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जातिवाद

 

इस शब्द को पढ़कर मुझे और आपको हम दोनों को इस बात का अंदाजा तो हो ही जाता है कि ये मुद्दा बहस का विषय है, संवाद का विषय है, चर्चा का विषय है… इसे कुछ शब्दों में बांधकर नहीं लिखा जा सकता है… ये मुद्दा समुद्र की तरह विशाल है… और हम सब जातिवाद के समुद्र के बीचो बीच खड़े हैं… पी ए सोरोकिन अपनी किताब सोशल मोबिलिटी में लिखते हैं कि- ‘मानव जाति के इतिहास में बिना किसी स्तर विभाजन के उसमें रहने वाले सदस्यों की समानता एक कल्पना मात्र है’

वहीं मनु स्मृति कहती है कि ‘जन्मना जायते शूद्र:, संस्काराद् द्विज उच्यते’

मनु स्मृति में ही लिखा है कि ‘विप्राणं ज्ञानतो ज्येष्ठम् क्षत्रियाणं तु वीर्यतः’ अर्थात् ब्राह्मण की प्रतिष्ठा ज्ञान से है तथा क्षत्रिय की बलवीर्य से..

लेकिन मुझे ऐसा लगता है आज इस बात को स्वीकार करने में हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि हम सब जातियों में बंटे हुए हैं… और हमारी जाति उसी दिन तय हो गई थी जब हम अपनी मां के गर्भ में आए थे… यहां पर एक और बात है कि लड़के की जाति तो जन्म से पहले ही तय हो गई… लेकिन लड़की आज जिस जाति में है हो सकता है कि शादी के बाद उसे अपनी वो जाति या हो सकता है वो धर्म भी त्याग कर उस धर्म या उस जाति को अपनाना पड़े जहां उसकी शादी हो रही हो.. मैं जातिवाद की कोई लंबी चौड़ी चर्चा नहीं करना चाहता…. बल्कि मैं तो बात इस मुद्दे पर करना चाहता हूं कि हम लोगों को जातिवाद के जाल में सबसे ज्यादा कौन फंसा रहा है… उनके बारे में बात होनी चाहिए… मंच से दहाड़ दहाड़ कर जो लोग जातिवाद को ज़हर बताते हैं जो लोग सर्वसमाज की बात करते हैं.. असल में वही लोग सबसे बड़े दोषी हैं… आप किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को देख लीजिए… वहां संगठन के अंदर संगठन फिर उसके अंदर उप संगठन बने हुए हैं.. किसी ने मोर्चा नाम दे रखा है, किसी ने सभा तो किसी ने भाईचारा समिति तो कोई अपने आप में महासभा है… हर दल में बाकायदा ऐसे फ्रंटल संगठन बने हुए हैं… अल्पसंख्यक सभा के नाम पर, प्रबुद्ध सभा के नाम पर, कायस्थ सभा के नाम पर, ओबीसी विंग के नाम पर और भी ना जाने क्या क्या… सैकड़ों संगठन हैं जो खुद को ब्राह्मणों का क्षत्रियों का हितैषी बताते हैं… हालांकि अभी गनीमत ये है कि ये लोग फतवे जारी नहीं करते… लेकिन एक काम बहुत बेहतरी से करते हैं चुनाव के वक्त प्रत्याशियों से पैसा लेते हैं कि हम समाज के वोट दिलाने का जिम्मा लेते हैं… पैसे देने वाले और पैसे लेने वाले दोनों को पता है कि वोट मिलने नहीं हैं… लेकिन जातिवादी सभा बनाने वाले को कुछ पैसे मिल जाते हैं… और प्रत्याशी सोचता है कि चलो इसी बहाने 100-200 लोगों से मिलना हो जाएगा… अब अगर कहीं मीटिंग जनसभा करते तो उसमें भी खर्चा तो आ ही जाता… बस इतना ही काम है इन संगठनों का… और सर्दी वर्दी आ जाए… तो सियासी रूप से संबल देने वाला कंबल बांट दो… आप मेरी बात बिल्कुल मत मानिए कभी ऐसे संगठनों के कार्यक्रमों और तथाकथित गोष्ठियों में जाकर देखिए… वहां सिर्फ उस जाति के लोगों को भड़काने का, उन्हें दूसरी जाति के खिलाफ ज़हर उगलने का काम सिखाया जाता है… वहां बच्चों की पढ़ाई पर बात नहीं होती, वहां महिला सशक्तिकरण पर बात नहीं होती, वहां गरीबों की भलाई पर बात नहीं होती… वहां सिर्फ ये बात होती है कि आप श्रेष्ठ और बाकी सभी जातियां आपसे कमतर… ये सोच हमें कितना आगे लेकर जाएगी.. ये सभी को सोचना होगा… मैं किसी संगठन के विरोध में नहीं हूं.. लेकिन उस संगठन की जो विचारधारा है… जो पदों की रेवड़ी बांटने के नाम पर जो पैसों का खेल चल रहा है… और कहीं ना कहीं जो शोषण चल रहा है उस पर बात होनी चाहिए… जाति धर्म के मामलों से आगे बढ़कर हमें अपने और अपने देश के विकास पर मंथन करना चाहिए… जब तक आप जाति के जाल में फंसे रहेंगे आप आगे बढ़ नहीं पाएंगे… मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो मुस्लिमों के विरोधी हैं… कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो हिन्दुओं के विरोधी हैं… जबतक आप अपने बच्चे से ये कहते रहेंगे के मुस्लिमों से दोस्ती मत करो… ये भरोसे के लायक नहीं होते तो यकीन मानिए आप उनके दिमाग में कितनी नफरत और कितनी गंदगी भर रहे हैं इसका अंदाजा भी नहीं है… जब आप अपने बच्चों को ये सिखाएंगे कि तुम ब्राह्मण हो ठाकुरों के पैर मत छूना.. तो आप उसके दिमाग में ज़हर भर रहे हैं… और खुद को चाहे जितना संस्कारी दिखाने की कोशिश करें.. लेकिन असल में आप अंदर से खोखले हैं… जितना विरोध मेरा ऐसे जातिवादी संगठनों से है उतना ही विरोध उन लोगों से है जो आने वाली पीढ़ी के अंदर जातिवाद का ज़हर बो रहे हैं… मुझे भी कई बार कई लोगों ने मेरी जाति का ज्ञान दिया है… मैं दूसरी जाति के लोगों के पैर छूता हूं तो उन्हें आपत्ति होती है… हालांकि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और ना ही कभी पड़ेगा… कम से कम मैं इतना तो कह सकता हूं कि अपने बेटे के दिमाग में इस तरह के जहर को कभी नहीं आने दूंगा… मैं उसे जानकारी हर बात की दूंगा…. लेकिन मेरी कोशिश उसे हिन्दू या ब्राह्मण नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी बनाने की है…आप लोगों को भी ऐसे संगठनों, ऐसे लोगों को समझने की और उनसे दूरी बनाने की कोशिश करनी चाहिए…

चन्द्रकान्त

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