी शुरुआत बेहतर बदलाव ला सकती है। आज पर्यावरण को स्वच्छ रखने की ज़िम्मेदारी हर नागरिक की है कि कैसे हम अपने रोज़ाना के जीवन में पारंपरिक ऊर्जा के प्रयोग में कमी लाते हैं।

इस दिशा में मैं और मेरी टीम अलग-अलग जगहों पर वर्कशॉप के ज़रिए आने वाले समय में पर्यावरणीय समस्याओं से लड़ने के लिए स्कूली बच्चों को तैयार कर रही है। साथ ही पर्यावरण से संबंधित गतिविधियों को किताब से निकालकर ज़मीन पर उताराने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि स्कूल के साथ-साथ आसपास के समुदाय भी पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर इस दिशा में अपना कदम बढ़ा सकें। साथ-ही-साथ अपने लोकल सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चत करना है।

भौतिकवाद के इस युग में पर्यावरण संरक्षण के लिए केवल एक दिन ही काफी नहीं है, इसके लिए सालभर हमें पर्यावरण सरंक्षण के प्रति जागरूक रहना होगा। साथ ही हमें अपने-अपने स्तर पर छोटी-सी-छोटी पहल करनी होगी, तभी इस गंभीर चुनौती से निपटा जा सकता है।

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