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तांडव: अभिव्यक्ति की आज़ादी या वैचारिकता का टकराव?

ज़ीशान अयूब मोहम्मद

समाज में सिनेमा का अपना एक विशेष स्थान है  ‘ जो एक बेहतर संचार एवं मनोरंजन का माध्यम होने के साथ- साथ समाज की संस्कृति, उसमें रहने वाले लोगों के आचार-विचार एवं उसमें घटित घटनाओं को लोगों के समक्ष रखने का काम करता है।

लेकिन सिनेमा के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज एवं उसमें रहने वाले लोगों के मन मस्तिष्क पर कुछ सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव जरुर पड़ते हैं | कोरोनाकाल के दौरान पूरे देश में पूर्ण लॉक डाउन के कारण सार्वजनिक स्थानों (सिनेमाघरों, बाजार, विश्वविद्यालयों, विद्यालयों, आदि।) एवं आवागमन पर पूर्ण प्रतिबंध रहा, जिसके चलते ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर तमाम फ़िल्में देखने को मिलीं। जिनमें से कुछ सामाजिक संवेदनशील मुद्दों एवं सत्य घटनाओं से प्रेरित थीं साथ ही कुछ फ़िल्में एवं वेब सीरीज़ तमाम आपत्तिजनक शब्दों और भड़काऊ कंटेट से युक्त थीं।  जो कि समाज व निश्चित समुदाय को प्रभावित भी कर सकते है।

अभी हाल ही में अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई वेब सीरीज़ “तांडव” पूरे देश, दैनिक अख़बारों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एवं राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है, जिसका निर्देशन अली अब्बास जफर ने किया है, जो कि पूर्व में अभिनेता सलमान खान  के साथ  ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुल्तान’ जैसी सुपरहिट फिल्में बना चुके हैं।

तांडव क्या है,और इसका विरोध क्यों हो रहा है

इस सीरीज़ में सैफ अली खान, डिम्पल कपाड़िया, मोहम्मद जीशान अयूब, सुनील ग्रोवर और कृतिका कामरा जैसे कलाकार शामिल हैं | यह सीरीज़ विश्वविद्यालयों की छात्र राजनीति, छात्र गतिविधियाँ, उनसे जुड़े मुद्दे,उनकी विचारधाराओं और देश की मुख्य धारा की राजनीति को दर्शाते हुए कई बिंदुओ पर कटाक्ष करती हुई नजर आती है।

पहली नजर में यह सीरीज़ किसी निश्चित दिशागति एवं देश की तत्कालीन स्थिति -परिस्थितियों को प्रदर्शित करने के बजाय लेफ्ट और राइट विंग की आपसी वैचारिक मतभेदों को दिखाती हुई नजर आ रही है | इस सीरीज़ का कंटेंट और कई ढेर सारे दृश्य व संवाद विवाद के कारण बने हुए हैं। जो कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगातार शेयर किए जा रहे हैं और उन पर लोग अपना विरोध दर्ज कर रहे है | कई संस्थाओं एवं लोगों ने इस सीरीज़ को बॉयकॉट करने एवं इस पर रोक लगाने की भी मुहिम चालू कर दी है। ट्विटर पर ‘ तांडव (Tandav)  #BanTandavNow ट्रेंड कर रहा है।

सोशल मीडिया  प्लेटफॉर्म्स पर इस सीरीज़ का एक दृश्य वायरल हो रहा है, जिसमें वीएनयू में हो रहे एक प्ले में मोहम्मद जीशान अयूब भगवान शिव की भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। जिसे बड़े मजाकिया अंदाज में पेश किया गया है। इस सीरीज़ के एक दृश्य संवाद में  पात्रों द्वारा भगवान राम और शंकर का मजाक उड़ाते हुए “व्हाट द फ़क” जैसे असभ्य शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, जिसे बीप कर दिखाया गया है। ऐसे में सीरीज़ निर्देशक एवं निर्माताओं के जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने को लेकर लोग “तांडव” का विरोध कर रहे हैं।

आख़िरकार तांडव में क्या हैं विवादित तथ्य

वहीं इस सीरीज़ के एक दृश्य में एक विशेष समुदाय पर जाति सूचक टिपण्णी करते हुए दिखाया गया है | जिसमें अभिनेता तिग्मांशु धूलिया एक प्रधानमंत्री की भूमिका में हैं, जो अपने एक राजनैतिक साथी (अनूप सोनी) को जातिगत भावना के तहत अपनी श्रेष्ठता साबित करते हुए उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।

इस संवाद में कहा गया है कि अबे! हम लोगो ने तुम लोगो पर लाखों साल अत्याचार किए है, इसलिए तुम लोगो को आरक्षण की लाठी मिल गई वरना तुम्हारी इतनी औक़ात कहाँ की तुम हमारे बराबर बैठ कर बात करो।

इस सीरीज़ के एक और दृश्य में  एक पुरुष एवं एक महिला के रिलेशनशिप को भी जातीय आधार पर प्रस्तुत किया गया है, जो कि निश्चित तौर पर एक जाति समुदाय को अपमानित और उन्हें भड़काने का काम कर रहा है।

