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“क्या सत्ता से सवाल करने वाला हर नागरिक देशद्रोही हो गया है?”

भारतीय मीडिया की अस्मिता खतरे में है, जो अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर आकर गिर चुकी है। अगर आप देखें तो अभी देश में कुछ ही मीडिया संस्थान हैं, जो कि पोर्टल और वेबसाइट के जरिये चल रही है। इन्होंने वर्तमान समय में मीडिया की अस्मिता को बचाये रखने में अपना बहुत योगदान दिया है, और दे भी रहे हैं।

देशभक्ति का नया अर्थ, “जो इस सत्ता के सामने बिक चुका हो”

मीडिया के कुछ संस्थान जो आज भी मीडिया में स्वतंत्र रूप से काम करके लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को बचाए हुए हैं। इसमें ऐसे पत्रकारों की जमात है जो देश में उन्माद फैलाने का काम नहीं कर रहा है। वो सच में पत्रकारिता कर रहे हैं और देश को बचाए हुए हैं। अगर मैं उन लोगों का यहां पर नाम लेता हूं तो एक तबका गाली देने के लिए खड़ा हो जाएगा क्योंकि हम सत्ता के प्रेमी नहीं हैं।

ये पत्रकार सत्ता से प्यार नहीं बल्कि उनसे सवाल करते हैं। जब हम सत्ता से सवाल करते हैं तो लोग हमें विपक्षी साबित कर देते हैं। कांग्रेसी बना देते हैं, लेफ़्टिस्ट बना देते हैं या जो मन बना देते हैं। मगर मैं उनलोगों को बताना चाहता हूं कि हम बस स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं। जो चाटुकार हैं, वह चाटुकारिता ही करेगा लेकिन एक बात समझने की है कि यहां पर हम देश की बात कर रहे हैं न कि राजनीतिक पार्टी की।

हम किसी भी पार्टी के सपोर्ट का, किसी भी पार्टी के साथ का वादा नहीं करते हैं लेकिन हम निष्पक्ष पत्रकारिता का कर रहे हैं। लोग आएंगे, गालियां देंगे और गालियां देकर चले भी जाएंगे लेकिन हम अपना काम पूरी ईमानदारी से करते रहेंगे। वह अपनी देशभक्ति को निखार रहे हैं और बता रहे हैं कि उनसे बेहतर कोई भी देशभक्त नहीं है। उनके हिसाब से देशभक्त वही है जो वर्तमान सत्ता के पक्ष में बिक चुका है।

जो उसको प्रणाम करता है, जो सत्तारूढ़ पार्टी के साथ है, जो सत्तारूढ़ पार्टी के किसी भी तरीके के फैसले का आंख बंद कर समर्थन करते हैं। हम सरकार से सवाल करते हैं, बाकी आप जैसे गाली देने वाले भक्त आएंगे और चले जाएंगे। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। आप लोगों को जो करना है आप करते रहें। हम आप का भी सम्मान वैसे ही करेंगे जैसे देश के सभी नागरिकों का करते हैं।

जुमलेबाजी की सरकार में बस भाषणबाजी

अब बात करते हैं उन तथाकथित भक्त और पत्रकारों की। जो तथाकथित भक्तों के बोलने की वजह से उल्टी-सीधे हरकतों की की वजह से परेशान हैं। क्यों परेशान हैं यह भी सोचने वाली बात है? मैं आपको बताने जा रहा हूं। बरखा दत्त का तो नाम सुना ही होगा? एक पत्रकार हैं जो कि पिछले 20 सालों से देश की सेवा कर रही हैं। किस तरीके से सेवा कर रही हैं?

देश में जो भी सरकार रही हो उससे वह सवाल करती रही हैं। मगर जो भक्त हैं वह बिना सोचे समझे गालियां देते हैं। क्यों देते हैं? क्योंकि भक्ति का चोला पहन एक पार्टी का झंडा बुलंद किए हुए हैं । दरअसल यह समझना होगा कि आप कौन सी दुनिया में जी रहे हैं? किसका झंडा बुलंद कर रहे हैं? तो सुनिए यह भक्त वह हैं जिनके लिए देश के मुद्दे कोई मायने नहीं रखते।

यह भक्त वह हैं जिनके लिए विकास कोई मायने नहीं रखता। इनके लिए बस यह मायने रखता है कि ये मोदी जी के भक्त हैं। यह भाजपा के भक्त हैं और हमें न तो इनसे और भाजपा से कोई तकलीफ है। तकलीफ उन नीतियों से है जो लोगों के लिए काम नहीं करती। जुमलेबाज़ी की सरकार है। जुमलों से भरी हुई सरकार है।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सिवा भाजपा में कोई ऐसा नेता नहीं है जो भाजपा को चला रहा हो। एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जो हर चुनाव में रैलियों को संबोधित करते हैं चाहे वह स्टेट लेवल के चुनाव हों, चाहे नेशनल लेवल का। चुनावों में भाषणबाजी के सिवा कुछ नहीं।

लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में अब खुद जनता को आगे आना होगा

दरअसल यह सब जिस तरीके से हो रहा है उससे सीधे तौर पर वोटरों को गुमराह किया जा रहा है। ये वही लोग हैं जो कभी हिन्दू-मुस्लिम, कभी मंदिर-मस्जिद करके तनाव पैदाकर अपनी रोटियां सेंकते हैं। अब जनता के जागरूक होने का समय आ गया है। आप वोटर हैं, आप जनता हैं, आपको यह समझना होगा कि आप किस तरीके से इस देश को देखते हैं?

