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सरकार के नए कृषि कानूनों से किसानों को क्या फायदे क्या नुकसान

farmers protest 2020 in delhi on agriculture laws

सरकार ने विपक्ष के विरोध- प्रदर्शन के बीच कृषि सुधार से जुड़े तीन विधेयक पारित कर दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ऐतिहासिक करार देते हुए कहा, “हम किसानों की आय 2022 तक दोगुना करेंगे। यह उसी दिशा में एक कदम है।”

पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के हज़ारों किसान इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं। इन्हें लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडियों के खत्म होने का डर जताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस बिल से खेती उद्योगपतियों के हाथों में चली जाएगी।

भारत में कृषि सुधार की मांग वर्षों से की जा रही थी

वर्तमान की मोदी सरकार ने किसान व कृषि के सुधार हेतु संसद में तीन विधेयकों को पारित किया है। संसद में बोलते हुए भाजपा राज्यसभा सांसद भूपिंदर यादव ने कहा कि “यह तीनों विधेयक कृषि क्षेत्र के सुधार हेतु ऐतिहासिक कदम हैं।” हालांकि, संसद में पास होने से पहले ही इन तीनों विधेयकों का विरोध विभिन्न किसान संगठनो के द्वारा किया गया जो अभी भी जारी है। 

बिल विरोधों का केंद्र मुख्यत: पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तरप्रदेश है। इस विधेयक को लेकर विभिन्न किसान संगठनों के मन में कुछ प्रश्न हैं जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, मंडियों के खत्म होने का भय। वहीं, खेती का उद्योगपतियों के हाथों में जाने और कृषि में उनकी दखल को लेकर भी डर है।

वर्तमान में किसान हितैषी का दम भरने वाली कांग्रेस पार्टी पहले इस कानून को देश के किसानों के लिए अमृत मान रही थी। आज सबसे ज़्यादा विरोध कांग्रेस के बंधु ही कर रहे हैं। 

हालांकि, विपक्ष के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि हम किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करेंगे। यह उसी दिशा में एक कदम है। जिससे कि ओपन मार्केट में वस्तु का मूल्य बाजार आधारित नियंत्रित होगा और जो कैश क्रॉप्स फसल है उससे मार्केट में ज्यादा फायदा होगा। यह किसान के लिए मण्डी के अतिरिक्त एक विकल्प है कि वह अपनी फसल कहीं भी बेच सकें।

तीनों विधेयकों को संक्षेप में

पहला कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020) अध्यादेश, 2020,

दूसरा, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन (The Essential Commodities (Amendment) Bill) और

तीसरा मूल्य आश्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill)।

इन बिल के संभावित फायदे और नुकसान पर खूब चर्चा हो रही है। अगर हम फायदों की बात करें तो सरकार ने इन बिलों के निम्नलिखित फायदे गिनाए हैं। पहला, सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। इसके ज़रिये सरकार एक देश, एक बाज़ार की बात कर रही है।

दूसरा, प्रधानमंत्री मोदी ने किसान बिल पर कहा कि सरकार किसानों से धान-गेहूं की खरीद पहले की ही तरह करती रहेगी और किसानों को एमएसपी का लाभ पहले की तरह देती रहेगी। तीसरा, इन मंडियों में व्यापारियों की संख्या कम होती जा रही है, जिससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नहीं हो पाती। नतीजतन किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। पूर्व के नियम अनुसार किसान अपने उत्पाद बाहर खुले में नहीं बेच सकते थे, ऐसा नहीं कि यह सभी जगह हो लेकिन अधिकतर स्थान पर ऐसा ही है। इसलिए वह मंडी के व्यापारियों के मोहताज बन जाते थे। अब किसान मंडी के साथ-साथ मंडी से बाहर भी अपनी उपज भेज सकते हैं।

चौथा जिस प्रकार 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि इससे सेवा क्षेत्र में भारी नुकसान होगा लेकिन आज हम 30 वर्षों बाद देखते हैं कि सेवा क्षेत्र में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। देश की 20% जनसंख्या सेवा क्षेत्र पर निर्भर है लेकिन वह जीडीपी का 60% निर्धारित करती है। वहीं कृषि में 50% से अधिक लोग जुड़े हैं लेकिन जीडीपी में इसका योगदान सिर्फ 16% है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि जिस प्रकार सेवा क्षेत्र में 1991 में सुधार हुए वैसे ही 2020 में सरकार का कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है।

अब सरकार के जो भी तर्क हों लेकिन विपक्ष तो इन विधेयकों को किसान विरोधी ही मान रहा है। विपक्ष के अनुसार इन विधेयकों से कई संभावित नुकसान होंगे। 