इस सीरीज़ में ऐसे कई दृश्य हैं जिन में प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से कई राजनैतिक हस्तियों पर कटाक्ष किये गये हैं,जो  निंदनीय हैं | ऐसा इसलिए नही कि इस में किसी का विरोध करने की कोशिश की गयी है बल्कि आपत्ति इस बात से होनी चाहिए कि इसमें प्रत्यक्ष रूप से देश के दो पूर्व महान राजनैतिक हस्तियों का नाम लेते हुए उसे मजाकिया स्तर पर परोसा गया है।

सीरीज़ में कहीं न कहीं निर्देशक कई मुद्दों पर अपना पक्ष रखने के बहाने विशेष जाति-समुदाय, धर्म और नामचीन हस्तियों पर निशाना साधते हुए, किसी व्यक्ति विशेष और विचारधारा की लड़ाई को सामने रखता नजर आ रहा है।

फ़िल्म कई मायनों में कंटेंट और निर्देशन को लेकर इसलिए भी असफल नजर आती है क्योंकि इसके कई किरदार  आपातकालीन  परिस्थितियों में खुद पर अटल नजर नहीं आते है।

हालांकि यह पहला मौक़ा नहीं है,जब किसी जाति  विशेष समुदाय व धर्म को लेकर कोई विवादित बयान दिया गया हो या उनका मज़ाक बनाया गया हो। इससे पहले भी कई मौकों पर हिन्दी सिनेमा में इस तरह के कंटेंट परोसे गए हैं जिनका आमजनमानस के द्वारा विरोध भी हुआ है। वहीं कुछ लोगों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर उनका समर्थन भी किया।

सवाल अब यह उठता है कि इस तरह बार-बार अनुसूचित व पिछड़ी जाति और किसी धर्म विशेष पर गंदे कमेंट करना, मज़ाक बनाना कहाँ तक उचित है?

एक पल को यह मान भी लिया जाये  कि तांडव के पहले एपिसोड में जीशान के हाथों में त्रिशूल, चेहरे पर होली क्रास बनाए हुए, भगवान शिव का किरदार प्रस्तुत करना और हिंदू देवी देवताओ का मजाक उड़ाना कोई बड़ी बात नही है तो कल्पना करें कि त्रिशूल की जगह किसी अन्य धर्मो के ग्रन्थ या किसी उनके पवित्र प्रतीक चिन्हों को रखते हुए, इस तरह का मज़ाक और अभद्रता कहाँ तक स्वीकार्य होगा। ” 

वही ऐसे कितने मौके रहें है जब हिन्दू धर्म के अलावा किसी और धर्म विशेष पर टिप्पणी  करने की हिम्मत किसी निर्देशक ने की है। अगर आप वास्तव में आधुनिकता, कला और विज्ञान की बातें करते हुए सभी धर्मों, जातियों और अपनी भावना के साथ इस तरह के खिलवाड़ को बर्दाश्त कर लेते हैं और आपको उस पर कोई आपत्ति नहीं होती है तो इसे भी स्वीकार किया जा सकता है, अन्यथा यह भड़काऊ कंटेंट और वैचारिक भड़ास से ज्यादा कुछ नही है, जिसे बर्दाश्त नही किया जाना चाहिए।

कुल मिलाकर देखा जाय तो तांडव वेब सीरीज़ राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद अपनाने की एक साधारण कहानी है, जिसे विशेष बनाने की एक असफल कोशिश की गयी है । मगर सैफ अली खान, तिग्मांशु धूलिया जैसे बड़े स्टार कास्ट  और भव्य दृश्यों जैसे तमाम मसालों के बावजूद भी यह  सीरीज सियासत की उस गहराई में नहीं उतर पाती और फीकी दिखाई देती है।

तांडव की पृष्ठभूमि

कुछ दृश्य एवं दमदार संवाद तांडव को एक सही मायनों में  पॉलिटिकल थ्रिलर की कहानी बनाते हैं । इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि तांडव में दो विचारधाराओं के ट्रैक समानांतर चलते हैं, जो कहीं-कहीं एक-दूसरे से टकराते भी हैं। एक ट्रैक छात्र राजनीति का है और दूसरा मुख्य धारा की सियासत का। इसमें कई नजरियों से अलग अलग पहलुओं को राजनीति के बहाने जोड़ने की कोशिश की गयी है जो दर्शकों को बांधे रखने में विफल रहती है। इसमें कहानी के नाम पर वैचारिक मतभेद को साधने की कोशिश की गयी है।

तांडव में सैफ अली खान, डिंपल कपाड़िया, सुनील ग्रोवर, तिग्मांशु धूलिया, डिनो मोरिया, कुमुद मिश्रा, मोहम्मद जीशान अय्यूब, गौहर खान और कृतिका कामरा जैसे बेहतरीन कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया है। हालांकि सीरीज़ में अभिनय की तारीफ होनी चाहिए, ख़ास तौर पर डिंपल कपाड़िया और सुनील ग्रोवर ने अपने संजीदगी भरे अभिनय से दर्शकों को बेहद प्रभावित किया है | सुनील ग्रोवर को एक कॉमेडियन से इतर एक चालबाज और कड़क अवतार में देखना वास्तव में दर्शकों को उनकी तारीफ़ के लिए मजबूर करता है।

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