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राष्ट्र के नाम एक खुला पत्र

राष्ट्र के नाम एक खुला पत्र

पुलवामा हमले में शहीद हुए हमारे देश के अर्ध सैनिक बलों के जवानों के बाद देश में खासकर सोशल मीडिया पर हमारे भारतीय नागरिकों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा जाहिर किया जा रहा था, इनमें ज्यादातर हिंदी भाषित क्षेत्र से आने वाले लोग अधिक थे।

यह कहना ठीक नहीं है, लेकिन इस हमले के बाद हमारे देश के नागरिकों द्वारा की गई प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण एक पहलू की मांग करता है, वह है आप का सवर्ण हिन्दू होना उसी के संदर्भ में यदि आप सवर्ण हिन्दू ना होकर अन्य धर्म से ताल्लुक रखते हैं या आप इस मुद्दे पर दोनों तरफ से एक स्वस्थ विचार विमर्श किए जाने की वकालत करते हैं और गलती से अगर आप के विचार ऐसे हिन्दू संगठनों या इनके अनुयायियों से नहीं मिलते हैं तो आप देश द्रोह की कचहरी में खड़े किए जा सकते हैं।

इसीलिए वर्तमान समय और लोकतंत्र के बदलते मूल्यों के हमारे देश में आपका संभल कर बोलना बहुत जरूरी है। अब आप इसे जायज़ या नाजायज़ जो कुछ भी कहें, लेकिन हमारे भारतीय लोकतंत्र में अपने विचारों को कहने एवं लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त करने की आज़ादी एक आम नागरिक के पास इतनी ही है। यही वजह थी कि ‘मैं सोशल मीडिया पर ऐसे सभी उलझे हुए सवालों का जवाब नहीं दे पाया, लेकिन यहां यूथ की आवाज पर लिखने की आज़ादी वास्तव में एक लोकतंत्र में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के संदर्भ में बेबाक, निडर एवं लोकतांत्रिक मूल्यों से परिपूर्ण है।’

इसी के तहत मैं सभी राष्ट्रवादियों को, जो आए दिन बेवज़ह हर छोटी से लेकर बेमतलब की बातों पर अपने पडोसी देश पाकिस्तान से युद्ध करने की हिमायत करते रहते हैं और उनके विचारों से असमहत होना मसलन गाली- गलौच, और देशद्रोही जैसी संज्ञाओं से स्वयं को नवाजने जैसा है। इसीलिए मैं उन सबको संबोधन करते हुये यहां कुछ लिख रहा हूँ।

प्रिय राष्ट्रवाद,

युद्ध, जिसकी तुम बात कर रहे हो वह एक विकराल और भीषण समस्या है, पूरे विश्व में आंतकवाद भी एक बड़ी गंभीर समस्या है जिससे पूरा विश्व कहीं ना कहीं जूझ रहा है। विश्व में ऐसी हीं ना जाने कितनी सारीं बहुत सी समस्याएं हैं, जो आंतकवाद, निर्दोष लोगों के कत्ले आम से जुड़ी हुई हैं, जहां एक पक्ष दूसरे पक्ष को अपने ताकतपूर्ण रवैये से डराता है और उसके मूलभूत अधिकारों का भी निर्मम दोहन करता है।

मसलन, एक बेटी, लड़की, बहन, बहु, मां, सास, मौसी, मामी, समाज के बनाए हुए ऐसे तमाम रिश्तों में मौजूद एक नारी को स्वयं उसके ही परिवारजनों के द्वारा उसके ही घर में उसके अधिकारों को कुचला जाता है। देश में आज किसी भी रास्ते पर चल रही एक लड़की का ना जाने कितनी ही आंखे उसका कितने तरीकों से शोषण करती हैं, ये तुम उत्तर भारत में बहुत करीब से देख सकते हो।

वहीं समाज के जात-पात रुपी बनाए गए बंधनों में, अमीरी-गरीबी की परिभाषा में परिभाषित होने वाले, एक पुलिस वाले के सामने खड़ा एक लोकतांत्रिक देश का एकस्वतंत्र नागरिक अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने और अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का निर्बाध उपयोग करने से डरता है, यह भी किसी स्वतंत्र देश में नागरिकों के मानवाधिकारों एवं उनके मूल अधिकारों का भी हनन है। ऐसे हमारे समाज में बहुत से उदाहरण हैं, इसी में एक उदाहरण है की  ‘एक पुलवामा हमले के शहीद को उसी के गांव में जात-पात का सामना करना पड़ा। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, अभी पुलवामा के शहीदों का  नाम हर व्यक्ति की जुबान पर है, लेकिन कुछ समय बाद हर कोई उनके नाम को भूल जाएगा और यह महज़ एक दुःखद घटना बन कर रह जाएगी।

मीडिया का स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं होना

देश का हर व्यक्ति पुलवामा के शहीदों को क्यों भूल जाएंगे?, क्योंकि जल्द ही मीडिया एक और समस्या लेकर आएगा और हर नागरिक उसी की ओर आकर्षित होगा और उसी पर अपना एक पक्ष रखेगा। मसलन, मीडिया हमारे देश के नागरिकों के विचारों को बदलने की सामर्थ रखता है, लेकिन वह यह नही बताएगा कि चीन ने भी हमारी ही जमीन दबा के रखी है लेकिन वह पाकिस्तान की तरफ जरूर उग्र होगा और वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे जुल्मों-सितम पर चुप रहेगा।

