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“किसान को किसी भी हालत में अपना खेत छोड़कर भागना मंज़ूर नहीं होता”

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इतवार का दिन मतलब परिवार को समर्पित। इसी दिन शायद मैं जज़्बातों को ज़िंदा रख जी पाता हूं। फिर वह चाहे बच्चों के साथ खेलना हो या पत्नी के काम में हाथ बंटाना। इसी दिन बगल में एक रिटेल स्टोर में चला गया जहां अनाज की पैकेजिंग बड़े शानदार ढंग से की जाती है। मैं हर बार यही दृश्य देखता था लेकिन इस बार मेरी आंखें कुछ और देखना चाहती थी, क्योंकि उसी समय मेरे एक रिश्तेदार का फोन आया था कि किसान हैं।

उनका हाथ गेहूं निकालते समय थ्रेसर में आकर कट गया था। मगर ऐसे किसानों का दर्द उस मार्केटिंग में कहीं नहीं दिखा। कुछ ऐसे ही दुखांत और हैं मेरे ज़हन में जिसे अपना कर्तव्य समझते हुए मैं यहां पर लिख रहा हूं। शायद इसी से हम किसानों की दयनीय दशा को समझें और कोई ऐसा उपाय कर सकें जिससे देश में किसानों की हालत सुधर सके।

हर रोज़ होते हैं ऐसे हादसे

गर्मी की छुट्टियों में अक्सर पंजाब जाना होता था। इसका एक अपना ही आनंद होता था। मेरे सामने के घर से “तारी चाचा” अक्सर आते-जाते हमें “सत श्री अकाल” बुलाकर जाते थे। इनके जाने के बाद अक्सर दादी कहा करती थीं “देखो इतना गबरू जवान लड़का है लेकिन खेती ने इसका जीवन बर्बाद कर दिया।” शायद ये दुखांत तब का है जब मैंने अभी होश भी नहीं संभाला था।

80 का दशक, ये ऐसा दौर था जब खेती के व्यवसाय में मशीन और मशीनी औजारों ने अपनी एक जगह बनानी शुरू कर दी थी। इसके तहत ट्रैक्टर और गेहूं को निकालने का थ्रेसर आज घर-घर में मौजूद था। थ्रेसर में गेहूं की बालियां डाली जाती है और ये अपनी उपयोगिता के तहत उसको काटकर नीचे गेहूं के दाने निकाल देता है और दूसरी तरफ बाकी बचे को भूंसा बना देता है।

 भूंसा पशुओं के आहार में काम आता है। बस कुछ ऐसा ही दृश्य रहा होगा। तारी चाचा के साथ कुछ और लोग गेहूं के झाड़ को अंदर डाल रहे थे। शायद आखिरी भरी रही होगी जिसको उन्होंने पैर से थोड़ा आगे की ओर खिसकाया। यह इतना ज़ोर से चलता है कि पास आ रही चीज़ों को अपनी ओर खींच लेता है। इसी में तारी चाचा का पैर अंदर चला गया।

डॉक्टर ने ऑपरेशन के दौरान उसे काट दिया तब से वो नकली पैरों के सहारे चलते हैं। एक 6.4 फिट से भी ज़्यादा लंबा इंसान जो फौज में जाना चाह रहा था, शायद आज बाघा बॉर्डर पर परेड कर रहा होता लेकिन आज अंगहीन हैं। कुछ इसी तरह बस चार-पांच साल पहले मेरे एक रिश्तेदार का हाथ इसी थ्रेसर में आ गया था। बाद में डॉक्टर ने ऑपरेशन के दौरान उसे काट दिया।

आज अंगहीन होने के बावजूद वो खेती के व्यवसाय में हैं और एक हाथ से ही आज बाइक, कार, ट्रेक्टर सब चलाकर अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैं। एक और रिश्तेदार हैं जिनके हाथ की उंगलियां चारा काटने वाली मशीन में आ गयी थी। इस तरह के दुखांत पंजाब के हर इंसान के जहन से जुड़ी हुई है और आज भी बदस्तूर जारी है।

किसानों की दुर्दशा को हमें समझना होगा

खेती के औजार से किसी भी तरह की दुर्घटना होने का अंदेशा बना रहता है और ये इतना भयंकर रूप धारण कर सकता है कि किसी की जान भी जा सकती है। ट्रैक्टर, ये अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग रूप में नज़र आते हैं। आमूमन पिस्टन जो हर तरह की गाड़ी के इंजन में होता है और गाडी को धकेलने का काम यही करता है।

इसी की ताकत से आप की गाड़ी की, स्कूटर की, रेलवे इंजन की, हवाई जहाज के इंजन की ताकत निर्धारित होती है। इसी तरह एक ट्रैक्टर आया जिसे गांव की भाषा में “आशा” नाम दिया गया। इसका पिस्टन बड़ा होने के कारण ट्रक जितना बोझ खींच लेता है लेकिन इसकी एक समस्या भी है। अगर यह बोझ को खींचने में नाकामयाब रहा तो इसके आगे वाले टायर हवा में उछल जाते हैं और उलटकर, पीछे बंधी ट्राली के साथ टकरा सकते हैं। नतीजन ट्रैक्टर पर बैठे किसी भी इंसान के साथ हादसा हो सकता है।

90 के शुरुआती दशक में दादी के एक रिश्तेदार के यहां अफसोस करने गए थे, तब कुछ ज़्यादा पता नहीं चलता था। मगर यहां एक १८ साल के नौजवान की मौत इसी तरह आशा ट्रैक्टर से हुई थी। रेत को ट्रॉली में भरा हुआ था और ट्रैक्टर इसे खींचकर चल भी रहा था। पता नहीं रास्ते में क्या हुआ कि ट्रेक्टर के आगे का टायर हवा में उछल कर ट्रॉली के साथ टकरा गया और नोजवान की वहीं पर मौत हो गई।

ये दो भाई थे, और बड़ा होने के कारण इनके पिता जी को इनसे बहुत ज़्यादा उम्मीदें थी। छोटा भाई अभी ८-१० साल का ही था। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस दिन एक नौजवान के साथ-साथ एक परिवार की भी मौत हो गई। पंजाब में ऐसे दुर्घटनाएं आम हैं और आज भी ऐसे हादसे हो रहे हैं।

आज खेती के काम में मशीन ने अपनी एक अलग जगह बना ली है और इससे हादसे भी होते हैं। मेरी मौसी अक्सर कहा करती थी कि किसान को शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी बहादुर होना चाहिए क्योंकि खेतों में ना जाने कब साँप निकल आये और किसान को किसी भी हालत में अपना खेत छोड़कर भागना मंज़ूर नहीं होता।

किसान के लिए खेत का दर्जा मां समान होता है लेकिन मेरी वही मासी चिंता में डूब जाती थी जब उनका लड़का खेतों में जाने के बाद देर से घर पहुंचता था। मेरे गांव या पंजाब में ये हर रोज़ की कहानी है। भले आप न जानते हों मगर मैं ऐसी खबरों से आपको अवगत कराता रहूंगा। आप भी लिखें ताकि किसानों की दुर्दशा का दुनिया को पता चले और आगे हमसब मिलकर एक नई सुबह ला सकें। जय हिंद।

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