कौन खतरे में है? मैं, आप या पूरी एक कौम या शायद कोई भी नहीं या शायद वह जो इस डर का व्यापार करते हैं। शायद पूरा देश खतरे में है या सच में ऐसा कुछ भी नहीं है, हमारा सिर्फ असल मुद्दों से ध्यान हटाया जा रहा है।
मैं, आप या जो भी कोई यह पढ़ रहा है, वह इस देश में आज़ादी से घूम सकता है सिवाय पूरे देश में सिर्फ एक हिस्से के। खैर, वह मुद्दा ही अलग है। हम पूरे देश में सर उठा कर इज़्ज़त के साथ, बिना किसी खतरे के, आज़ादी से कहीं भी घूम सकते हैं। क्योंकि हम में से कोई भी खतरे में नहीं है ना कभी था।
धर्म खतरे में नहीं है
लोग लड़ते है धर्म कि नाम पर की धर्म खतरे में है लेकिन ऐसा कभी था ही नहीं। खासकर एक ऐसे लोकतंत्र में जहां सब धर्मों को हमेशा से समान रूप से इज़्ज़त मिलती आयी है। जहां का कानून इस देश को एक धर्म निरपेक्ष के तौर पर पर देखता है लेकिन फिर भी लोग बोलते हैं कि धर्म खतरे में है।
ऐसा नहीं है। ना हिन्दू खतरे में है, ना मुसलमान और ना ही कोई अल्पसंख्यक खतरे में है। अगर हिन्दू खतरे में होते तो डच, पोर्तगेज़, अफगान और अंग्रेज़ो के आक्रमण के बाद हिन्दू और हिंदुत्व एक अल्प्संख्यक के रूप में भारत में रह जाता लेकिन ऐसा नहीं है और यह हम सब जानते हैं। फिर भी आज हमें यह जताया जा रहा है, डराया जा रहा है, चेताया जा रहा है।
सोचने वाली बात यह है कि ऐसा सिर्फ एक धर्म के साथ नहीं हो रहा है बल्कि दूसरे के साथ भी ऐसा ही होता रहा है, जो कि सरासर गलत है।हमारी आंखों के सामने धर्म की पट्टी कभी-कभी हमें अंधा कर देती है लेकिन इस लड़ाई, बुराई और हिंसा से क्या होता है? हमे क्या मिलता है?
अपनों की ढेर भर लाशें और कुछ सांतवनाएं।
इन सब में मुआवज़ा तो नहीं मिलता लेकिन नफरत और बढ़ जाती है। कभी आपने सोचा है कि जब सबका नुकसान हो रहा है तो लोग यह सब करते क्यों हैं? क्योंकि किसी को फायदा भी हो रहा है।
इस नफरत से किसको हो रहा है फायदा?
फायदा हो रहा है उन हुर्रियत नेताओं का और उन आग लगाने वालों का जो खुद तो इस आग पर रोटी सेंकते है लेकिन उन्हीं की वजह से कई घरों के चूल्हे बुझ जाते हैं। यह सब अच्छा कमाते हैं और हम बेरोज़गार हो जाते हैं, इनके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे होते हैं और हमारे बच्चे जाहिल हो जाते हैं। इन लड़ाइयों में हम सब कुछ खो देते हैं लेकिन इनका व्यापार चलता रहता है।
सबके अंदर के डर का व्यापार यही लोग करते हैं और फायदा भी इन्हें ही होता है और हम इनके कहने पर लड़ जाते हैं।
इन लड़ाइयों में कितनों ने अपनी जानें गवाईं और कितनों के परिवार बर्बाद हो गए ना सिर्फ एक धर्म के बल्कि दोनों धर्म के। एक पक्ष कहता है कि उनका धार्मिक स्थल उस जगह नहीं बन सकता क्योंकि वह जगह दूषित हो चुकी है।
मैं अपनी निजी राय में यह कहना चाहूंगा कि जिस मंदिर के लिए निर्दोषों का खून बहा हो और हज़ारों की ज़िंदगियां और परिवार उजड़ गए हों, उस के बाद बने मंदिर में भगवान कैसे विराजेंगे?
देश में कोई अराजकता का, डर का माहौल नहीं है। यह सिर्फ कुछ लोग पैदा कर रहे हैं जिन्हें इससे फायदा होता है। वरना क्या वह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान मंदिर चाहेंगे, जो माँ-पिता के एक वचन के लिए पूरा राज-पाट छोड़ कर चले आये। हमें बचपन से ना लड़ने, सभी धर्मों और व्यक्तियों की इज़्ज़त करना सिखाया गया है। फिर क्यों हम इतने बड़े हो चले है कि वह बचपन की सच्ची सीख एक पल में भूल जाते हैं और निकल पड़ते हैं लड़ने के लिए|
हमारी आपसी लड़ाई आंतरिक सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा
हमारा आपस में लड़ना ही देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हमें लड़ाया जाता है ताकि हम असली मुद्दों से भटक जाएं। वरना बाकी सारी परेशानियां तो अब भी हैं। किसी भी सरकार के खिलाफ होना या विरोधी होना देशविरोधी होना नहीं होता है। खासकर लोकतंत्र में।
यह लोकतंत्र हमें सवाल करने, जवाब मांगने और बोलने की आज़ादी देता है। फिर आज क्यों ऐसा करने पर देशविरोधी बोलकर पड़ोसी देश जाने का बोल दिया जाता है? अरे, आप वहां के ट्रेवल एजेंट है या टूरिज़्म एम्बेसेडर जो सबको वहां जाने को बोल देते हैं।
देश में आज भी कई मुद्दे हैं चाहे वह ग्लोबल हंगर इंडेक्स का हो, इकॉनमी का गिरना हो, नौकरी की कमी हो या बढ़ते अपराध लेकिन कोई इनपर बहस करे तो अच्छा होगा। कम से कम कोई सोच तो रहा है कि मंदिर के अलावा भी एक देश है और उसमें जो लोग रहते हैं वे आस लगाए बैठे हैं कि अब तो कुछ होगा।
दिखावे से सिर्फ दिखता अच्छा है लेकिन असर वही होता है। इसलिए दिखावे या आरोप-प्रत्यारोप के खेल से बाहर आकर देखें। उससे आपको अपना देश भी दिखेगा जिसमें लोगों को एक साथ रहना है। जिसका सपना हमारे स्वतन्त्रता सैनानियों ने देखा था (उन पर लेख फिर कभी )।
कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि मैं भगवान हूं, मेरी पूजा करो। बल्कि वह यह बताता है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म होता है और धर्म के नाम पर लड़ने वालों ने खुद कभी उन पवित्र शब्दों का असली अर्थ नहीं समझा होगा, जो उनकी पवित्र किताब में लिखे हैं।
वे बस अपने धर्म को बाकियों से बेहतर बताने लग जाते हैं। मगर मदद के समय कोई धर्म नहीं इंसानियत ही काम आती है और उससे बड़ा कोई धर्म नहीं होता और माता पिता से बड़ा कोई भगवान नहीं होता |