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“हाँ स्त्री हूँ, हाँ मैं नारी हूँ”

नारीवाद कविता

 

हां नारी हूं

मैं दुर्गा, चंडी, काली हूं, हां नारी हूं

मैं नारी हूं और धरती की हरियाली हूं।

 

कितने रंग-रूप, रिश्तों में ढ़लने की कला में वो माहिर

कितने ज़ख्मों को सहती पर करती ना वो कभी भी ज़ाहिर

 

हां स्त्री हूं, हां नारी हूं

पर मैं कोई अभिशाप नहीं

ज़िन्दा है अभी जज़्बात मेरे

मुझ में दोहरी छवि की कोई छाप नहीं।

 

दया, त्याग, करुणा, साहस की वो अप्रतिम तस्वीर है

जीती है किरदार वो कितने, लिखती खुद की तकदीर है

 

सहमी-सहमी आहें भरती

फिर भी मुंह से उफ ना करती

जकड़ी हैं जग की जंज़ीरों में

खुद को ढक पर्दे में रहती।

 

उसके सपनों का भी सोचो अपने सपने भी ना जी पाती

रोटी पानी की कहानी में जीवन भर उलझी रह जाती

 

पैर की जूती उसे समझते उसको बस रहते हैं नचाते

घटिया सोच के कारण कितने उस पर घटिया इल्ज़ाम लगाते

 

हां स्त्री हूं, हां नारी हूं

लेकिन अब सब पर भारी हूं

अब अबला नहीं, मैं सबला हूं

अब क्रांति की मैं चिंगारी हूं

अब परिवर्तन की आग हूं मैं

ज्वाला सारी की सारी हूं

मैं दुर्गा, चंडी और काली हूं

दुष्टों का वध करने वाली हूं

इस सृष्टि की रखवाली हूं,

धरती की मैं हरियाली हूं।

 

माँ बेटी और बहू के रूप में वो अक्सर ढल जाती है

इन सारे रूपों में रह वो हर घर की लाज बचाती है

 

नारी है विश्वास की अद्भुत एक मिसाल
प्यार की वो प्रतिमूर्ति है उसका ह्रदय विशाल

 

अब मैं सारी बन्दिशों से मुक्त हूं

अब मैं हर गम से आज़ाद हूं

चुनौतियों से निपट लेती हूं अकेले

खुद की ताकत हूं और खुद की आवाज़ हूं।

 

हां स्त्री हूं, हां नारी हूं

पतिव्रता और पवित्रता

का अच्छा धर्म निभाती हूं

अब न निर्भर हूं, मैं किसी पर

खुद मैं संसार चलाती हूं।

 

नारी संग मनाते हैं महिला दिवस विशेष

फिर क्यों उसके दिल को जीवन भर पहुंचाते हैं ठेस

 

नारी है इस जगत में सबसे पूज्य और महान

नारी है इस धरा का अद्भुत अद्वितीय, वरदान

नारी है तो सृष्टि है, नारी से ही उत्पत्ति और निर्माण

नारी है तो ये जगत है और जग की है पहचान

पहचानों अब मूल्य नारी का सदा करो सभी सम्मान

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