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‘मौकाटेरियन्स’

वेजिटेरियन्स सुना था, नॉनवेजिटेरियन्स सुना था.. अमां अब ये मौकाटेरिन्स क्या होता है… यही सोच रहे हैं ना आप… पहली बार ये शब्द मैंने किसी के मुंह से सुना तो मेरा भी रियक्शन कुछ ऐसा ही था… लेकिन जब उन्होंने इस शब्द की व्याख्या की तो मैंने कहा कि हां ऐसा तो होता ही है… आप के आस पास भी ऐसे ढेरों लोग होंगे… असल में ऐसे लोग बड़े कमाल होते हैं… ये आपके घर परिवार रिश्तेदारी में भी होते हैं… दोस्ती यारी में भी होते हैं और आस पड़ोस में भी होते हैं… मतलब जबतक आपसे काम है तब तक आपके साथ हैं, आपकी तारीफों के पुल बांधेंगे… आपको सर्वे सर्वा मान लेंगे.. लेकिन जैसे ही उनका काम बना या आप उनके लिए बेकार हुए तो ये आपसे अद्भुत दूरी बनाते हैं…. फिर ये उनके सगे हो जाते हैं जिनसे इन्हें लाभ दिखाई देता है.. स्वार्थी भी कह सकते हैं आप इनको… ऐसे ही कुछ होते हैं नेताओं की जयकार करने वाले और अक्सर ऐसे मौकाटेरियन्स को सियासी लोग समझ नहीं पाते… या फिर हो सकता है कि जानबूझकर इग्नोर करते हों… आप आसान शब्दों में समझिए… मान लीजिए कोई ऐसा नेता है जिसके पास कोई पद नहीं है, सत्ता नहीं है… और वो सियासत में कुछ कर पाने के लिए बेताब है… संघर्ष कर रहा है… तो ऐसे मौकाटेरियन्स में कुछ ऐसे शातिर होते हैं.. जो पहले देखते हैं कि फलां नेता किस दल में है, उसके ऊपर किसका हाथ है, उसका भविष्य कैसा है… अगर इन मापदंडों में वो ठीक है तो उसके साथ हो लेते हैं… या फिर अगर कोई ऐसा है जिसमें कोई योग्यता नहीं है… लेकिन पैसा अथाह है और वो रोज रात में विधायकी की तकिया और मंत्रिमंडल वाली चादर ओढ़कर सो रहा है… तो ये भाई लोग उसके साथ हो लेते हैं… यहां नैतिकता सिद्धांत ईमान की बात भी मत सोचिएगा क्योंकि वो सब यहां नहीं चलता… अब नेता जी के पास पैसा तो खूब है.. लेकिन धन के अलावा उनके पास कुछ नहीं है.. ना नीति है, ना नियम हैं… और ना ही लोग हैं… तो ये मौकाटेरिन्स आगे आते हैं… नेता जी को युवा हृदय सम्राट बता बताकर चने के झाड़ पर चढ़ाते हैं… बेहतरीन 5 होर्डिंग बनवाते हैं… जिसमें नेता जी की HD फोटो लगवा कर चकाचक चौराहों पर टंगवा देते हैं… और खुद को युवा नेता, युवा छात्र नेता, वरिष्ठ युवा नेता बताकर माहौल टाइट करते हैं… थोड़ा बहुत और पैसा हुआ… तो नेता जी के आने पर उनके पीछे अपने 2-4 साथियों के साथ गाड़ियों का काफिला मेनटेन कर देते हैं… फिर शुरू होता है जिन्दाबादा मुरादाबाद… लेकिन जिस दिन लगा कि नेता जी से भारी नेता आ रहा है.. तो ये फौरन दूरियां बनाते हैं… और नए नेता में नए तरीके से इन्वेस्ट करते हैं… अब मान लीजिए कि ये जिसके साथ लगे थे वो नेता बन गए… लेकिन उनके पावर में आते ही इनसे बड़े वाले मौकाटेरियन्स ने अपने जाल में नेता जी को फँसा लिया… तो ये सिर्फ ‘नहीं भैया, बस आशीर्वाद लेने आए थे’ यही कहकर अपना मन मारते रहते हैं… अब भाई जो नया वाला आया है वो होर्डिंग भी लगवा रहा है… नेता जी को गोवा से लेकर बैंकाक तक की यात्रा करवा रहा है… सारे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करवा रहा है… नेता जी के साथ साथ नेता जी के पूरे परिवार की सेवा कर रहा है… तो नए मौकाटेरियन्स तो नेता जी को पसंद आएंगे ही… लेकिन जैसे ही नेता जी का पद गया, सत्ता गई वैसे ही ये निकल लेंगे फिर नया झंडा नई दुकान… और ये साहब नए नेता जी के लिए सेम प्रोसेस करेंगे… और फिर वो जो पुराना वाला था ना उसे नेता जी फोन करेंगे… गलतियां हुई, समझ नहीं पाए… अबकी आने दो… अबकी सम्मान होगा जैसी बातें करके नेता जी पुराने वाले मौकाटेरियन को मनाएंगे…

असल में नेता और कार्यकर्ता के बीच आज इतने ही संबंध रह गए हैं… दोनों को एक दूसरे पर रत्ती भर भरोसा नहीं हैं… दोनों को लगता है कि दोनों एक दूसरे को किसी भी वक्त इग्नोर कर सकते हैं… लेकिन यही वर्तमान सियासी ढांचा है… और इसी पर सारी व्यवस्थाएं चल रही हैं… जवानी भी कुर्बान हो रही है… और राष्ट्रवादी नारे भी लग रहे हैं… मेरा मानना है कि बेटी की शादी करता हुआ बाप और चुनाव लड़ने वाला नेता दोनों इस धरती पर सबसे कमजोर इंसान हैं… दोनों कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन बोल नहीं पाते… और हर आदेश को सिर झुकाकर मान लेते हैं… लेकिन फिर भी सियासी लोगों को समझना चाहिए और अपने मूल कार्यकर्ता को पहचानना चाहिए… वरना इन कार्यकर्ताओं का क्या है… कभी कहीं जा बैठे, कभी कहीं जा बैठे… मेरी निजी राय है कि मौकाटेरियन्स नहीं लेकिन सच्चे कार्यकर्ताओं का मान सम्मान होना चाहिए….

चन्द्रकान्त

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