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ब्यूरोक्रेसी एवं सामज को सामंती मानसिकता से बाहर निकालने का मौका देता बजट-2021

कोरोना महामारी के अस्त एवं नए दशक के उदय के अवसर पर विश्व अनेक निर्णायक परिवर्तनों से गुज़र रहा है। विकसित अर्थ्व्यवस्थाओं की स्थिरता अप्रत्याशित स्तर पर जांची जा रही है एवं पारिणाम इस ओर इंगित कर रहे हैं कि विकसित अर्थव्यवस्था की परिभाषा भी समय के अनुकूल नया रूप धारण करना चाहती है। महामारी के दौरान कई पाश्चात्य सम्मानित संस्थाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था के धरसाई होने की गारंटी दे रहे थे।

आज की स्थिति

भारत, पूर्ण स्थिरता के साथ, एक विस्तृत कार्ययोजना की घोषणा कर रहा है। गणतंत्र दिवस पर विश्व के कई राष्ट्रों को “वैक्सीन मैत्री” के तहत मुफ्त में कोरोना की दवाई दे रहा है। यह विश्व को इस बात का भी साक्षी बना रहा है कि भारत द्वारा अपनी धरती पर विकसित तेजस विमान उसी गति से उड़ान भर रहे हैं। यहां तक कि भारत को रात दिन गाली देने वाले इमरान खान को भी भारत सरकार ने मुफ्त में वैक्सीन देने का अद्भुत फैसला लिया है। 

मकसद है कि पड़ोसी देशवासी सुखी हों और स्वविकास पर ध्यान दें। ज्ञात हो कि भरतीय संविधान के अनूच्छेद 51 में अंतरराष्ट्रीय शांति के समर्पण की बात की गयी है। सरकार का फैसला एकदम संविधान सम्मत है। उसी संविधान में कहीं भी बजट जैसा कोई शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया है परंतु यह एक परिपाटी बन गई है। संविधान के अनुच्छेद 112 में वार्षिक वित्तीय विवरण की बात की गयी है जिसके अंतर्गत प्रतिवर्ष सांसद में बही खाता रखा जाता है।

बजट का आना उम्मीद जगाता है

उपर्युक्त स्थितियों में यह बजट का आना एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। अगर इस बजट को एक पंक्ति में संकलित किया जाए तो मेरी समझ से यह बजट गत 4 बजटों में बनाए गए तांत्रिक व्यवस्थाओं पर निर्भर सुधारों को मूर्त रूप देने वाला बजट है। इसी वजह से यह बजट आर्थिक व्यवस्था को 6 पहलुओं से देखता है जिनमें स्वास्थ्य, आर्थिक अधोसंरचना, मानव विकास, अनुसंधान एवं नवाचार, समेकित विकास एवं बेहतर प्रशासन को रखा गया है। एक युवा होने के नाते मेरे लिए यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि सरकार मानव विकास, व्यापार एवं आयकर पर क्या करती है।

प्रथम दृष्टया, इस बजट के द्वारा भारतीय बाज़ार को पूर्ण रूप से वैश्विक बाज़ार के साथ जोड़ दिया गया है। अब एक विदेशी नागरिक भी भारत में उसी प्रकार अपनी कम्पनी चला पाएगा जैसे एक भारतीय नागरिक चलाता है। इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि भारत में भी वैश्विक बाज़ार की झलक दिखेंगे। ऐसे में स्थानीय प्रशासन एवं कच्चे माल के खरीद बिक्री की प्रक्रिया से सरकार की अप्रत्यक्ष भागीदारी जैसे पहलू महत्वपूर्ण होंगे।

