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“रिहाना के एक ट्वीट ने हमारे लोकतांत्रिक देश के लोकतंत्र की असल तस्वीर बयां कर दी”

रिहाना का ट्वीट

आज ही मैंने ट्विटर पर देखा कि कैसे एक रिहाना के ट्वीट ने पूरे देश को हिला डाला, लेकिन उसके बाद की आम जनमानस एवं राजनैतिक संगठनों की प्रतिक्रियाओं के बाद यह देखने को मिला कि इस समय भारत में लोकतंत्र के सिद्धांतों एवं उसकी गरिमा की हत्या करने का कौन जिम्मेदार है?

आगे आने वाले समय में जब भारत के लोकतंत्र के सिद्धांतों की हत्या के बारे में लिखा जाएगा तो उस में जो सबसे अधिक भागीदारी होगी, उनमे सबसे पहले नाम सत्तारूढ़ राजनैतिक संगठन के साथ कंगना ,अनुपम खेर, सचिन आदि जैसी बड़ी शख्सियतों का भी होगा।

वर्तमान में बढ़ता हुआ हिन्दू और हिंदुत्व का प्रभाव

वर्तमान में राजनैतिक एवं हिन्दू संगठनों के द्वारा हिंदुत्व की आड़ में हमारे देश भारत में क्या किया जा रहा है? और ये जानबूझ कर यह इस देश की युवा पीढ़ियों को किस नर्क में धकेल रहे हैं?

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ऐसी सब घटनाओं का बुरा प्रभाव प्रमुख रूप से समाज की मुख्यधारा से वंचित और देश के शोषित, पीड़ितों पर पड़ेगा। जिस ने आंबेडकर को नहीं पढ़ा समझ लीजिए उन्होंने हिन्दू और हिंदुत्व को समझा ही नहीं और बस सब  धर्म और हिन्दू-हिंदुत्व की आड़ में लोकतंत्र को खोखला किए जा रहे हैं।

अब हम आते हैं देश में हो रहे किसान आंदोलन पर तो लोगों ने इसको किसान आंदोलन कहा लेकिन ये आंदोलन करने वाले किसान कौन हैं? कहीं विदेश से आए हैं क्या ? नहीं, यह हमारे बीच में से निकले ही लोग हैं और शायद मैं भी एक किसान का बेटा हूं, तो इस चीज़ को महसूस कर सकता हूं।

सरकार द्वारा किसानों से उनकी ज़मीन ही नहीं बल्कि वो सब छीनने की कोशिश की जा रही है, जो उनके बाप- दादाओं ने अपने खून-पसीने से सींची थी। वही जमीन जिससे किसान अपने परिवार को पालता है और उसी जमीन के भरोसे अपने बेटे और बेटियों की शादी करता है। उसी जमीन के सहारे वो अपना बुढ़ापा गुज़ारता है और अंत में उसी जमीन की मिट्टी में खुद को समर्पित कर देता है।

सरकार चंद पूंजीपतियों के हवाले यह ज़मीन बेचना चाहती है। इस देश में सबसे ज्यादा राजनैतिक संगठन जो कॉर्पोरेट के समर्थक हैं, उन्होंने और सिर्फ ब्राह्मणों ने रिहाना के खिलाफ मोर्चा खोला है, क्योंकि ब्राह्मण यह भली-भांति जानते हैं कि वे इन बिलों से किसानों की जमीनों पर आसानी से कब्ज़ा कर लेंगे और देश को धर्म और हिन्दू-हिंदुत्व में फंसा देंगे।

वर्तमान में लोकतंत्र की बदहाल वास्तविक स्थिति

आज लोकतंत्र में आप देख ही रहे हैं कि किस प्रकार ब्राह्मणवाद कैसे देश को क़ब्ज़ाये हुए है? और सुप्रीम कोर्ट के जज भी अपना ब्राह्मण धर्म बखूभी निभा रहे हैं। जिस ने भी किसानों के खिलाफ कुछ भी बोला है, मैं उन सबको लोकतंत्र विरोधी व्यक्ति मानता हूं।

जब भी कोई रिहाना बोलती है और देश के नागरिकों से जुड़े मानवाधिकारों के बारे में बोलती है, तभी मंत्रालय में बैठे ब्राह्मण यह नोटिस जारी कर देते हैं कि यह हमारे देश का आतंरिक मामला है। इस हिसाब से पति-पत्नी में पति किसी को मार डाले तो पुलिस कहेगी यह आपका आतंरिक मामला है, अगर कोई लड़का, किसी लड़की को फंसाकर उसका बलात्कार कर दे तो तब भी वह क्या उनका आतंरिक मामला है?

मुझे माफ़ कीजिएगा लेकिन यह देश का आतंरिक मामला नहीं बल्कि अन्तरराष्ट्रीय मामला है, क्योंकि आंतरिक मामला सुनते -सुनते सदियों से दलितों के साथ जो अत्याचार चलता आ रहा है, वो किसी से नहीं छुपा है। इसी आंतरिक मामले की आदत एवं नौकरशाही की वजह से उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है और उनके साथ असहनीय अत्याचार किए जाते हैं।

मैं तो कहता हूं कि अब संयुक्त राष्ट्र को भारत के इस मामले में दखलंदाज़ी करनी चाहिए, इससे पहले कोई तानाशाह फिर से यहूदियों की तरह देश की शोषित, पीड़ित जनता का नरसंहार करना शुरू ना कर दे।

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