Site icon Youth Ki Awaaz

“शारीरिक तौर पर अक्षम होने के कारण शादी के दिन रिश्ता तोड़ दिया गया”

प्रतीकात्मक तस्वीर- फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर- फोटो साभार- Flickr

बात 24 नवंबर की शाम की है। मिश्रा जी के घर पर उनके एकलौते पुत्र अमित के लगन के अवसर पर मेरा फोटोग्राफी शूट था। अमित की 14 अक्टूबर को रिंग सेरेमनी का शूट भी मैंने ही किया था, जिसे शूट करने हम शहर से दूर गए थे।

इस दौरान अमित से सम्बन्ध दोस्ताना हो गए। बड़ा ही मज़ेदार लड़का है अमित, व्यक्तित्व भी शानदार उस पर से एकदम हट्टा-कट्टा। लड़की के हिसाब से सब कुछ परफेक्ट था।

लगन का दिन

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मिश्रा जी का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। गीत गाए जा रहे थे, खाना-पीना चल रहा था और सब कुछ एकदम परफेक्ट था। मिश्रा जी के मुख पर तो अलग ही तेज था। वहीं, दरवाज़े पर खड़ी नई नवेली स्विफ्ट डिज़ायर तो आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी।

अमित की बहन बार-बार इठलाते हुए गाड़ी के करीब आकर बोलती भइया प्लीज़ एक फोटो! फिर क्या मैंने भी उसकी 4-6 एंगल से फोटो ले ली। बहुत खुश थी वह और हो भी क्यों नहीं? आखिर दो दिनों बाद उसकी भाभी को जो आना था।

इतने में ही मेरी नज़र अमित की माँ पर पड़ी जो बहुत सारे गहनों से लदी खड़ी थीं और इंतज़ार कर रही थीं कि कब लड़की वाले आएंगे। समय अपनी रफ्तार से गुज़र रहा था और लड़की वालों का कोई पता नहीं चल रहा था कि वे कहां हैं?

तभी अचानक से एक के बाद एक चार छोटी-बड़ी गाड़ियां आकर मिश्रा जी के उत्सव स्थल पर रुकीं। लड़की वाले आ गए…लड़की वाले आ गए… के शोर ने अचानक कोलाहल मचा दिया।

लड़की वाले आ गए

तभी गाड़ी से एक लड़का फलों की टोकरी लिए उतरा और अब तो कन्फर्म हो गया कि लड़की वाले आ गए हैं। सभी के कदमो में हड़बड़ाहट थी, क्योंकि वे लेट से जो पहुंचे थे। अपनी देरी का ज़िक्र करते हुए लड़की की बहनें और भाभियां पंडाल की ओर बढ़ रही थीं।

अचानक अमित की माँ ने पूछा कि देर कैसे हो गई और लड़की वालों के यहां से आए सभी मेहमान एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। तपाक से अमित की माँ बोलीं, “खैर छोड़िए, देर तो हो ही गई है।अब जल्दी-जल्दी चलो काम निपटाते हैं।” अब फटाफट लगन की तैयारियाx शुरू हो गईं। उधर मिश्रा जी लड़की वालों की आवभगत में जुट गए।

प्रतीकात्मक तस्वीर- फोटो साभार- Flickr

लड़की पक्ष के लोगों ने जैसे ही सारा सामान लगाया कि तुरन्त पंडित जी ने आवाज़ लगाई, “वर को ले आइए।” इधर मैं भी अब एकदम सचेत होकर अपनी टीम को निर्देश दिए जा रहा था। उधर से अमित सिर पर सफेद रुमाल रख हाथों की अञ्जलि बनाकर उसमें गेहूं रखकर अपना एक-एक कदम लगन चौकी की तरफ बढ़ा रहा था। 

लगन में मौजूद सभी लोग लगन के जश्न में डूब चुके थे। लगन चौकी घेरे परिवार और सेज सम्बन्धी खड़े थे। लगन के इस कार्यक्रम में सगाई का कार्यक्रम चल रहा था जो लगभग पूर्ण हो चला था। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सगाई पूर्ण हो चुकी थी। अब अवसर था लगन का। दोबारा से अमित लगन के लिए चौकी पर आकर बैठा। अमित को बैठे हुए लगभग आधा घंटा हो चुका था।

लड़की वाले पंडाल से बहार खड़े थे, पूछा तो बताया कि फूल-माला नहीं है। इस बात पर सबने थोड़ा रिलैक्स महसूस किया। इधर अमित को बैठे-बैठे 45 मिनट गुज़र चुके थे और इतने में ही लड़की वालों ने कहा, “लड़का लंगड़ा है…लड़का लंगड़ा है…, मम्मी मैंने आपसे पहले ही कहा था कि रिश्ते के लायक ही नहीं हैं ये लोग फिर भी।” इतना कहकर वह फूट फूटकर रोने लगी।

अब माहौल अचानक ही बदल गया था। यहां तक कि मुझे भी मसले को समझने मैं दस-पंद्रह मिनट लग गए। लड़की वालों का कहना था कि लड़का लंगड़ा है, उसके पैर में लचक है। अमित, मिश्रा जी, अमित की माता जी और सभी रिश्तेदार मायूस और अवाक थे कि ये हुआ क्या?

27 अप्रैल को शादी है, कार्ड बंट चुके थे। बैंड वाला, फोटोग्राफर और शादी स्थल सब बुक हो चुके थे। लगभाग सारी व्यवस्थाएं हो चुकी थीं। यहां तक कि काफी खर्च भी हो चुका था। वहां उपस्थित लोग इन बातों पर चर्चा कर रहे थे।

अमित के चाचा, जीजा जी से बोल रहे थे, “भाई लड़का लंगड़ा है आज कैसे ध्यान आया? सगाई से आज तक दो महीने गुज़र गए। क्या कर रहे थे अब तक? भरे समाज के सामने हमारी इज़्जत की धज्जियां उड़ा दी। हमने इनकी खातिरदारी के लिए क्या-क्या नहीं किया? गाड़ी ली, लगन के लिए एक अच्छी जगह बुक की मगर सब…”

अब दोनो पक्षों की जिरह चल रही थी। रिश्तों की डोर में गांठ पड़ चुकी थी। जिरह का अंत हो चला था, शादी कैंसिल हो गई। मुझे भी बहुत दुःख था और अब लिखते हुए भी…! मेरे सामने तब भी प्रश्न था और आज भी कि आखिर ऐसा हुआ क्यों?

Exit mobile version