भारत में करप्शन एक बहुत बड़ी समस्या है जो देश को केंद्रीय, राज्य और स्थानीय हर स्तर पर जकड़े हुए है|देश में कई बड़े-बड़े घोटाले हुए जिन में से कुछ बेहद मशहूर हैं | जिन में उच्च स्तर के सरकारी लोग,कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री तक शामिल थे|
जैसे 2010 राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (US $ 9.8 बिलियन)), आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला, कोल लैंड स्कैम (यूएस $ 26 बिलियन), कर्नाटक में खनन घोटाला और नोट फॉर वोट घोटाले लिस्ट बड़ी लम्बी है|
भ्रस्टाचार पर काम करने वाली एक एजेंसी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा किए गए 2005 के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में 92% से अधिक लोगों को सरकारी दफ्तरों में अपना काम कराने में रिश्वत देने का एक्सपीरियंस मिला जो लगभग-लगभग 4.9 बिलियन डॉलर के करीब बनता है|
यूँ तो राज्य सीमाओं के बीच कर और रिश्वत आम हैं; ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का अनुमान है कि अकेले ट्रक चालक सालाना घूस में 31 मिलियन का भुगतान करते हैं|
यही नहीं ये बीमारी मुल्क में लगभग हर जगह मौजूद है| चाहे वह जमीन और जायदाद का मसला हो या टेंडरिंग और कॉन्ट्रैक्ट्स, का हॉस्पिटल्स एंड हेल्थ केयर, हो या विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आयकर विभाग हो या मिनरल रिसोर्स, ड्रायवर लाइसेंसिंग हो ये ब्लैक मनी रिश्वतखोरी और करप्शन हर जगह मौजूद है|
और इस से निपटने के लिए 2007 में एक गैर सरकारी संगठन फिफ्थ पिलर, ने जीरो का नोट जारी किया| जीरो का ये नोट भारतीय नागरिकों द्वारा उपयोग के लिए डिज़ाइन किए गए थे जिनसे कानूनी सेवाएं प्राप्त करने के एवज में रिश्वत मांगी गई थी |
फिफ्थ पिलर के अध्यक्ष, विजय आनंद के अनुसार, जब एक ऑटो रिक्शा चालक को आधी रात में एक पुलिसकर्मी ने रोका और माल पानी की डिमांड की और कहा की अगर वो कुछ दे सकता है तो वह जा सकता है उस ड्राइवर ने तुरंत पुलिस वाले को जीरो का नोट थमाया जिसे देख कर पुलिस वाला हैरान हुआ और मुस्कुराकर उसे जाने दिया ।
उन्होंने बताया कि इस पहल का मकसद रिश्वत न देने के लिए लोगों में जागरूकता जगाना है
ये नोट 50 के असली नोट की तरह दिखता है और कानूनी पेंच से बचने के लिए सिर्फ एक तरफ से ही छापा जाता है| सतेंद्र मोहन भगत, एक भारतीय जो मैरीलैंड विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर हैं, को 2001 में इस जीरो के नोट की अवधारणा को जन्म देने का श्रेय दिया जाता है। भारत लौटने पर, सरकारी अधिकारियों की जबरन वसूली की मांगों से से तंग आकर उन्होंने इस की कल्पना की ताकि वो उन की नाजायज़ मांगों को विनम्रता से ठुकरा सके । और फिफ्थ पिलर ने उन की कल्पना को जीरो के नोट के रूप में व्यावहारिक रूप में रख दिया
फिफ्थ पिलर ने इस अभियान की शुरुआत 2007 के वसंत में 25,000 नोटों की छपाई के साथ की थी जिनको चेन्नई में वितरित किया गया था । अभियान की सफलता से प्रसन्न होकर, फिफ्थ पिलर ने पूरे देश में भ्रष्टाचार
के खिलाफ शून्य रुपये के नोट का उपयोग शुरू किया वेबसाइट के अनुसार अपनी शुरुवात से 2014 के मध्य तक फिफ्थ पिलर पिलर ने 2.5 मिलियन से अधिक शून्य रुपए के नोट वितरित किए। आज शून्य रुपये के नोट भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से पांच में जारी किए जा रहे हैं जिनमे तमिल, हिंदी, कन्नड़, मलयालम और तेलुगु भी है|
भ्रस्टाचार से लड़ाई का ये तरीका यमन घाना मेक्सिको और नेपाल जैसे सरकारी रिश्वतखोरी की समस्या से जूझ रहे कुछ अन्य देशों में भी अपनाया गया है।
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