हम जिस दौर में जी रहे हैं, वो 21 वी सदी का आधुनिक दौर है। इस दौर में अलग-अलग तरह के फैशनों की भरमार है, जिसमें से एक है संगीत, संगीत के बिना हम सभी का जीवन अधूरा है। चाय की टपरी से लेकर बड़े-बड़े मॉल तक संगीत का बजना, बताता है कि संगीत हमारे लिए एक औषधि की तरह भी काम करता है।
भारतीय सिनेमा ने संगीत में हर दशक एवं अपने दौर में हमारे लिए कर्णप्रिय एवं मधुर संगीत, सदाबहार गीत दिए हैं, जिनमें से कुछ अपनी अलग भावों की प्रस्तुति एवं सुमुधर संगीत के कारण जैसे- ” ये चाँद सा रोशन चेहरा ” और चुम्मा-चुम्मा” सबके दिलों-दिमाग में हमेशा के लिए अमर हो गए।
हमारे भारतीय संगीत की प्राचीन परंपरा
भारत में संगीत की परंपरा आदिकाल के समय से ही रही है। हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग-अलग प्रकार के संगीत यंत्र देखने को मिलते हैं, उदाहरण के लिए विष्णु के पास शंख है, तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। इसलिए संगीत को पवित्र भी माना जाता रहा है, परन्तु अब शास्त्रीय संगीत में पवित्रता की जगह रॉक म्यूजिक, रैप, हिपहॉप, जैज़ रोमांटिक, जैसे आदि संगीतों ने ले ली है।
संगीत को लोग सिर्फ मनोरजंन के लिए ही नहीं सुनते बल्कि संगीत से हमारा मन और मस्तिष्क पूरी तरह से शांत और स्वस्थ भी रहता है, इसलिए कभी-कभी लोग अपना मन शांत करने के लिए भी संगीत को सुनना पसंद करते हैं।
आधुनिक दौर में संगीत की परिभाषा
आज कल का 21 वी सदी का युवा जोशीले, रोमांचक संगीत-गीत सुनना पसंद करता है। अगर हम आपस में संगीत की बात करते हैं तो लोगों के जहन में ज्यादातर रोमांटिक गीत आते हैं, क्योंकि चाहे हिन्दी भाषा या फिर पंजाबी भाषा या किसी अन्य भाषा के के गीत हों, हम सभी भाषाओं में हमेशा रोमांटिक गानों की संख्या दूसरे गानों के मुताबिक ज्यादा पाते हैं। जिस से हम संगीत को प्रेम बांटने या फिर प्रेम को दर्शाने का एक माध्यम भी मान सकते हैं।
अगर हम संगीत के बदलते स्वरुप पर अपनी एक नज़र डालें तो हम देखते हैं कि आजकल के अधिकतर संगीत प्रेम, टूटे-दिल तथा दुख पर बनाए जाने लगे हैं। 90 के दशक के गीतों में भक्ति,आराधना, प्रेम आदि देखने को मिलता था। पहले के गीतों एवं संगीतों का अतंराल ज्यादा लम्बा होता था, परन्तु वर्तमान सिनेमा के गानों में बोल जल्दी ही शुरु हो जाते हैं क्योंकि आज का युवा गानों में ट्यून से ज्यादा शब्दों पर ध्यान देता है जिसे ” लिरिक्स ” कहते हैं।
संगीत का दौर इतनी तेज़ी से बदल रहा है कि संगीत में इस्तेमाल होने वाले यंत्र जैसे तबला, बाँसुरी, ढोलक, चिमटा आदि के बजाय लोग अब गिटार और पियानो ले रहे हैं। अब लोगों को “किशोर कुमार” के शांत गानों की बजाय यो यो हनी सिंह ,बादशाह, मिका सिंह के रैप पसंद आते हैं।
आज के बदलते संगीत के दौर में सिर्फ इतना ही नही कि संगीत के सिर्फ गायक बदल रहे हैं, संगीत को गाने- दर्शाने का ढंग भी बदल रहा है, जैसे- पहले गायक सिर्फ गाने-गाते थे और पर्दे के पीछे रहते थे, लेकिन अब समय बदलने के साथ पर्दे के पीछे रहने वाले गायकों को लोग स्क्रीन पर थिरकते हुए देखना पसंद करते हैं।
