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विपक्ष के लाल टोपी पर ऐसा तंज क्या एक राज्य के मुख्यमंत्री को शोभा देता है?

सफेद कुर्ता-पायजामा, काली जैकेट और बालों पर हाथ फिराते हुए जब अखिलेश लाल रंग की टोपी लगाते हैं तो समाजवाद के झंडे को उठाकर चलने वाला एक-एक कार्यकर्ता ऊर्जा से भर जाता है। लाल टोपी लगाकर जब अखिलेश अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हैं तो समाजवाद ज़िंदाबाद के गगनचुंबी नारों की ध्वनि गुंजाएमान होती है।

शायद यही गर्व भाजपा नेताओं को तब होता होगा जब वो भगवा गमछा ओढ़कर निकलते हैं। शायद यही गर्व कांग्रेसियों को सफेद रंग की टोपी पहनकर मिलता होगा। शायद यही गर्व आम आदमी पार्टी के नेताओं को टोपी पहनते वक्त होता होगा। शायद यही गर्व सुभासपा के नेताओं को पीला अगौंछा ओढ़ते वक्त होता होगी। मगर किसी को सिर्फ समाजवादियों की इस लाल टोपी से इतनी दिक्कत क्यों है? मुझे तो बड़ी हैरानी हुई जब मैंने सदन में बोलते हुए सीएम का ये बयान सुना।

आखिर क्या कहा योगी आदित्यनाथ ने?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में कहा, “’एक बार एक घटना हुई। नेता प्रतिपक्ष जी मैं आपको बता रहा हूं। मैं एक कार्यक्रम में गया था। छह महीने का एक छोटा सा बच्चा था, उसको मैंने अन्नप्राशन के लिए उठाया। जिस महिला का वह बच्चा था उसके साथ एक ढाई-तीन साल का और बच्चा था। इधर मैं उसको अन्नप्राशन करा रहा था तब तक वहां पर एक पार्टी के कुछ लोग विरोध करने के लिए आ गए।

उन्होंने टोपी पहनी हुई थी। ढाई साल का बच्चा क्या कहता है- मम्मी-मम्मी देखो वो गुंडा-गुंडा। अब आप देखिए कि एक दो साल ढाई साल के बच्चे के मन में टोपी पहनकर आने वाले व्यक्ति के बारे में क्या धारणा है। अपनी मां से चिपटकर के कहता है कि मम्मी-मम्मी, देखो- गुंडा-गुंडा। यानी ये धारणा सामान्य रूप से बन चुकी है और इसलिए मैं अपील करूंगा नेता प्रतिपक्ष से कि आप पगड़ी पहनकर आते तो अच्छा लगता।

गांव का साफा पहनकरके आते तो मैं उसका अभिनंदन करता। कम से कम आप तो उस यथार्थवादी परंपरा के बहुत सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं, जिसने समाजवादी आंदोलन को ईमानदारी के साथ आगे बढ़ाने का कार्य किया। स्वर्गीय चंद्रशेखर जी ने उस अभियान को बहुत अच्छे ढंग से आगे बढ़ाने का प्रयास किया था। बलिया की धरती इसके लिए जानी जाती है और आपको कम से कम परहेज करना चाहिए इस तरह की चीजों से। बाकी अन्य लोग क्या कर रहे हैं ये उनकी सोच है। इस उम्र में शोभा नहीं देता।”

राज्य को मुख्यमंत्री को इतनी हल्की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए

आप सोच कर देखिए भारत जैसे लोकतंत्र में देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री जब राज्यपाल के अभिभाषण के बाद धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हों, तो लोकतंत्र के मंदिर में खड़े होकर क्या ये उनकी भाषा उचित है? क्या ये सामाजिक शिष्टाचार है? क्या एक मुख्यमंत्री को ऐसी भाषा शोभा देती है?

आप एक ढाई साल के मासूम अबोध बच्चे का सहारा लेकर किसी पार्टी की विचारधारा, किसी पार्टी के निजी अधिकारों का इस तरह माखौल उड़ा सकते हैं ? जब कोई ये कहता है कि भगवा गमछा ओढ़ने वाले गुंडई कर रहे हैं तो आप उन्हें देशविरोधी या हिन्दूविरोधी करार दे देते हैं? फिर ये दोहरा मापदंड क्यों?

ये किसी भी दल का निजी अधिकार है कि उसके कार्यकर्ता क्या पहनेंगे, कौन सा झंडा लेकर चलेंगे, टोपी लगाएंगे या गमछा ओढ़ेंगे? क्या लाल रंग की टोपी पाकिस्तान से आई थी? क्या लाल रंग की टोपी देश विरोधी है? अगर ऐसा है तो आप बैन करवा दीजिए लाल रंग को। एक राज्य के मुख्यमंत्री को इतनी हल्की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। इससे आपकी गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह खड़े होते हैं।

आप विकास पर बात करिए। आप रोजगार पर बात करिए। आप लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुए लोगों पर बात करिए। महिला सुरक्षा पर बात करिए। यूपी के आर्थिक सामाजिक विकास पर बात करिए। बच्चों की शिक्षा पर बात करिए। बिजली के दाम कम करने पर बात करिए। पेट्रोल डीजल की कीमतों पर बात करिए लेकिन नहीं आप मुद्दों पर बात नहीं करना चाहते बल्कि आप सिर्फ माहौल बनाने की सियासत करना चाहते हैं। इस बात को समझने की कोशिश कोई करे या ना करे लेकिन जनता को ज़रूर करनी चाहिए।

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