मैं 17 वर्ष की आयु में 12वीं की परीक्षा में बहुत उम्मीदों के साथ सम्मिलित हुआ था लेकिन जब मेरा रिज़्लट प्रकाशित हुआ तो मुझे पता चला कि मैं परीक्षा के उस विषय में फेल हुआ हूं, जो मेरा विषय था ही नहीं और बोर्ड द्वारा की गई इस त्रुटि को सुधारने के प्रयास में पता चला कि मेरे मुसलमान होने के कारण इस त्रुटि को सुधारा नहीं जा सकता।
साल था 2015, और मेरी उम्र थी महज 15 वर्ष जैसे-तैसे करके बिहार बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में पास हुआ। मेरे दसवीं कक्षा में अंक भी बहुत कम आए थे, तो मुझे अपने मनचाहे विषय में नामांकन मिल पाना नामुमकिन था।मेरी बड़ी बहन की जिले के एक नामी कॉलेज में महिला प्रोफेसर से मित्रता थी। मेरी बहन ने उनसे अनुरोध करने पर मेरा उस कॉलेज में मेरा नामांकन वाणिज्य विषय में हो गया।
(कॉलेज : – बिहार में दसवीं कक्षा के बाद से ही कॉलेज प्रारंभ हो जाते है। अधिकांश डिग्री कॉलेज 11वीं कक्षा से ही प्रारंभ होते हैं ।)
मैंने अपनी 11वीं और 12वीं की पढ़ाई अपने गृह जिला में ही रह कर पूरी की। जैसे तैसे 2 वर्ष बीत गए और मुझे वक्त के गुजरने का अंदाजा ही नहीं हुआ। इन 2 वर्षों में बहुत सारे नए लोगों से मुलाकात हुई। बहुत सारे नए रिश्ते बने, कोई दोस्त बना, कोई भाई बना, कोई बहन बनी तो कोई प्रेमिका बनी। सभी से परीक्षा से पूर्व कभी ना पूरा होने वाले वादे हुए। हमने बहुत सारी रणनीतियां बनाई गई। सभी लोगों ने कहा अब हम एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।
हमने एक-दूसरे से वादा किया कि आगे की स्नातक की पढ़ाई के लिए नामांकन एक ही विश्वविद्यालय में कराएंगे और सब एक ही जगह रहेंगे। इन्हीं वादों-इरादों के साथ हम लोग आगे बढ़ते रहे और चंद दिनों में हमारी परीक्षा आ गईं। परीक्षा में शामिल होने से पूर्व मेरे साथ एक घटना घटी ।
बिहार बोर्ड के 12वीं के परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए सभी छात्र-छात्राओं को 200 अंक के भाषाई विषय लेने पड़ते हैं। बिहार बोर्ड के इसी कानून को मानते हुए मैं भी अन्य छात्र-छात्राओं की तरह 12वीं के परीक्षा फॉर्म के भाषाई कॉलम में 50 अंक हिंदी, 50 अंक अंग्रेजी एवं 100 अंक उर्दू भर दिया।
लेकिन जब बिहार बोर्ड के द्वारा हमारे परीक्षा प्रवेश पत्र जारी किए गए तो मेरे प्रवेश पत्र पर मेरे भाषाई विषय में परिवर्तन नजर आए, मेरे प्रवेश पत्र पर उर्दू के 150 अंक एवं हिंदी के 50 अंक अंकित थे। लेकिन, मेरी अंग्रेजी भाषा के 50 अंक गायब कर दिए गए थे। इस परिवर्तन को देखकर मैं अपने परीक्षा फॉर्म की छायाप्रति के साथ अपने कॉलेज के प्रधानाध्यापक से जाकर मिला। प्रधानाध्यापक मेरे परीक्षा फॉर्म की छाया प्रति एवं परीक्षा प्रवेश पत्र के परिवर्तन को देखकर कहा कि जो विषय प्रवेश पत्र पर दिख रहे हैं, तुम उन्हीं विषयों की परीक्षा दो। अब इसमें कुछ भी परिवर्तन नहीं हो सकता।
मैंने प्रधानाध्यापक की बातों को मानते हुए प्रवेश पत्र पर अंकित भाषाई विषय की परीक्षा दे दी। मुझे विश्वास था कि मैंने जिन विषयों का परीक्षा दी है, मुझे उन्हीं विषयों के परिणाम मिलेंगे। लेकिन, मेरा विश्वास उस वक्त टूट गया जब बिहार बोर्ड के द्वारा 12वीं के परिणाम को घोषित किया गया। बिहार बोर्ड ने बारहवीं का परिणाम जारी करते हुए मुझे उस विषय में अनुपस्थित दिखाते हुए फेल किया जिसकी परीक्षा से मेरा कोई लेना-देना ही नहीं था।
बिहार बोर्ड के द्वारा 12वीं के परिणाम में मेरे भाषाई विषयों में उर्दू के 50 अंक की जगह अंग्रेजी के 50 अंक का परिणाम दिखाया गया और अंग्रेजी के पेपर में मुझे परीक्षा से अनुपस्थित दिखाया गया। लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि बिहार में जब भी कोई 50 अंकों की विषय की परीक्षा होती है तो उसके साथ एक और मतलब एक साथ दो 50-50 अंको के पेपर लिए जाते हैं और दोनों पेपर एक ही हाज़िरी में दर्शाए जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में कोई छात्र 50 अंक की एक विषय में कैसे अनुपस्थित हो सकता है?
