माँ की याद आती है
हर सुबह, हर शाम आती है,
चाहे हो रौशनी या अंधेरा
माँ तेरी याद हर राह आती है।
किराए की दीवारों में सब कुछ है
मगर हर पल कोई कमी सताती है,
आते हैं पल भर आंसू, उसके बाद यह चाह आती है
माँ तेरी याद हर सांस आती है।
बीता हुआ वक्त लौटकर नहीं आता
बस कचोटने आता है,
मेरे दिल के टुकड़ों को समेटने
कभी बिखेरने आता है,
आने वाले अच्छे समय की उम्मीद
सिरहाने रख अनजाने शहर फिर भी रह जाता हूं,
माँ तेरा शहज़ादा नौकर बन कर
तेरी हर चाह सर माथे मढ़ जाता है।
जब भी जाती है तू दूर माँ
मैं पहाड़ से एक छोटा सा टीला बन जाता हूं,
तुझे शक तो होता होगा थोड़ा-सा
तेरी याद में मैं वही नौ साल का छोटा बच्चा बन जाता हूं।
आंधी हो या तूफान या हो काली शाम
मेरी कलम को भरने तेरी स्याही हर कलाम आती है,
तू तो नहीं आती माँ
हर पहर, हर सांस तेरी याद आती है।
बैठा होता हूं अनजाने चेहरों में जब, तेरा यह बनाया चेहरा छुपाए
खड़ा होता हूं जब अपने गम को दुनिया की नज़रों से बचाए,
परस्पर कुचले हुए इस दिल में यह फरियाद आती है
तेरे जाने के बाद माँ अक्सर, तेरी याद आती है।