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बॉम्बे हाईकोर्ट का “स्किन टू स्किन” वाली परिभाषा क्या सवाल खड़े करता है?

Bombay High Court के नागपुर बेंच के द्वारा पिछले दिनों एक ऐसा फैसला सुनाया गया जिससे पूरा देश हतप्रभ है। Justice Pushpa P. Ganediwala के सिंगल बेंच के अनुसार – यदि किसी बच्ची के या किन्हीं के स्तनों को बिना “Physical touch” के ही किसी के द्वारा छूने या दबाने का प्रयास किया जाता है तो वह Protection of Children from Sexual Offenses (POCSO) Act के तहत नहीं आता है व उस व्यक्ति को इस कानून के तहत सजा नहीं दी सकती।

कोर्ट का बहुत ही चौंकाने वाला फैसला

कोर्ट ने “Physical touch” को परिभाषित करते हुए बताया कि Sexual इरादे से skin to skin कॉन्टैक्ट करना ही Physical touch की श्रेणी में आता है और जो व्यक्ति ऐसा करता है बस उन्हें ही POCSO Act के सजा दी जा सकती है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि, “Admittedly, it is not the case of the prosecution that the appellant removed her top and pressed her breast. As such, there is no direct physical contact i.e. skin to skin with sexual intent without penetration”.

असल में बात 14 दिसम्बर 2016 की है। जब एक 12 वर्ष की लड़की को उसके पड़ोस में रहने वाले 39 वर्षीय आरोपी एक अमरूद देने के बहाने पास बुलाकर उसके स्तनों को छूने व दबाने का प्रयास किया और साथ ही उस आरोपी ने उस लड़की का सलवार भी जबरदस्ती उतारने का प्रयास किया। उसी समय उस बच्ची की मां भी वहां पहुंच गयी और अपनी बेटी को बचाया। उसकी मां ने तुरंत एक FIR दर्ज कराया।

निचले कोर्ट ने IPC की धारा 342 ( गलत तरीके से परिरोध करने पर ), 354 ( महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना ) व 363 ( अपहरण के लिए दंड ) और POSCO Act, 2012 की धारा 8 के तहत उस व्यक्ति को दोषी करार दिया। परन्तु हाईकोर्ट में अपीलl के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति को धारा 342 व 354 के तहत ही दोषी करार दिया और POSCO Act की धारा 8 के लिए उसे निर्दोष करार दिया गया।

कोर्ट का यह फैसला एक चौंकाने वाला फैसला था और तो और उस फैसले के पीछे की दलीलें और भी चौंकाने वाली रहीं। कोर्ट ने उसे धारा 342 व 354 के तहत दोषी करार देते हुए मात्र 1 वर्ष की सजा का प्रावधान किया जबकी यदि वह POSCO Act के तहत कम से कम 3 वर्ष के लिए सलाखों के अंदर होता और इस प्रकार सारी धाराओं के तहत उस दोषी को कम से कम 5 वर्ष की सजा ज़रूर होती।

क्या कानून अबतक फिज़िकल टच को सही से परिभाषित नहीं कर पाई है?

“The act of pressing of breast of the child aged 12 years, in the absence of any specific detail as to whether the top was removed or whether he inserted his hand inside top and pressed her breast, would not fall in the definition of ‘sexual assault’.”

कोर्ट का यही एक कथन व POSCO Act के तहत सजा न देने की दलीलें है जो पूरे देशवासियों को सोचने पर मजबूर कर रहा। चारों तरफ लोगों में इस कोर्ट के निर्णय पर हाय-तौबा मच रहा है। लोग आक्रोशित हैं। लोगों के ज़ेहन में बस एक ही सवाल है कि आखिर यह कैसा निर्णय है?

लोगों का कोर्ट के इस निर्णय के प्रति आक्रोशित होना बहुत लाज़मी है। यह एक लम्बी बहस का विषय बन सकता है। यह बड़ा सोचनीय क्षण है कि इस आधुनिक समय में जब हम एक शादीशुदा दम्पत्ति के अनचाहे सेक्स को रेप की श्रेणी में रखा जाए या नहीं? Online Child Sexual Abuse के बारे में चर्चा कर रहे हैं तो उसी समय हमें यह चर्चा भी करना पड़ रहा कि स्तनों को कपड़े के उपर से दबाने को Physical touch की श्रेणी में रखा जाए या नहीं? यह बड़ा दुर्भाग्य है कि कि इतने समय बाद भी हम Physical touch को स्पष्टता पूर्वक परिभाषित नहीं कर पाए हैं।