जब बोर्ड परीक्षा का परिणाम मेरे पिताजी को पता चला तो उन्होंने अपने कुछ मित्रों से संपर्क किया । पिताजी के मित्रों ने सलाह दी कि इस त्रुटि को कॉलेज के माध्यम से ही सुधारा जा सकता है, आप लोग एक बार कॉलेज के प्रधानाध्यापक से संपर्क करें। पिताजी के दोस्तों के बातों को मानते हुए, जब मैं अपने पिताजी के साथ अपने कॉलेज पहुंचा तो प्रधानाध्यापक ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि अब इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हूं। यह कार्य बिहार बोर्ड का है, आप बिहार बोर्ड के पटना ऑफिस में पहुंचकर अपने गृह जिले की देखरेख करने वाले ऑफिसर से मुलाकात करें।
प्रधानाध्यापक की बातों को मानते हुए, जब मैं प्रथम दिन बिहार बोर्ड के मुख्य ऑफिस पटना पहुंचा तो मेरे जैसी त्रुटि के मामले से संबंधित हजारों की तादाद में फरियादी बोर्ड ऑफिस के दरवाजे पर अपनी फरियाद लेकर पहुंचे थे। इतनी भारी तादाद में बोर्ड के द्वारा की गई त्रुटि को देखकर थोड़ा सुकून मिला, क्योंकि जब इतनी भारी संख्या में छात्र-छात्राओं के परिणामों में त्रुटियां हुई हैं तो निश्चित रूप से बोर्ड ऑफिस अपने द्वारा की गई त्रुटियों को स्वीकार करते हुए सुधारने का प्रयास करेगा।
बोर्ड ऑफिस के मुख्य दरवाजे पर पहुंचने के बाद मैं घंटों लाइन में लगा। लगभग ढाई घंटे लाइन में लगने के बाद मैं दरवाजे से बोर्ड ऑफिस के अंदर प्रवेश हुआ। मैं अंदर गया तो अंदर कार्यरत चपरासियों के मदद से अपने गृह जिले की कमरे तक पहुंचा और वहां पहुंचकर अपने गृह जिले की देखरेख करने वाले ऑफिसर को एक पत्र देते हुए अपनी आप बीती अपनी जुबानी सुनाई । मेरी आपबीती सुनकर ऑफिसर ने दिलासा देते हुए मुझसे कहा कि घबराओ नहीं तुम्हारा परिणाम अवश्य आएगा थोड़ी सी मेहनत करो और परिणाम लेकर जाओ।
मेरे गृह जिले के ऑफिसर ने मेरी आपबीती को सुनकर एक फाइल बनाई और फाइल मुझे थमांते हुए कहा कि अब फलाने तारीख को हमारे सीनियर ऑफिसर के कमरे में जाकर मिल लेना, वहां से तुम्हारी परीक्षा परिणाम सुधार दी जाएगी। मैं ऑफिसर की बातों को मानकर बोर्ड ऑफिस से बाहर निकला और पटना से लगभग 70 किलोमीटर दूर अपने घर वापस आ गया। अगली बार मैं फिर दी हुई तारीख पर वापस बोर्ड ऑफिस गया तो पता चला सीनियर ऑफिसर किसी काम से बाहर गए हुए हैं, इस वजह से सीनियर ऑफिसर से अगले दिन मुलाकात होगी।
अगले दिन पुनः बोर्ड ऑफिस अपनी मुंह बोली (हिंदू) बहन के साथ उस सीनियर ऑफिसर तक पहुंचा। सीनियर ऑफिसर के पास जाकर, मैं अपनी आपबीती सुना ही रहा था तब तक उन्होंने कहा कि तुमने अपना नाम नहीं बताया, उनके इस सवाल को सुनते ही मैंने माफी मांगते हुए उन्हें अपना नाम बताया।
जैसे ही उन्होंने मेरा नाम सुना तो वह अपनी कुर्सी छोड़ खड़े हो गए और पूछा तुम मुसलमान हो? मैंने कहा हां! तो उन्होंने मुझ पर चिल्लाते हुए कहा तुम पहले कमरे से बाहर निकलो। उनकी ऐसी बातों को सुनकर मुझे जोर का झटका सा लगा और मैं कमरे के बाहर निकल आया।
कमरे के बाहर मेरी मुंह बोली (हिंदू) बहन खड़ी थी। उसने मुझसे पूछा क्या हुआ भाई? मैंने उसे कुछ नहीं बताया और उसे कहा कि सर ने इंतजार करने के लिए बोला है। हम दोनों भाई-बहन उस सीनियर ऑफिसर के दरवाजे के बाहर लगभग 2 घंटे खड़े रहे। 2 घंटे के बाद अंदर से एक चपरासी आया और बोला की आप लोग अपना फाइल जमा करके जाओ, आपको सर ने कल बुलाया है।
चपरासी की बातों को मानते हुए हम लोग चपरासी को फाइल थमाकर वहां से निकल गए और हमने अगले दिन फिर ऑफिसर के दरवाजे पर दस्तक दी। अगले दिन जब मैं उसके कमरे के दरवाजे पर खड़ा था, तभी वह अपने कमरे के अंदर घुसा और चिल्लाते हुए कहा कि आज फिर इस मुस्लिम की शक्ल पर नजर पड़ गई, पूरा दिन खराब रहेगा, इसे कह दो इसका काम नहीं हो सकता।
उस सीनियर ऑफिसर की ज़बान से इस बात को सुनकर मैं हिल सा गया। उस ऑफिसर की इस बात से यह सिद्ध हो चुका था, कि वह मेरे इस्लाम धर्म के होने कारण मेरा काम नहीं कर रहा है, क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में मेरा मुसलमान होना अपराध है?
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