पुराने दौर के संगीत की सौंधी महक
पहले के संगीत शादी के समारोहों एवं पारिवारिक दृश्यों को ध्यान में रखकर बनाए जाते थे। जिससे भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की एक अलग विशेष झलक देखने को मिलती थी। ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’, ‘मेहंदी सजाकर रखना’, और ‘छोटे-छोटे भाइयों के बड़े भैया’ जैसे गीतों में भारतीय संस्कृति का अद्भुत संगम दिखाई पड़ता था। लेकिन, कहा जाता है कि समय के साथ परिवर्तन होना प्रकृति का नियम है। आज बेशक भले विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में कितना भी विकास हुआ हो, लेकिन हमने अपने संगीतों में वो झलक खो दी है जो कि हमारी प्राचीन पौराणिक संस्कृति को दर्शाती थी।
आजकल के गायक-गायिकाओं ने अपना और संगीत का एक अलग अंदाज कायम किया है। यूरोपियन वाद्ययंत्रों को भारतीय वाद्ययंत्रों तबले, बांसुरी के साथ अनोखे सुर और ताल में बैठाने का प्रयास किया है। नये सुरों को नयी माला में पिरोया गया है। ऐसे गानों पर युवा थिरकना और अपनी कूल पार्टी में’ पार्टी ऑल नाइट्’ जैसे गानों में झूमना पसंद करते हैं।
हम जिस दौर में जी रहे हैं, वो आधुनिक दौर है। इस दौर में अलग-अलग तरह के फैशनों की भरमार है। जिसमें से एक है संगीत, बॉलीवुड को लीक से हटकर संगीत देने वाले अमित त्रिवेदी ने बताया कि गाने हिट हो जाने के बाद भले ही लोग उनकी वाहवाही करते हों लेकिन रिलीज से पहले निर्माता निर्देशकों को इस तरह के अलग-थलग संगीत के लिए राजी करना आसान नहीं होता। यह एक बेहद कठिन रास्ता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ तो बदलते समाज के साथ संगीत बदलता है तो कुछ बदलते संगीत के साथ समाज की पसंद बदलती है, लेकिन सच्चा कलाकार वही करता है, जो उसका दिल कहता है।
उनके अनुसार इस समय दुनिया भर के संगीत को सुनने तक हर किसी की पहुंच है, विज्ञान एवं नवीन तकनीक ने आसमान की ऊंचाइयां छू ली हैं और लोग प्रयोगों के लिए, कुछ नया सुनने के लिए हर घड़ी तैयार हैं। ऐसे में यह भारतीय फिल्म संगीत का सबसे रोचक दौर है।
जीवन का अभिन्न अंग संगीत
संगीत की जीवन में अपनी अलग भूमिका है, जिसका स्थान शायद ही कोई और ले सकता है। संगीत हमारे मन मस्तिष्क को आराम देने के लिए भी उपयोगी है।
आजकल के समय में जब किसी एक व्यक्ति के पास दूसरे व्यक्ति के लिए समय नहीं है तब ऐसे में संगीत ही है जो हमारे अकेलेपन को दूर करने में मदद करता है।
हर समारोह इस के बिना अधूरा सा महसूस होता है, इंसान के जन्म के अवसर से लेकर मृत्यु की शैया तक संगीत जुड़ा हुआ मिलता है।आज के सुरों और पुराने गानों के सुरों में जमीन-आसमान का अन्तर आया है, लेकिन आज भी लोग पहले की भांति गाने के बिना नहीं रह सकते। बेशक नए गाने आ गए हों, लेकिन पुराने गानों की जगह दिल में आज भी है और हमेशा रहेगी।