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लॉकडाउन में बढ़ती बेरोज़गारी से छत्तीसगढ़ के युवा परेशान, मज़दूरी के अलावा नहीं है कोई विकल्प!

कोरोना वायरस की वजह से दुनिया के बहुत सारे लोगों की आर्थिक स्थिति बुरी तरह से बिगड़ी है। कई लोगों की नौकरियां चली गई हैं और बेरोज़गारी बढ़ गई है। एक मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से अप्रैल के महीने में भारत में 270 लाख युवा, जिनकी उम्र 20-30 के बीच है, अपनी नौकरी खो चुके हैं। 

गाँव में इसका ज़्यादा प्रभाव पड़ा है, क्योंकि मज़दूरों के पास लॉकडाउन होने के कारण काम नहीं है और किसानों को भी फसल बेचने में दिक्कत हो रही है। जो लोग अपने गाँव से बाहर फैक्ट्री-कारखानों में काम करते थे, वह अपने अपने गाँव वापस आ चुके हैं और कुछ लोग क्वारंटीन में रखे गए हैं। 

हेमलता पोर्ते, जो गोंडवाना स्कूल में पढ़ाती थीं

छत्तीसगढ़ के बिंझरा में ऐसे कई युवा हैं, जो लॉक्डाउन की वजह से घर में ही बैठे है। उन्हें काम ढूंढने में कठिनाई हो रही है। इनमें से एक है हेमलता पोर्ते, जो ग्राम तिवरता के गोंडवाना स्कूल में बच्चों को पढ़ाती हैं। यह एक प्राइवेट स्कूल है जो अभी लॉकडाउन के कारण बंद है। हेमलता बताती हैं,

“गोंडवाना स्कूल में काम करके मैं अपना घर चलाती थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से अभी मैं घर पर ही रहती हूं। मेरे घर में काम करने वाला और कोई नहीं है। अब मेरे पास मज़दूरी करने के अलावा कोई उपाय नहीं है, तो मैं रोपा लगाने जाती हूं। ” 

पढ़े-लिखे होने के बावजूद युवाओं को नहीं मिल रही है नौकरी 

भारत में पहले ही युवा बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहे थे लेकिन इस लॉकडाउन के समय में यह समस्या हर दिन बढ़ती ही जा रही है। इस समस्या का निराकरण करना बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि रोज़गार मिलने से आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और लोग अपने आप का और अपने परिवार का ख्याल रख पाते हैं।    

आज कल पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि उनको कहीं पर भी रोज़गार मिल पाना मुश्किल हो गया है। डिग्री, डिप्लोमा हासिल करने के बाद भी युवा रोज़ी-मज़दूरी का काम कर रहे हैं।

तारा जिन्हें M.Sc. की डिग्री होते हुए भी नौकरी नहीं मिल रही

ऐसी ही एक महिला तारा जी भी नौकरी ढूंढ रही हैं लेकिन अभी तक उन्हें इसमें सफलता नहीं प्राप्त हुई है। उनका कहना है,

“मैंने M.Sc. की पढ़ाई खत्म की है। इसके बाद मैंने असिसटेंट टीचर की नौकरी के लिए कई जगह ऐप्लिकेशन दिया है लेकिन लॉक्डाउन की वजह से कुछ नहीं हो पा रहा है। अब मैं दूसरों के घर में जाकर रोपा लगती हूं और मुझे एक दिन के 120 रुपए मिलते है।” 

प्राइवेट कंपनियों में काम करने वालों की नौकरी भी है खतरें में 

यह युवा सिर्फ सरकारी नौकरी की तलाश में नहीं है। कुछ लोग प्राइवेट कंपनियों के साथ भी काम करते थे लेकिन अब कंपनियों से भी लोगों को निकाला जा रहा है, क्योंकि कम्पनी की ही आर्थिक स्थिति खराब हो गई है और तो और जिन कंपनियों में लोगों की नौकरी अभी तक बरकरार है, उनकी तनख्वाह भी कम कर दी गई है। 

कई लोग घर से तो काम रहे हैं लेकिन जिनका काम घर से नहीं हो सकता, उनको काम पर भी जाने की अनुमति नहीं है और उनकी नौकरी खतरे में है। 

जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से लोग गाँव में लोग ऐसे ही घूमते हुए नज़र आते हैं। गाँव में सभी प्रकार की व्यवस्था तो की गई है, जैसे आवास, राशन कार्ड, ताकि सरकार की तरफ से चावल मिल सके। इससे गाँव में खाने-पीने की समस्या तो दूर हो जाती है लेकिन लोग हमेशा कहते है की युवा ही देश का भविष्य है।

अगर युवा के पास नौकरी ही नहीं है और जो युवा काम करके कुछ बनना चाहते हैं, उनके लिए घर बैठना ही एक मात्र उपाय है, तो कैसे होगा देश का विकास? अगर हमें देश को आगे बढ़ाना है, तो पहले हमें युवा पीढ़ी की ज़रूरतों पर ध्यान देना चाहिए। उनकी समस्याओं को अनदेखा नहीं करना चाहिए।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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