Site icon Youth Ki Awaaz

विकास सिर्फ कुछ चुनिंदा शहरों तक ही सीमित क्यों है?

अपने देश में आज़ादी के बाद के वर्षों में बेहद असंतुलित ढंग से विकास हुआ है। कुछ हिस्से कई वजहों से बहुत आगे बढ़ गए, वहीं बहुत से  राज्य आज भी मूलभूत समस्याओं से ही जूझ रहे हैं।

देश के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से में जैसा विकास हुआ वह पूर्व और उत्तर-पूर्व में नहीं हो पाया। मानव विकास के जो पैमाने हैं उन्हें देखने पर यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। देश में जितने भी अच्छे संस्थान हैं वे कुछ राज्यों और विशेषकर कुछ शहरों तक ही सीमित हैं।

उत्तर में अगर दिल्ली को छोड़ दिया जाए, तो अधिकांश ऐसे संस्थान बैंगलोर, मुम्बई, पुणे, अहमदाबाद, चेन्नई, हैदराबाद आदि जगहों पर हैं।

विकास सिर्फ कुछ चुनिंदा शहरों तक ही सीमित क्यों है?

अगर शहरीकरण ही समस्याओं का समाधान है, तो इसी पैमाने पर अकेले गुजरात को देखिए तुरंत आपके ज़हन में सूरत, राजकोट, जामनगर अहमदाबाद, गाँधी नगर, वडोदरा जैसी जगहों का नाम आएगा।

महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे, नागपुर जैसे बड़े शहर हैं जो भारी संख्या में रोज़गार का सृजन करते हैं लेकिन यही शहरीकरण की बात अगर बिहार में करें, तो पटना के अलावा कौन-सा नाम आप गिन सकेंगें। बहुत मुश्किल से मुजफ्फरपुर या भागलपुर।

प्रतीकात्मक तस्वीर

दस करोड़ से ज़्यादा की आबादी वाले राज्य में हम कुछ ढंग के शहर नहीं बना पाए। पटना की भी स्थिति कुछ बहुत अच्छी नहीं है। दुनिया भर की गंदगी और प्रदूषण है, वह अलग। कुछ ऐसा ही हाल यूपी, झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा का भी है। इन राज्यों की जितनी जनसंख्या है, क्या उसके हिसाब से इनका समुचित विकास हो पाया?

भारत, यूरोप नहीं है जहां बिल्कुल छोटे-छोटे देश हैं जिनका विकास करना अपेक्षाकृत सरल होता है। नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, स्वीट्ज़रलैंड, जर्मनी आदि इसके उदाहरण हैं। यही बात जापान और सिंगापुर जैसे मुल्कों पर भी लागू होती है लेकिन हमारे यहां ऐसा संभव नहीं है।

अगर हम केवल एक हिस्से को विकसित करने में लगे रहे, तो इससे देश में असंतोष की भावना भड़केगी। अलगाववाद का जन्म होगा। भारत के नक्शे को उठा कर देखिए, तो यह असंतुलन अच्छे से पता लग जाएगा।

पूर्वी भारत के बच्चे दसवीं पास करने के बाद कोटा और दिल्ली का रुख करते हैं। भारी संख्या में फिर इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए दक्षिण या पश्चिम भारत के राज्यों में जाते हैं। बाद में वहीं नौकरी भी ढूंढते हैं।

पूर्वी भारत के मज़दूर आपको देश के हर हिस्से में मिल जाएंगे। ऑटो और रिक्शा चलाने से लेकर खेतों में काम करते और समोसा से लेकर गन्ने का जूस बेचते और कई बार अपमान झेलते यह लोग जीवन भर अपने समाज और परिवार से दूर रह रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं।

इसका मतलब यह कि इन राज्यों में जीवन-स्तर अभी इतना अच्छा नहीं है कि लोगों को अपने राज्य में रोज़ी-रोटी मिल सके और वे अपने परिवार के पास रह सकें।

पूर्वी भारत के कामगार लोगों के हालात बेहद चिंतनीय हैं

कभी छठ के समय बिहार की तरफ जाने वाली भीड़ भरी ट्रेनों को देखिए, वहां जिस परिस्थिति में लोग रहते हैं उसे देख कर आपका दिमाग काम करना बंद कर देगा। यही ट्रेंड पिछले कई वर्षों से जारी है जिस पर शायद कोई भी सरकार विचार नहीं करना चाहती।

अपर क्लास वाले उच्च शिक्षा या अच्छी नौकरी के लिए महानगरों का रुख करते हैं। वहीं, जो वर्ग सामाजिक-आर्थिक वजहों से कमज़ोर है वह मुख्यतः रोज़ी-रोटी के लिए पलायन करता है।

फिल्म उड़ता पंजाब में आलिया भट्ट का किरदार याद कीजिए, एक मज़दूर स्त्री जो है तो बिहार की लेकिन इतनी दूर जाकर पंजाब के खेतों में मज़दूरी करती है। पूर्वांचल के लोग पूरे देश में जा जाकर ठेला चलाते हैं, कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं, सिक्यूरिटी गार्ड हैं, रिक्शा-ऑटो चलाते हैं, सब्ज़ी बेचते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

इस इलाके के लोक गीतों और संस्कृति में यह दर्द झलक कर सामने आता है। भिखारी ठाकुर का बिदेशिया इसी पीड़ा पर आधारित है जब इस इलाके के लोगों को अंग्रेजों के द्वारा गिरमिटिया मज़दूर बना कर फिजी, गुयाना, मौरिसस जैसे देशों में ले जाया जाता था। प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का एक गीत है, “पनिया के जहाज़ से पलटनिया बनी अइहें पिया लेले अइहे हो पिया सेनुरा बंगाल के।”

मज़दूरों का यहां से बाहर की ओर पलायन कोई नई बात नहीं है। पूर्वांचल का समाज आज भी मुख्यतः ग्रामीण है। यहां शहरीकरण की गति अत्यंत धीमी रही है। इतनी बड़ी आबादी के लिए अगर ढंग के कुछ शहर बसाए जाते, तो यहां की काफी समस्याएं हल हो जाती। चंडीगढ़ या जमशेदपुर जैसे कुछ प्लान किए गए नगर यहां की तस्वीर बदल देते।

यहां पैदा होने वाले रोज़गार बाहर की ओर होने वाले पलायन को भी रोकते। एक राष्ट्र के तौर पर यह हमारी विफलता को दर्शाता है। इस तरह के असंतुलित विकास से भारत के एक विकसित राष्ट्र बनने की कल्पना कभी भी नहीं की जा सकती।

Exit mobile version