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2020 दूसरा सबसे गर्म साल, कार्बन उत्सर्जन खतरनाक स्तर तक बढ़ा

साल 2020 दुनिया के कई संस्थानों द्वारा अब तक के सबसे गर्म सालों में से एक के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। जबकि NASA के ‘Goddard Institute for Space Studies’ ने 2020 के रिकॉर्ड को 2016 के बराबर बताया है। अमेरिका के NOAA(National Oceanic and Atmospheric Administration) ने 2016 को 1880 के बाद सबसे गर्म साल बताया था।

NOAA अमेरिका की एक सरकारी एजेंसी है जो जलवायु और पर्यावरण की निगरानी का काम करती है, और उसके नियंत्रण के दिशा में काम करती है। ये एजेंसी 1880 से जलवायु संबंधित डाटा इकट्ठा कर रही है। इसने साल 2016 के बाद 2020 को सबसे गर्म करार दिया है।

पृथ्वी के तापमान में 1℃ तक की वृद्धि

पिछले साल यूरोपियन मौसम एजेंसी ‘कॉपरनिकस’ ने 2019 को अब तक का दूसरा सबसे गर्म साल बताया था। वहीं भारतीय मौसम विभाग(IMD) ने 2019 को अब तक का सातवां सबसे गर्म साल बताया था। NOAA के अनुसार 2020 में वैश्विक औसत तापमान 20वीं शताब्दी के मुकाबले 0.98 डीग्री सेल्सियस ज़्यादा थी। यदि इसकी तुलना 2016 से की जाए तो यह मात्र 0.02 डीग्री ही कम था।

चिंताजनक बात यह है कि 21वीं शताब्दी की शुरुआत के ही मात्र 20 सालों में से दस साल ऐसा रहा जिसको अब तक के सबसे गर्म सालों में से गिना गया। Berkeley Earth’s Global Temperature Report के अनुसार साल 2020 को 1850 के बाद से दूसरा सबसे गर्म साल बताया गया है लेकिन उनके विश्लेषण के अनुसार 2016 और 2020 के तापमान में मात्र 0.022 डीग्री का ही अन्तर था।

हाल ही में उत्तराखण्ड में घटे त्रासदी में 30 से अधिक लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक लोग लापता हैें। जून 2019 में जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि ग्लेशियर में 2000 के बाद से हर साल एक फुट से ज़्यादा बर्फ पिघल रहे हैं।

अब सवाल ये कि आखिर इन आंकड़ों का क्या मतलब बनता है?

NOAA के अनुसार, साल 2020 में जलवायु से जड़ी कुछ चिन्ताजनक घटनाएं घटी। इनमें से सबसे हालिया घटना है उत्तराखण्ड में नंदा देवी के एक ग्लेशियर का टूटकर गिरना। मई 2020 में ‘साईक्लोन अम्फान’, जिसने पश्चिम बंगाल, उड़िसा और बांग्लादेश के इलाकों में तबाही मचाया था। पिछले दो दशक में बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाला यह दूसरा सुपर साईक्लोन था।

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण घटना थी ‘एटा और आयोटा’ हरिकेन, जिसने निकारागुआ, होन्डुरस और गुआटेमाला के इलाकों को प्रभावित किया। अमेरिका में एक उदाहरण कैलिफोर्निया जंगल की आग है। 1932 से अब तक कैलिफोर्निया में लगे 6 सबसे भीषण आगों में से 5 भीषण आग तो 2020 में ही लगे हैं। इस भीषण आग ने सैन फ्रांसिस्को, ओरेगोन और वाशिंगटन के इलाकों के हवा को गंभीर रूप से खराब किया।

इसी तरह 2019 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लग गई थी। जो कि 2020 के शुरुआत तक चली। इन सभी घटनाओं को पिछले कुछ वर्षों में हुए सबसे भीषण जलवायु आपदा के रूप में देखा जा रहा है। नासा के वैज्ञानिकों ने कहा है कि पिछले कुछ दशकों में हुए ग्रीन हाउस उत्सर्जन की वजह से ये सारी घटनाएं हमें देखने को मिल रही है।

इसके लिए उन्होंने मानव द्वारा भारी मात्रा में उत्सर्जित ग्रीन हाउस को जिम्मेदार ठहराया है। इन गतिविधियों में कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाना शामिल है जो ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ते हैं। जो कि एक इन्सुलेट कंबल का निर्माण करते हैं, और पृथ्वी की सतह में ग्रीनहाउस गैसों को संग्रह कर लेते हैं। ये गैसें पृथ्वी के तापमान को बढ़ाती है।

कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ा

नासा ने बताया है कि 250 साल पहले औद्योगिक क्रांति शुरू होने के बाद से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है, जबकि मीथेन का स्तर दोगुने से अधिक हो गया है। इसने पृथ्वी को लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म किया। हज़ारों पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रीन हाउस को कम करने और पृथ्वी को स्वच्छ बनाने के लिए प्रतिदिन संघर्ष कर रहे हैं।

जिससे हम अपनी भावी पीढ़ी को एक स्वस्थ वातावरण प्रदान कर सकें लेकिन हम खुद अपने वातावरण का दोहन करते नहीं थक रहे। न सिर्फ सरकारों को बल्कि अब ज़रूरत है कि हम अपने स्तर से भी प्रयास कर अपनी पृथ्वी को इस हाहाकार से बचाएं। हम अपने बच्चों को अन्य शिक्षा के साथ-साथ वातावरण की भी शिक्षा प्रदान करें।

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