लड़कियां डर के साये में जीने को मजबूर

National Crime Record Bureau के 2018 के data के अनुसार भारत में हर दिन 109 sexually abused बच्चों के रिपोर्ट को दर्ज किया जाता है। इस आंकड़े में काफी बड़ा तबका है जिनकी रिपोर्ट या तो लिखी ही नहीं जाती या दबंगों द्वारा दबा दिया जाता है या इसे छोटी मोटी घटना मानकर यूं ही छोड़ दिया जाता है। राह चलते, ऑटो, बस, ट्रेन में ऐसी छेड़खानियां आम हो चुकी हैं। ऐसे रिपोर्ट को कहाँ ही दर्ज कराया जाता है? कौन सुध लेता है लेकिन इसका अंदाज़ा लगाना एक भयावह स्वप्न है कि उस लड़की पर क्या बीतती होगी? वह हर क्षण डर के साये में जीती है। हर सेकेंड वह डर डरकर समय गुजारा करती है। इसका अंदाज़ा लगाना बड़ा मुश्किल है।

जब स्कूल, कोचिंग, बाज़ार से घर लौटते वक्त गली के नुक्कड़ पर कोई आदमी अपने गुप्तांग को हिला रहा हो व गन्दे-गन्दे इशारे कर रहा हो उस समय उन छोटी-छोटी बच्चियों पर क्या बीत रही होती है? वह छोटी बच्चियां अभी इतनी परिपक्व भी तो नहीं हुई हैं कि जान पाए कि यह क्या किया जा रहा? उसी तरह भीड़, बस, ट्रेन की भीड़ में कुल्हे मारना, स्तनों को दबाना व अकेली खड़ी लड़की के स्तनों को छूना व दबाकर भाग जाना उस लड़की को भय से जीते जी मार देने के बराबर है।

उस डर के साये में ज़िन्दगी जीना, दूसरी गलियों से आने-जाने का रास्ता ढूंढना व आगे फिर पढ़ने की इच्छा होते हुए भी पढ़ाई से मुंह मोड़ लेना कितना दुखदायी होता है। उसे हर वक्त यही डर सताता रहता है कि वह सनकी आदमी कब और कहां उसका रेप कर देगा। घर से अकेले न निकलना व घरों में अपने आप को बंद कर लेना धीरे-धीरे उसे डिप्रेशन का शिकार बना देता है। क्या यह किसी मौत से कम है? क्या ऐसे लोग मौत के गुनाहगारों से कम दोषी हैं?

आखिर कोर्ट का निर्णय कितना सही? कौन जिम्मेदार?

लेकिन वर्तमान में हमें यह जानना चाहिए कि कोर्ट का यह निर्णय कितना सही है? क्या हमारे कानून के किताबों में कुछ ऐसा प्रावधान है? तो हाँ,
POSCO Act के धारा 7 में sexual assault को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है – Whoever, with sexual intent touches the vagina, penis, anus or breast of the child or makes the child touch the vagina, penis, anus or breast of such person or any other person, or does any other act with sexual intent which involves physical contact without penetration is said to commit sexual assault.

अर्थात् जब गुप्तांगों, स्तनों आदि को छुआ जाता है तब sexual assault की श्रेणी में आएगा। अत: Bombay Highcourt ने जो फैसला सुनाया उसमें जज की कोई गलती प्रतित होती नहीं दिखती। उनके अनुसार छुना अर्थात skin to skin touch की बात कही गयी है बल्कि मेरा मानना है कि इसमें पूरी तरीके से कानून की गलती व अस्पष्टता है। कोर्ट तो कानून की किताबों के सहारे ही चलाया जाता है और जैसा कि हमने पहले से सुन रखा है कि कानून तो अंधा होता ही है। इसमें कानून की तो गलतियां व अस्पष्टता है ही लेकिन इसके पीछे हम सब उससे भी ज़्यादा जिम्मेदार हैं। क्या हमें उस कानून को स्पष्टता पूर्वक नहीं पढ़ना चाहिए था?

क्या हमें कानून में लिखे उन बिंदुओं को परिभाषित करने की मांग नहीं करनी चाहिए थी? क्या कानून पर हमें पहले ही सवाल-जवाब नहीं करना चाहिए था लेकिन हमारी तब नींद खुलती है जब कुछ ऐसे निर्णय लिए जाते हैं। दो चार दिनों तक हंगामा व निंदा करते हैं और फिर शांत। किन्हीं को क्या पड़ी है कानून के इन मोटे-मोटे किताबों से? उन्हें तो अपने बच्चों को रटा-रटाकर बेहतर सरकारी नौकरी में भेजने की पड़ी है। क्या जरूरत पड़ी है कानून के उन टर्म्स को अपने उन बच्चों को भी बताने की? किताबें कैसे पढी जाए यह बताने की? सवाल जवाब करने की। मेरा मानना है कि इन पूरे कानूनों को ठोस तरीके से सभी बिंदुओं को परिभाषित करते हुए बढ़िया तरीके से पुनर्विचार कर दुबारा से संकलित किया जाए।

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