बीमा सेक्टर में प्रशासनिक एवं आर्थिक पहलुओं में विदेशी प्रभाव को बढ़ा कर देश के बचत एवं भरपाई की प्रक्रिया को वैश्विक स्तर पर लाने की कोशिश हुई है। इसके अलावा बड़े व्यापार की तरफ प्रत्यक्ष रूप से यह बजट कुछ खास नहीं करता है। बल्कि छोटे एवं स्थानीय व्यापार को बढ़वा देने हेतु अनेक अर्हताओं में छूट दी गयी है। अब देखना यह है कि राज्य सरकारें किस प्रकार इस अवसर का उपयोग करती है क्योंकि स्थानीय व्यवस्था एवं आर्थिक नीति तो उनके पाले में है।

शिक्षा के क्षेत्र में नई शिक्षा नीति

इसे मूर्त रूप देने हेतु कार्य करना शुरू कर दिया है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में ज्ञान आदान प्रदान एवं स्थानीय भाषाओं के संरक्षण हेतु भारतीय अनुवाद संस्थान के पूर्ण उपयोग हेतु यह ज़रूरी है कि देश के हर तपके में अपने सामाजिक ज्ञान को संरक्षित एवं सामवर्धित करने की भावना जागृत हो। शायद इसी वजह से सैनिक स्कूल जैसे संस्थान, जो शुरू से ही विभिन्न संस्कृति के विद्यार्थियों में राष्ट्रवादी एकता का संचार करता है, के गठन में गैर सरकारी संस्थानों एवं निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी की बात की गयी है।

इन सबके बाद यह ज़रूरी है कि इस सम्पूर्ण व्यवस्था का लाभ लेकर सही दिशा में ऊर्जा निवेश करने वाले मानव संसाधन की उपलब्धता क्या है? न्यूनतम वेतन, महिलाओं को 24 घंटे कार्यालय में कार्य करने की अनुमति, एवं विस्थापित मज़दूरों हेतु अलग पोर्टल बनाकर गंतव्य राज्य में बीमा एवं किराए के सरकारी मकान की व्यवस्था करना एक स्वागत योग्य कदम है।

कपड़ा उद्योग पर अतिरिक्त कर लगने से सम्भावना है कि वस्त्रों की महंगाई बढ़े। इस कदम का सकारात्मक पक्ष यह है कि इसका रचनात्मक प्रभाव वायु प्रदूषण एवं ऊर्जा संरक्षण जैसे पहलुओं पर दिखेगा। मालूम हो कि वायु प्रदूषण हेतु वस्त्र उद्योग एवं वाहनों के टायर का सड़क पर घिसना एक बड़ा कारण है। संचरण के प्रदूषण को हाई कम करने हेतु सरकार ने देश में मेट्रो रेल के जाल को बढ़ाने हेतु कार्यरत है।

विकासशील राज्यों की अर्थव्यवस्था हेतु यह एक सुनहरा अवसर है जब वह व्यापार हेतु बेहतर से बेहतर स्थिति पैदा करेंगे।

अब उनका लक्ष्य सिर्फ देशी युवा नहीं होने चाहिए बल्कि विदेशी युवा भी लुभाए जा सकते हैं। इससे यह भी सम्भव है की राज्य स्तर की शैक्षणिक संस्थानों को विदेशी संस्थानों के के साथ साझेदारी की सम्भावनाएं बढ़ें। सरकार अब निजी क्षेत्र के नवाचार एवं उद्दयमिता को गले से लगा चुकी है।

ऐसे में ज़रूरत यह है कि सामज अपने युवाओं को सरकारी नौकरी के लिए उनके सरनिम समय को व्यर्थ करने पर मजबूर न करें। बल्कि उद्यमिता को वाजिब स्वीकार्यता प्रदान की जाए। इतिहास गवाह है, भारतवर्ष अपने उद्यमिता जनित व्यापार की वजह से ही सोने की चिड़िया बना था। उसी वजह से ज्ञान और नैतिकता के नए कीर्तिमान स्थापित किए गए थे और भारत एक नवाचार की धरती था।

औपनिवेशिक किलों को ढाहती यह बजट ब्यूरोक्रेसी एवं सामज को सामंती मानसिकता से बाहर निकालने का एक मौका और देती है।

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