पहला, इससे मंडी की व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। विपक्ष कहता है कि सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदा होगा। वह मंडी से बाहर ही किसानों से औने पौने दामों पर उनकी फसल खरीद लेंगे और एमएसपी का कोई महत्व नहीं रह जाएगा। इसके अलावा मंडी में कार्य करने वाले लाखों व्यक्तियों के जीवन- निर्वाह का क्या होगा।

दूसरा, 2006 से बिहार में इसी प्रकार की व्यवस्था है, तब ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि बिहार में क्रांतिकारी परिवर्तन होंगे लेकिन 14 सालों के बाद भी बिहार के किसान गेहूं या धान बेचने के लिए आज भी पंजाब या दिल्ली आते हैं। यह इस बात का उदाहरण है कि यह एक उचित व्यवस्था नहीं है।

तीसरा 1950-60 के दशकों में अमेरिका एवं यूरोप सहित कई देशों में इस प्रकार का कृषि मॉडल लागू किया गया लेकिन वह बुरी तरह असफल साबित हुआ। 70 सालों के बाद अमेरिका और यूरोप में किसानों के हालात बहुत बदतर हैं। किसानों की आत्महत्या की दर साधारण शहरों में रहने वाले व्यक्ति से 45% अधिक है। इसके अलावा वहां के किसान सरकारों के ऊपर निर्भर रहते हैं। 

अमेरिका और यूरोप की कृषि व्यवस्था सब्सिडी से चलती है

एक तरीके का असफल मॉडल भारत में लागू करने का प्रयास किया जा रहा है जो तर्कसंगत नहीं है। अमेरिकी कृषि विभाग के मुख्य अर्थशास्त्री का कहना है कि 1960 के दशक से किसानों की आय में गिरावट आई है। इन वर्षों में यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता है।

चौथा, एसेंशियल कमोडिटीज़ एक्ट 1955 के हट जाने के बाद अब व्यापारी इन फसलों की जमाखोरी कर सकेंगे और जब चाहे महंगाई को नियंत्रित कर सकेंगे। एक तरीके से यह पूंजीपतियों के हाथ में अर्थव्यवस्था का नियंत्रित होना है। भारत में 80% से अधिक छोटे और मझोले किसान हैं अर्थात इनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इससे उनका काफी नुकसान होगा। पांचवा, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से बड़े-बड़े पूंजीपति ज़मीन खरीदेंगे और किसानों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कराएंगे। इससे वह औने-पौने दामों पर किसानों से ज़मीन लेंगे और अंग्रेज़ी के अक्षरों में समझौते कर आएंगे जो कि किसानों को समझ नहीं आता है। 

ऐसे उदाहरण पूरे भारतवर्ष में देखे गए हैं, जहां पर समझौते के नाम पर किसानों का शोषण किया गया है। इसके अलावा इन विधेयकों में जो भूमिहीन किसान हैं जो दलित समुदाय से आते हैं और लावणी करते हैं अर्थात किसान की ज़मीन की कटाई/सिंचाई करते हैं तो उसका कुछ हिस्सा ले लेते हैं तो इससे दलितों की स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

असल में इन तीनों विधेयकों को देखा जाए तो इनका लाभ किसानों को ही मिलेगा। किसान की स्वेच्छा और उसकी आत्मनिर्भरता के लिए यह ऐतिहासिक कदम है। यह कदम फसल की बुवाई से पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा प्रदान करता है।

सरकार ने शांता कुमार समिति 2015 की सिफारिश मानते हुए किसानों की समस्या का समाधान करते हुए इन कानूनों को लागू किया है। उनका कहना है कि उन राज्यों की मंडी व्यवस्था में किसी भी प्रकार का दखल नहीं करना चाहिए जहां यह व्यवस्था उचित है। यह विधेयक संसद में पारित हो कर कानून बन गया है। अब सरकार को बड़ी-बड़ी कंपनियों पर नियंत्रण भी रखना होगा ताकि वह किसानों को नुकसान न पहुंचा सकें।

इसके लिए कल्याणकारी राज्य की संकल्पना को बल मिलता है। जिसमें राज्य किसी भी व्यक्ति या समाज के हित की रक्षा करता है और किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति या कंपनी पर नियंत्रित रखता है। अतः सरकार को पहले की तरह किसानों से एमएसपी के रेट पर फसल खरीदते रहना चाहिए। साथ ही, सरकार को इन कंपनियों को निर्देश देना चाहिए कि वह एमएसपी से अधिक रेट पर ही किसानों से उत्पाद खरीदें।

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