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कैसे बिहार में आर्थिक तंगी के कारण टीबी के मरीज़ों की मुसीबतें बढ़ रही हैं

लोगों में टीबी को लेकर शुरू से भय की स्थिति रहती है, क्योंकि टीबी के इलाज समेत रोगी के खान-पान में होने वाले खर्च को लेकर लोगों को सही जानकारी नहीं होती, जिस कारण उन्हें टीबी की बीमारी से ज़्यादा उसमें होने वाले खर्च की चिंता सताती है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा इसके निवारण के लिए निश्चय पोषण योजना चलाई जाती है, जहां टीबी के रोगियों को बीमारी के दौरान हर महीने 500 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है।

यह राशि सीधे मरीज़ के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की जाती है। जैसे ही किसी व्यक्ति में टीबी के लक्षण मिलते हैं, उसे एक टीबी मरीज़ के रुप में रजिस्टर कर लिया जाता है। पहली किस्त के रुप में 1000 रुपये की मदद की जाती है, फिर बीमारी खत्म होने तक हर महीने 500 रुपये की आर्थिक मदद मिलती रहती है।

पेट दर्द के इलाज में टीबी की पुष्टि

हालांकि, अनेक टीबी रोगियों को इसकी जानकारी नहीं होती, जिस कारण उन्हें कुपोषण और गरीबी के कारण टीबी के दौरान दोहरी परेशानी का सामना करना पड़ता है। बिहार (पटना) की रहने वाली प्रीती कुमारी बताती हैं कि उन्हें पेट में दर्द की शिकायत थी।

साथ ही उन्हें पेट दर्द के साथ खांसी होती थी, जिसके बढ़ने के बाद उन्होंने डॉक्टर को दिखाया और उनका इलाज जब आगे बढ़ा तब मेडिकल रिपोर्ट में टीबी की पुष्टि हुई। टीबी की जानकारी मिलने के बाद उनके सामने पैसों की तंगी आ गई।

आर्थिक तंगी के कारण कुपोषण

प्रीती बताती हैं कि उन्हें जो दवाईयां सोमवार को खानी होती थी, वे दवाईयां उन्हें दो-तीन दिन के बाद मिलती थी। साथ ही साथ खाने में उन्हें दूध और अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेने में परेशानी हुई थी। घर में आय का निश्चित स्त्रोत नहीं होने के कारण उन्हें टीबी के दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उस वक्त उन्हें आस -पास के लोगों और घर के अन्य सदस्यों की मदद लेनी पड़ी, तब जाकर उन्हें कुछ सहायता मिली।

प्रीती के अनुसार उन्हें टीबी के दौरान सही खान-पान नहीं मिलने के कारण कमज़ोरी महसूस होती थी। उनका एक छोटा बच्चा भी था, जिस कारण उन्हें और भी ज्यादा परेशानी हुई।

सरकारी सुविधाओं की जानकारी नहीं होना

सामान्यतः टीबी के ठीक होने में 6 महीने का वक्त लगता है मगर आर्थिक तंगी और कुपोषण के कारण उन्हें ठीक होने में ज़्यादा समय लग गया। साथ ही साथ टीबी के सूचक लक्षण खांसी, मुंह से खून आना जैसी समस्या उनके साथ नहीं हुई। उन्हें पेट में दर्द महसूस होता था, जिसे अधिकांश लोग टीबी के लक्षणों में ज़्यादा शामिल नहीं करते हैं। सरकार द्वारा मुहैया कराई जानी वाली सुविधाओं के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी, जिस कारण उन्हें सरकार द्वारा मिलने वाली आर्थिक सहायता नहीं मिली।

यह केवल प्रीती की समस्या नहीं हो सकती, बल्कि जानकारी के अभाव में अन्य टीबी रोगियों की हालत भी कुछ ऐसी ही हो जाती है।

टीबी को बढ़ाने में गरीबी और कुपोषण सहायक 

कुपोषण और गरीबी टीबी को खत्म करने की राह में सबसे बड़ा बाधा है, क्योंकि लोगों की मृत्यु टीबी के साथ-साथ उन्हें सही खान-पान ना मिलने और दवाईयों के डोज़ मिलने पर शरीर के कमज़ोर होने से हो जाती है, ऐसी स्थिति में लोगों को सही पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

बिहार में बजट के दौरान महिलाओं को रोज़गार देने, आरक्षण देने, आर्थिक रुप से मज़बूत बनाने की बात हुई है मगर महिलाओं की सेहत और स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों को लेकर सरकार की तरफ से कोई जन-कल्याणकारी योजना नहीं आई है। महिलाओं के लिए स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों का आना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि महिलाएं ही अगर सेहतमंद नहीं होंगी, तब समाज भी सेहतमंद नहीं हो सकेगा। महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सरकार को योजनाएं ज़रूर लानी चाहिए ताकि कुपोषण और गरीबी के कारण महिलाओं की सेहत के साथ खिलवाड़ ना हो सके।


नोट: यह लेख SATB फेलोशिप के तहत लिखी और प्रकाशित की जा रही है।

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