कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण सामान्य जनजीवन काफी बदल गया है। आगे भी जीवन के लगभग हर क्षेत्र में बदलाव के लिए हम सभी को तैयार रहना होगा। बदलाव के क्षेत्रों में एक प्रमुख क्षेत्र है शिक्षा क्षेत्र। देशभर में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति में पहले से एक विभाजन स्पष्ट रूप से दिखाई देता था।
अब कोरोना संकट के दौरान यह विभाजन और स्पष्ट रूप से दिखने लगा है, क्योंकि अब हम डिजिटल और नॉन-डिजिटल जैसे दो वर्गों में बंट चुके हैं। एक वर्ग ऐसा है जिसके पास सभी तरह की सुविधाएं हैं, जो ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से पढ़ सकते हैं लेकिन दूसरा वर्ग जो इस बात के लिए भी आश्वस्त नहीं रहता कि उसे दो वक्त की रोटी मिलेगी या नहीं वह ऑनलाइन क्लास कैसे कर सकता है?
छात्रा ने खुद को लगाई आग
भारत में डिजिटल डिवाइड या तकनीकी विभाजन का परिणाम स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस वजह से विद्यार्थियों का अध्ययन कार्य तो बाधित हो ही रहा है लेकिन कुछ छात्र इन सबसे प्रभावित होकर खुद को संभाल नहीं पा रहे हैं।
छात्रों और अभिवावकों पर यह तनाव इस स्तर तक हावी हो रहा है कि आए दिन बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं सामने आ रही हैं। केरल के मलप्पुरम ज़िले में एक छात्रा ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली।
जानकारी के अनुसार, ऑनलाइन क्लास अटेंड नहीं कर पाने की निराशा के कारण कक्षा नौंवी की छात्रा ने यह कदम उठाया। परिजनों ने आरोप लगाया है कि ऑनलाइन क्लास तक पहुंच ना होने के कारण छात्रा बेहद निराश थी।
छात्रा के पिता ने संवाददाताओं को बताया, “घर पर एक टीवी है, लेकिन वह काम नहीं कर रहा है। मेरी बेटी ने मुझे बताया कि इसकी मरम्मत की ज़रूरत है लेकिन मैं इसे पूरा नहीं कर सका।” सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अनुमानित 2.5 लाख स्टूडेंट्स की टीवी या उन उपकरणों तक पहुंच नहीं है जिनसे ऑनलाइन पढ़ाई की जा सकती है।
पिता को बेचनी पड़ी अपनी गाय
हाल ही में एक दूसरा मामला सामने आया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के ज्वालामुखी तहसील में गुम्मर गाँव में रहने वाले कुलदीप कुमार ने बच्चों की ऑनलाइन क्लास के लिए अपनी आय के इकलौता साधन गाय को महज 6 हज़ार रूपये में बेंच दिया।
कुलदीप की बेटी अनु और बेटा वंश एक सरकारी स्कूल में क्रमश: कक्षा चौथी और दूसरी कक्षा में पढ़ते हैं। जैसा कि राज्यभर के स्कूलों ने महामारी के मद्देनजर ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की हैं। ऐसे में उनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट ना होने से बच्चे पढ़ नहीं पा रहे थे।
कुलदीप ने बताया, “मैं बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए स्मार्टफोन नहीं खरीद पा रहा था। ऐसे में, मैंने अपनी एक गाय को 6,000 रुपये में बेचने का फैसला किया। ”
जबकि वे दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाते हैं और उसकी पत्नी एक दिहाड़ी मज़दूर है। हालांकि गाय बेचने से पहले कुमार ने स्मार्टफोन खरीदने के लिए बैंकों और निजी ऋणदाताओं से कर्ज़ लेने की भी कोशिश की थी। हालांकि समस्या अब भी बनी हुई है, क्योंकि एक फोन से दो बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
क्या है ऑनलाइन शिक्षा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा
शिक्षा के लिए आज बहुत सारे ई-प्लेटफार्म मौजूद हैं। यह सब सुविधाएं शहरों में रहने वाले लोगों के लिए सहजता से उपलब्ध हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और देश के पिछड़े क्षेत्रों में ऐसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव पहले से है। देश में इस समय ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की ओर से ऑनलाइन शिक्षा की कोई पहल नहीं की गई है। केवल प्राइवेट शिक्षण संस्थान जो कि ज़्यादा फीस लेते हैं, वे ही ऐसी पहल कर रहे हैं। उसमें भी आधे बच्चे इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को के अध्ययन में कहा गया है कि स्कूल बंद होने से सबसे अधिक असर वंचित तबके के छात्र-छात्राओं पर पड़ रहा है। भारत में 32 करोड़ छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन प्रभावित हुआ है। जबकि दुनिया भर के 191 देशों में 157 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है, जो विभिन्न स्तरों पर दाखिला लेने वाले कुल छात्रों का 91.3 फीसदी है।
भारत में लॉकडाउन तो 25 मार्च से लागू किया गया जबकि देश के स्कूल और कॉलेज पहले से ही एहतियातन बंद कर दिए गए थे। डिजिटल डिवाइड को खत्म किए बिना ऑनलाइन शिक्षा की बात करना बेमानी होगी। देश की गरीब जनता, दिहाड़ी मज़दूरों को अपना और अपने परिवारों का पेट पालने के लिए सरकारी मदद का ही सहारा है।
ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए ऑनलाइन लर्निंग एक सपने जैसा ही है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों के पास कम्प्यूटर, लैपटाप या टेबलैट की कल्पना ही नहीं की जा सकती।