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कितनी बदली है उन्नाव की सियासी राजनीति?

उन्नाव की राजनीति बड़ी ही रोचक रही है। यहां कोई तीन बार लगातार सांसद बना है, तो कोई 7 बार विधायक बना है, तो कोई 2 बार निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष। उन्नाव की धरती पर जन्म लेकर कोई दूसरे राज्य में जाकर मुख्यमंत्री बना है तो कई बार केंद्र सरकार में उन्नाव के सांसदों को मंत्री बनने का भी मौका मिला है। बिल्कुल सामान्य परिवार से आने वाला भी राज्य सरकार में मंत्री बना है।

ये धरती साहित्यकारों, कलमकारों, वीरों की तो है ही, साथ ही बड़े-बड़े सियासी योद्धा भी उन्नाव में जन्में हैं। कुछ दूसरे जिलों से आकर भी यहां बड़े नेता बने। उन्नाव की सियासत को करीब से समझने वाले लोगों से अगर आप बात करेंगे तो शायद ज़्यादा बारीकी से उन्नाव की सियासत को समझ पाएं। मैंने अभी तक की उम्र में जितना समझा, जितना देखा, जितने करीब से यहां के नेताओं को देखा, लोगों से बात करके जाना, उस हिसाब से मैं ये कह सकता हूं कि उन्नाव की राजनीति आज जैसी है ऐसी 20-25 साल पहले नहीं थी।

उन्नाव और वंशवाद की राजनीति

बीते करीब तीन दशकों में उन्नाव की राजनीति पूरी तरह बदल गई है। पहले यहां की राजनीति में ‘जातिवाद और बदले की भावना के साथ सियासत’ की शैली नहीं थी। पहले यहां अलग अलग दलों के नेता एक दूसरे को कोसते तो थे लेकिन शालीनता थी। उन्नाव की सियासत में एक बात और रोचक रही है वो है परिवारवाद और वंशवाद।

कई नेताओं ने अपने परिवार, अपने बेटे-भतीजों को आगे बढ़ाने की कोशिश की लेकिन कामयाब कुछ एक ही हुए। पूर्व विधायक भगवती सिंह विशारद की सियासी परंपरा को उनके भतीजे वीर प्रताप सिंह ने आगे बढ़ाया। वो सियासी दल के बड़े नेता तो बने लेकिन जनता की अदालत में 2 बार हार का सामना करना पड़ा। उमाशंकर दीक्षित के परिवार को कोई बड़ी कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन उन्नाव में अपनी जमानत जब्त करवाने वाली स्व शीला दीक्षित 3 बार दिल्ली की सीएम जरूर बनीं।

ज़िया उर रहमान अंसारी के बेटे अनीस उर रहमान अंसारी भी एक बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन बुरी तरह असफल रहे। गोपीनाथ दीक्षित यूपी के गृह मंत्री रहे। उनके बेटे गौतम दीक्षित सियासत में सफल नहीं हुए। टिकट तक नहीं ला पाए लेकिन गोपीनाथ की बेटी 2 बार चुनाव लड़कर हार गईं। देवी बख्स सिंह 3 बार सांसद रहे लेकिन उनकी सियासत को आगे कोई नहीं बढ़ा पाया। यही स्थिति पूर्व मंत्री जी बी सिंह, पूर्व विधायक सुंदर लाल कुरील, बाबू लाल कुरील, हरि प्रसाद कुरील के साथ है।

सुंदर लाल लोधी खुद तो 2 बार विधायक रहे उनके बेटे एक बार चुनाव हार चुके हैं। दूसरी बार फिर लड़ने को बेताब हैं। पूर्व सांसद दीपक कुमार की पत्नी 2 बार चुनाव हार चुकी हैं। पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर की पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं। भाई ब्लाक प्रमुख रहे हैं। एक और भाई की पत्नी प्रधान रही। माता जी भी प्रधान रहीं। उदयराज यादव खुद 4 बार विधायक रहे लेकिन उनके बेटों ने राजनीति को चुना ही नहीं बल्कि प्रशासनिक सेवा में जाकर जिले का मान बढ़ाया।

उन्नाव के तमाम सियासी घरानों में स्व दीपक कुमार अपवाद के रूप में रहे हैं। वो अपने पिता पूर्व मंत्री मनोहर लाल की सियासी जमीन को मजबूत करने में कामयाब रहे। विधायक भी बने और सांसद भी बने तो दीपक कुमार के बड़े भाई रामकुमार भी विधायक रहे। अब मनीषा अपने बेटे अभिनव को लॉन्च करने में लगी हैं तो सदर विधायक पंकज गुप्ता खुद दूसरी बार विधायक हैं। माताजी ब्लॉक प्रमुख रही हैं। पत्नी पैक्सफेड में डायरेक्टर हैं और अब पंकज जी भी अपने बेटे के लिए सियासी जमीन तलाश रहे हैं।

उन्नाव के उन युवाओं में प्रतिभा ज़्यादा है जिनका कोई राजनीतिक बैकअप नहीं

अगर आप समझें तो ये उन्नाव का मोटा-मोटा सियासी वंशवाद है। अब तमाम नेता अपने बेटों को लॉन्च करने की तैयारी में हैं। इन तमाम लोगों की उपलब्धि सिर्फ इतनी है कि वो नेता के बेटे या पौत्र हैं। इन तमाम नेतापुत्रों की जगह उन्नाव के उन युवाओं में योग्यता और प्रतिभा ज़्यादा है जिनके पास कोई बैकअप नहीं है। मोटी रकम नहीं है लेकिन वो अच्छे वक्ता हैं और सियासी गलियारों में लंबे वक्त से संघर्ष कर रहे हैं।

मगर उन्हें आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं क्योंकि ना ही उनके पिता सांसद रहे हैं, ना ही उनके बाबा मंत्री रहे हैं। इसलिए ऐसे युवा सिर्फ ज़िंदाबाद कर रहे हैं। नेता जी के बेटे के आगे पीछे घूम रहे हैं।

 

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