इस पार्टी को देखते हैं तो फिर एक बार देश के संविधान को भी देखिए। यह देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए कितनी अग्रसर है? अगर आप इतना सोचना शुरू कर देते हैं तो आप भक्ति छोड़ देशभक्ति पर आ जाएंगे। आपको तय करना होगा कि मीडिया आपको क्या दिखा रही है और आप क्या देखना चाहते हैं?

सरकार आपको क्या बता रही है और आप सरकार से क्या चाहते हैं? सरकार किस विकास की बात कर रही है और आपको कौन सा विकास अपने लिए चाहिए? किसानों की तकलीफ को समझना होगा। सेना की तकलीफों को समझना होगा। आप लोकतंत्र की जनता हैं इसलिए आपको लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आना होगा।

आपको उन पत्रकारों का साथ देना होगा जो सच में देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। आपको उनकी बातों को समझना होगा। आपको अपनी ओर से सोचना होगा समझना होगा कि आखिर यह सत्ता आपको कहां लेकर जा रही है और आपको कहां जाना है?

रवीश कुमार, अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून बाजपेई, बरखा दत्त और इन जैसे तमाम पत्रकार देश के लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ को तो उन्होंने बॉयकॉट कर भी दिया है। कुछ पत्रकारों की तो यह तंत्र नौकरी भी खा चुका है लेकिन ये वो पत्रकार हैं जो न पुरानी सरकारों में बदले और न इस सरकार में बदलेंगे। यह पत्रकार तो न आने वाली सरकारों में भी नहीं बदलेंगे।

सच बोलने वाले पत्रकारों पर साइबर हमला कराया जाता है

हमेशा सवाल करने वाले पत्रकार आपके लिए, मेरे लिए और इस देश के लिए कार्य करते हैं, जो सदैव करते ही रहेंगे। उन्हें दबाने के लिए सत्ता को और मजबूत होना होगा। हालांकि, सत्ता उतनी मजबूत है कि पत्रकारों की हत्या तक भी करा सकती है। इन पत्रकारों को गायब तक भी करवा सकती है लेकिन यह पत्रकार तब भी रूकने वाले नहीं हैं।

रवीश कुमार की बात की जाए तो रवीश कुमार को रोज़ाना न जाने कितनी संख्या में लोग गालियां दे रहे होते हैं। उनके नंबर को सार्वजनिक किया गया। अभिसार शर्मा का भी नंबर सार्वजनिक करके हिन्दू संगठनों के लोग तो कभी अन्य लोगों से फोन करके गालियां और धमकियां दिलवाई जाती है।

भक्तों को यह तक नहीं पता है कि वह किन वजहों से रवीश कुमार को गालियां दे रहे हैं? उनके सवालों का क्या वजूद है उन्हें यह तक भी नहीं पता होता है कि वह किसे फोन कर रहे हैं, किन मुद्दों पर उनसे झगड़ा कर उन्हें गालियां दे रहे हैं? हालांकि, हाल ही में अभिसार शर्मा का एक वीडियो प्रसारित हुआ था जिसमें उन्होंने बताया कि एक ऑडियो क्लिप बनाई थी कि किस तरीके से उन्हें गालियां और मारने की धमकियां दी जा रही हैं?

आखिर सत्ता क्यों पत्रकारों से इतनी डरी हुई है? आखिर किन कारणों से इन पत्रकारों का बहिष्कार किया गया है? सत्ता की ओर से कुछ तो कारण रहा होगा और कारण पूर्ण रूप से यही है कि ये पत्रकार जो हैं यह सरकार से सवाल करते हैं। आपके लिए, हमारे लिए और इस देश के लिए सत्ता के पास इनका कोई भी जवाब नहीं है। इसलिए सत्ता इन्हें दबाने की कोशिश करती है।

सत्ता आवाज़ों को दबाने की कोशिश करती है, ताकि यह दोबारा ना उठ सकें लेकिन फिर भी यह स्वतंत्र होकर जनता के हित की बात करते रहे। ऐसे ही यह सवाल करते रहेंगे लेकिन आपको भी समझना होगा और साथ आना होगा। अगर आप सच में लोकतंत्र को बचाए रखना चाहते हैं तो आपको उन मीडिया संस्थानों का बहिष्कार करना होगा जो प्रोपेगैंडा फैलाने का काम कर रही है।

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