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नारी सशक्तिकरण से नारियों के विरुद्ध हो रहे अपराधों पर लगेगी लगाम

नारी सशक्तिकरण से नारियों के विरुद्ध हो रहे अपराधों पर लगेगी लगाम

मैं यह मानती हूं कि औरतों में जितनी शक्ति, ताकत और आत्मविश्वास है, उतना किसी के पास नहीं है। औरत या किसी महिला पर कोई मर्द अत्याचार नहीं कर सकता है, अगर वह अपने अंदर की सामर्थ्य को पहचान ले तो औरत कहीं भी इस समाज में पुरुषों से कम नहीं है।

लेकिन, आज अगर हमारे समाज में कहीं भी किसी लड़की या औरत के साथ कुछ गलत होता है तो उसमें कहीं ना  कहीं किसी ना किसी रूप में एक औरत का ही हाथ होता है। यह एक कड़वा सच है कि ” एक महिला  की बर्बादी या उसके साथ हो रहे अत्याचारों में  परोक्ष रूप से किसी ना किसी औरत का साथ (हाथ) होता है।

नारी के विरुद्ध हो रहे अपराधों में कहीं ना कहीं नारी की ही सहभागिता

हमारे समाज में अगर किसी परिवार में एक महिला पर अत्याचार होता है, चाहे वो दहेज के लिए हो या औलाद के लिए  इन सब में कहीं ना कहीं उसी परिवार की महिलाओं का किसी ना किसी रूप में उस अत्याचार को बढ़ावा देने एवं उसे पीड़ित करने में सहयोग होता है।

हमारे समाज में ठीक वैसे ही अगर किसी परिवार में सास-बहू में कुछ बातों को लेकर अनबन होती है, या उस परिवार में बहू के कहने मात्र या शिकायत भर से उसका पति अपने माँ-बाप के साथ दुर्व्यवहार करता है तो उसमें कहीं ना कहीं उनकी बहू के रूप में एक महिला का ही हाथ होता है। इसलिए समाज में अगर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकना है या खत्म करना है, तो हमें महिलाओं में एकता और आत्मविश्वास को बढ़ाना जरुरी है।

एक कहावत है कि “एक औरत ही औरत के दुःख को कम कर सकती है और उसे बढ़ा भी सकती है।” आज के समय में महिलाओं एवं लड़कियों पर हो रहे अत्याचारों को एक औरत ही खत्म कर सकती है।आज भी देश में कई जगह ह्यूमन ट्रैफिकिंग ( मानवों की खरीद-फरोख्त) की जा रही है, बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों से कम उम्र की लड़कियों को वेश्यावृति, देहव्यापार जैसे दलदल में धकेला एवं उन्हें नौकरों के रूप में बड़े-बड़े महानगरों में बेचा जा रहा है।

आज देश में लड़कियों /महिलाओं की दलाली की जा रही है, जगह-जगह उनका रेप, शोषण किया जा रहा है। हमारे समाज की पितृसत्तात्मक सत्ता के किसी भी पुरुष में इतना पुरुषार्थ (शक्ति )नहीं है, कि वो इस तरह बिना किसी दूसरी महिला के सहयोग के बिना किसी अन्य महिला पर अत्याचार कर सके। देश में अगर मानवों की खरीद फरोख्त हो रही है, दूसरे देशों में महिलाएं/ लड़कियां बेची जा रही हैं तो उसमें सिर्फ पितृसत्ता या पुरुष वर्ग ही शामिल नहीं है वरन उस कार्य में भी कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में किसी महिला का ही सहयोग है।

हमें क्या फर्क पड़ता है? वाली मानसिकता का करना होगा त्याग

मेरा मानना है कि अगर देश के किसी भी कोने में एक बेटी के साथ कहीं कोई दुराचार या किसी रूप में अत्याचार होता है और यदि सारी औरतें अगर उस अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की अपने आप में ठान लें तो अकेली स्त्री ही ऐसे राक्षसों के लिए काफी होगी। हमारे देश की अगर सारी महिलाएं एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठाए और खड़ी हो जाए तो कोई पुरुष तो क्या ! कोई भी इनका कुछ नहीं कर सकता है।

लेकिन, हमारे समाज में अगर कहीं देश के किसी कोने में, किसी बेटी के साथ कुछ गलत होता है तो लोग ये कह कर टाल देते हैं यही भगवान की मर्जी है, उसमें हम क्या कर सकते हैं? समाज में बहुतेरे लोगों की ऐसी घृणित मानसिकता है कि किसी और की बेटी के साथ हुए अत्याचार या दुराचार से उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। 

हम शायद ऐसी कोई घटना अपने प्रियजनों या अपनी बेटी के साथ होने का इंतजार कर रहे होते हैं, क्योंकि जब अपनी किसी बेटी-बहन या अपने किसी प्रियजन के साथ ऐसा कुछ होता है तो हमें उस दर्द अैर तड़प का एहसास होता है। ऐसे समय में ही हमें यह एहसास भी होता है कि शायद हमने उस समय इस के खिलाफ आवाज उठाई  होती तो आज हमारी बहन-बेटी के साथ ऐसा कुछ गलत नहीं होता।

अगर हम देश की किसी भी महिला /लड़की के साथ गलत हो रहे व्यवहार को या उसके दर्द को हम अपना दर्द समझें और उस कृत्य को करने वाले अपराधियों के विरुद्ध आवाज उठाए तो देश की किसी भी बेटी के साथ कभी गलत नहीं होगा, आज समाज में यह सोच बदलने की जरुरत है।

‘‘स्त्रियां  ही वो शक्ति हैं, जो स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार, दुराचार को खत्म कर सकती हैं, बेटी तो बेटी है, चाहे वो आपकी हो या किसी और की हमें देश की बेटियों की सुरक्षा का जिम्मा मिलकर उठाना होगा।”

नारी जब तक सहन करती रहेगी, तब तक समाजकंटक नारी को प्रताडित करते रहेंगे परंतु अगर यही नारी संकल्प कर ले तो समाज कंटको का विनाश निश्चित है।

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