यह हमारी ब्राह्मणवादी सोच है, जो ताकत को सलाम करती है और अपने से छोटे, कमज़ोर को जिसे अपने हित के लिये कुर्बान किया जा सके उस पर तंज कसती है, और जो गुलामी कुबूल कर चुका है या जिसकी अभी जरूरत है उस पर वह खामोश रहती है। इसी निगाह से आप चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश को देख सकते हैं, तो फिर हुआ ना भारतीय मीडिया भी एक पालतू जानवर के रूप में कायर।

आम जनमानस की मानसिकता को बदलता सिनेमा

अब मैं क्या चाहता हूँ, कोई भी समस्या वहां के हालातों से बनती है और मैं वहां के हालातों को समझ कर उसे बदलना चाहता हूँ। मसलन, बाबरी मस्ज़िद को शहीद करने से पहले बॉलीवुड में एक फिल्म रोजा आती है, जहां एक मुस्लिम कट्टरपंथी एक आंतकवादी पहली बार भारतीय सिनेमा पर दस्तक दे रहा होता है, जिसे देख कर लोग डरते हैं।

गोधराकांड होने से ठीक कुछ महीनों पहले एक फिल्म गदर आती है, जहां ट्रेन में ही औरतों से बलात्कार करते हुए मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को दिखाया जाता है। इस फिल्म में संवेदनशील दृश्यों एवं भयानक हिंसा के दृश्यों में हर हर महादेव और अल्लाह हु अकबर के नारे लगते  दिखाई देते हैं, जहां हमारी मानसिकता को हिंदू- मुसलमान के कौमी झगड़े के लिए तैयार किया जाता है।

इसी के बाद बॉलीवुड में अब एक नई फिल्म उरी आई है, जहां उसमें मुस्लिम समाज को एक आंतकवादी के रूप में चित्रित किया गया है। अब हम बात करते हैं बाबरी मस्जिद ओर गोधरा कांड जैसे हमलों के समय धर्म की आड़ ले रही एक राजनैतिक पार्टी, जिसे इन सब से चुनावी फायदा हुआ था, अब पुलवामा के बाद भी उसी पार्टी को फायदा होगा, निश्चित है तुम भी उसी को वोट करोगे।

अब जब मैं यह सब हालात के चश्मे से देखता हूँ, तो सब वोट का खेल दिखता है और इसी के संदर्भ में एक साजिश नजर आती है, लेकिन मैं इसे पहले से सुनियोजित साजिश कहने की आज़ादी नहीं रखता क्योंकि हमारे देश में धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर है।

कुछ अनसुलझे,अनकहे सवाल

अब यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है कि देश में राजनैतिक पार्टियां इन सब हथकंडों को वोटों के लिए क्यों अपनाती हैं,क्योंकि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश इन सभी देशों की सरकारें अपने नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं देने में नाकामयाब रहीं हैं। मसलन, रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं की जगह देश का नागरिक अब  इसके लिये नही पुलवामा के लिये बात कर रहा है।

वैसे, अगर मेरे नाम के पीछे का गोत्र शर्मा, वर्मा, गुप्ता, त्रिपाठी, इत्यादि होते तो तब भी तुम मेरा पक्ष जानने की कोशिश करते, अगर नहीं करते तो क्यों नहीं क्योंकि हमारे देश में यही सवर्ण है, जो खुद को देश का सबसे वफादार एवं देशभक्त साबित करने में लगा हुआ है। वह दूसरों को देशद्रोही, गद्दार बताता है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है की यही वह समुदाय है जो सबसे ज्यादा भ्रष्ट है और जिसने सबसे ज्यादा देश में आर्थिक घोटाले किए हैं।इन आर्थिक घोटालों को भी आंतकवाद की संज्ञा दी जा सकती है, जो की हमारा मीडिया नहीं देता क्योंकि किसी ना किसी रूप में वह भी इन आर्थिक घोटालो का लाभार्थी है।

मैं अभी-अभी सोच रहा था कि एक सवर्ण हिंदू के लिये ये हालात वास्तव में बहुत दर्दनाक हैं। मेरे बहुत से अज़ीज  दोस्त, जो सवर्ण हैं और गरीबी की गुर्बत से फिलहाल निज़ात पा चुके हैं, लेकिन एक गरीब सवर्ण के हालात बहुत दयनीय हैं, वह भूखा है, छत से भी दूर है लेकिन वह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से सवाल नहीं कर सकता क्योंकि उसे सरकार ने हिंदू होने का एक अहम दे दिया है जो बस उसी में खुश है।

देश के हालात बहुत दयनीय होते जा रहे हैं, मैं चिंचित इसलिए भी हूं क्योंकि जब एक व्यवस्था हारती है तब वह अक्सर दंगो, अराजकता और कत्लेआम जैसी बीमारियों को जन्म देती है। अब देखना यह होगा की हमारे देश का आने वाला समय कैसा होगा ? मैं सभी देशवासियों के कुशल स्वास्थ्य की प्रार्थना जरूर करता हूं।

धन्यवाद

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