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भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक बिहार

भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक बिहार

 

मैं बिहार हूँ, आज मेरा आधुनिक जन्मदिवस है, वास्तविक क्या है वो मुझे ठीक से याद भी नहीं लेकिन आज बृहद्रथ जीवित होता तो शायद आपको बता भी देता आखिर उसने और उसके पुत्र ने ही तो मुझे बसाया है। राजगृह से लेकर वैशाली और पाटलिपुत्र और अब पटना (पाटिलपुत्र का परिवर्तित नाम ) को मैंने बनते संवरते देखा है। मैं उस पुत्र का पिता हूं जिसने सर्वप्रथम पूरे भारतवर्ष में मेरी सुरक्षा के लिए स्थाई सेना का बंदोबस्त किया था।

बिहार का गौरवशाली इतिहास

‘मैं चरक की भूमि हूँ, मैं ही पूरे संसार में चिकित्सा का जनक हूँ। चंद्रगुप्त की जन्मभूमि से लेकर चाणक्य की कर्मभूमि हूँ। मैं ही वह संकल्पना हूं जिसने सर्वप्रथम संयुक्त भारत का सपना अपनी दोनों खुली आंखों से देखा और उस सपने को मेरे पुत्र अशोक ने पूर्ण किया। मैं ही वो बिहार हूँ, जिसने एक शासक की महत्वाकांक्षा को देखा और मैं ही वह बिहार हूँ जिसने एक शासक को अस्त्र त्याग करते देखा है। एक राजा को सेवक बनते देखा है, पटना शहर को बिन ताले के सुरक्षित और चिंता मुक्त रहते देखा है।’

गया के पावन बोधि वृक्ष के नीचे मैंने बुद्ध को तप और ज्ञान प्राप्त करते देखा है, शाल वृक्ष के नीचे महावीर को कैवल्य प्राप्त करते देखा है। मैंने स्वयं को बुद्ध,महावीर के चरणों का स्पर्श पाकर खुद को धन्य होते पाया है। विश्व शिक्षा के केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय को मैंने सजते संवरते देखा है। आर्यभट्ट और नागार्जुन को खगोलीय, गणितीय  गणना करते देखा है। मैं बिहार हूँ, मैंने अपने समक्ष भारत को बसते संवरते देखा है। आजादी के आंदोलन से, भारत के प्रथम राष्ट्रपति तक के लिए सबसे पहले मैंने कदम बढ़ाया है। अपने धर्म चक्र से देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का मान बढ़ाया है।

बिहार के गौरवशाली अतीत से वर्तमान की सोचनीय स्थिति

प्राचीनता के गौरव की गाथा के साथ मैंने आधुनिकता की शर्मिन्दगी को भी झेला है। हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के अपने ही भाईयों को आपस में मरते-कटते देखा है। विश्व की शिक्षा के केंद्र रहे बिहार में एक पांचवी पास को मुख्यमंत्री को भी बनते देखा है। उस में अपने पैर पसारते बर्बर जंगलराज को भी देखा है, लोगों के अपहरणों को व्यवसाय बनते भी देखा है। राजनीतिक फायदे के लिए सुशासन की खोती धार को भी देखा है। स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, पुस्तकें नहीं हैं फिर भी मैंने अपने बच्चों को तेल की डिब्बी के सामने पुस्तक लिए रातों-रात आंखें जलाते देखा है, भारत के अधिकांश जिलों में अपने बच्चों को देश का प्रशासन चलाते देखा है।

लाख खामियां हैं मेरे इस आधुनिक चेहरे में लेकिन फिर भी मैंने हर मुश्किलो में मैंने बिहार को बढ़ते देखा है, खो जाते हैं रास्ते लेकिन मैंने उसे पुनः पाने की कोशिश करते देखा है। शिक्षा का क्षेत्र हो या राजनीति का अखाड़ा मैंने खुद को स्थापित होते देखा है, मैं भारत के झंडे में हूँ, उसके हर सरकारी दस्तावेज़ में हूं। मैं बिहार हूं, मैं भारत का आधार हूं क्योंकि मैंने ही संयुक्त भारत के सपन को देखा और साकार किया है।

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