बॉलीवुड के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी ने डिप्रेशन और बॉलीवुड में नेपोटिज्म की चर्चा को लोगों के जुबान पर ला दिया था। एक टैलेंटेड और हंसता-खेलता सितारा ज़िंदगी और बॉलीवुड के गंदे सिस्टम से हारकर दुनिया को अलविदा कह गया।
आपको बाहर से चकाचौंध रोशनी में दिखने वाले सतरंगी बॉलीवुड में ऐसा लगता है कि सब वहां करोड़ों में खेलते हैं मगर ऐसा नहीं है, उसके कुछ ऐसे घिनौने पहलू भी हैं जिन्हें जानकर आपको बॉलीवुड शब्द से घिन आने लगेगी।
बॉलीवुड में रोज एक-दूसरे को रास्ते से हटाने का काम होता है, जहां बिना सरनेम और टैलेंटेड कलाकारों को बौना दिखाया जाता है तो वहीं नेपोटिज़्म के बल पर कुछ लोग ऐशो आराम की जीवन बिताते हैं। बॉलीवुड का नेपोटिज़्म से रिश्ता कुछ ऐसा है जैसे चोली का दामन से,टीवी का रिमोट से और नेताओं का नोट से।
यहां पर यदि आप किसी बड़ी बाप की औलाद हैं तो ही आपको इज़्ज़त और काम मिलेगा नहीं तो फ्लॉप साबित करके रास्ते से हटा दिया जाएगा,अगर आपके नाम में भारी-भरकम सरनेम है तो आपकी बल्ले बल्ले नहीं तो आप अपना रास्ता देख लीजिए।
यहां पर कुछ लोगों को मौका दे देकर तो बूढा कर दिया जाता है और कुछ लोगों को मौका देने के नाम पर उनके साथ घिनौना खेल खेला जाता है, अगर आपका नाम बड़ा है तो आपका चुटकियों में प्रमोशन हो जाएगा और अगर नाम छोटा तो कब आपकी फ़िल्म रिलीज़ हो गयी किसी को पता भी नहीं चलेगा।
कोई पार्टी हो या फिर अवार्ड सेरेमनी बुलाया केवल उसी को जाएगा जो नेपोटिज़्म के फ्रेम में फिट बैठता हो भले ही वो कितने भी फ्लॉप हुए क्यों ना हो, उनको उनके अपने माता-पिता के साथ पहली पंक्ति में ही जगह मिलेगी। अगर कोई एक उनके परिवार से चल निकला तो फिर सात पुश्तों को आराम ही आराम अगर आपके नाम के पीछे कोई सरनेम है तो मीडिया आपको शुरू में ही स्टार घोषित कर देगी।
कल वो यहाँ नजर आए, आज वो वहां नजर आए और उसी इंडस्ट्री में अन्य लोगों के बच्चे भी रोज बाहर निकलते हैं लेकिन मीडिया का कैमरा ढूंढता सिर्फ स्टार किड्स को ही ढूंढता है।
यहाँ अगर आपके पास काम,नाम और शोहरत है तो मीडिया का कैमरा आपके पीछे-पीछे भागेगा और अगर आपके पास नाम,शोहरत नहीं है तो आप मर भी जाएं तो अखबारों में एक हैडलाइन भी नहीं बनेगी। यहां पर एक ही परिवार के लोग फ़िल्म में राइटर,प्रोड्यूसर,एक्टर होते हैं और आप हैं जो नेपोटिज़्म के पीछे पड़े हैं।
नेपोटिज़्म का एक शख्स तो इतना माहिर खिलाड़ी है कि वो आपको काम भी तभी देगा जब आप स्टार हों वरना क्या मजाल वो आपका फोन भी उठा लें, वो फ़िल्म से लेकर हर जगह अपनी ही दुकान चलाते हैं।
फ़िल्म बनाएंगे करण साहब, हीरोइन होंगी अनन्या और आलिया मैडम स्ट्रीम होगी अमेज़न पर,फ़िल्मफ़ेअर को अमेज़न होस्ट करेगा तो अवार्ड क्या छिछोरे,सुपर 30 और आर्टिकल 15 को मिलेगा ? आप भी कितने भोले हैं ना अब इससे ज्यादा भी खोलकर बताऊं क्या?
यहाँ पर अवार्डों की एक मंडी सजती है जहाँ पर कुछ ही लोगों को भर भरकर अवार्ड दे दिया जाता है आपकी फिल्में कितनी ही अच्छी क्यों न हो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
बॉलीवुड बाहर से खूबसूरत सा दिखने वाला एक गन्दा दलदल
यहां पर अच्छा काम करने वाले बूढ़े हो गए मगर उनके नसीब में एक अदद बड़ी फिल्में आई नहीं, उन्हें कोई जानता ही नहीं और आज वो केवल वेब सीरीज तक सीमित हैं। बस उनका कसूर यह है कि उनके नाम के पीछे कोई सरनेम नहीं जुड़ा है इन सबके खिलाफ जब कोई आवाज़ उठाता है तो उसे हर तरह से पागल और फ्लॉप घोषित कर रास्ते से हटा दिया जाता है।
ऐसा नहीं है कि नेपोटिज़्म के बल पर उभरे सारे लोग फ्लॉप है मगर यहां पर शह-मात का ऐसा खेल चलता है कि उसे भी एक-आधा अवार्ड भी नहीं दिया जाता है। हमारे दर्शक भी कुछ लोगों को हिट दे देकर अपने सिर पर इतना चढ़ा चुके हैं कि वो अपने आपको बॉलीवुड का दादा समझते हैं। अच्छे फिल्मों की रिलीज़ डेट लोगों को याद नहीं रहती और ऐरे-गैरे फिल्मों पर 150-200 करोड़ लुटा देते हैं।
नेपोटिज़्म के ब्रांड अम्बेसडर महानुभावों के तर्क यह हैं कि हम डेमोक्रेसी में रहते हैं और लोग जिसको सपोर्ट कर दे वही हिट है पर बात मौके की आती है, जिसका नाम है उसे मौके पे मौका दिया जाता है और जिसका नाम नहीं है उससे फिल्में छीन ली जाती हैं।
बाहर से जन्नत सी दिखने वाली सिनेमाई दुनिया वास्तव में कुछ ही लोगों के लिए जन्नत है बाकी के लिए तो किसी दलदल से कम नहीं जो उसी में फंसकर खत्म हो जाते हैं। यहाँ जब जिंदा रहोगे तो कोई खबर तक नहीं लेगा और जब मर जाओगे तो लोग ट्विटर पर संवेदना जताएंगे, हम तो इतना ही कहेंगे कि इससे पहले कोई और दूसरा सुशांत सिंह जैसा कदम उठा ले दर्शकों को ही जग जाना चाहिए और टैलेंटेड लोगों को सपोर्ट करना चाहिए।
Youth Ki Awaaz के बेहतरीन लेख हर हफ्ते ईमेल के ज़रिए पाने के लिए रजिस्टर करें