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निजीकरण के बढ़ते प्रभाव को जनता की हित में कैसे उन्मुख किया जाए?

19 वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्र राज्य के विचार का उदय हुआ। यह सर्वविदित तथ्य है कि राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति को फ्रांसीसी क्रांति में पहली बार अपनी मूर्त अभिव्यक्ति मिली। इसके बाद पूरे विश्व में लोकतंत्र की लहर दौड़ गई। धीरे-धीरे राजशाही के जगह लोकतांत्रिक सरकारों की स्थापना होने लगी।

जनता की चुनी हुई सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के हित का सोच रही है

यह कहा जाता है कि लोकतंत्र सरकार का वह रूप है, जहां सत्ता सीधे वहां के आम आदमी में निहित होती है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करके अपने अधिकारों का प्रयोग करता है। लोकतांत्रिक सरकार उस तरह की सत्तारूढ़ प्रणाली है, जो “लोगों का, लोगों के लिए और लोगों के द्वारा” है। लोकतंत्र की यह परिभाषा अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी थी।

इसका मतलब है कि संप्रभुता की शक्ति, जो पहले व्यक्तिगत सम्राट में निहित थी वो अब संसद में निहित है। यह सच है कि संसद के सदस्यों का चुनाव नागरिक द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही होता है लेकिन हमने देखा है, कि मौजूदा समय में सारी शक्ति चंद पूंजीपतियों के हाथ में है।

कहने को यह लोगों के लिए सरकार है मगर यह सिर्फ कॉरपोरेट के हित का सोचती है। यह ज्ञात तथ्य है कि राजनीतिक दल पूंजी के अभाव में नहीं चल सकता जो कि कॉरपोरेट के दान पर निर्भर करता है। इसलिए, यह भी स्वाभाविक है कि सरकार पूंजीपतियों के हित की रक्षा भी करेगी।

शिक्षा, बिजली, दूरसंचार, परिवहन, अस्पताल आदि सब सरकार की जिम्मेदारी हैं। यह उम्मीद थी कि सरकार देश के नागरिक को सस्ती और सस्ती लागत पर जीवन के लिए ये सभी आवश्यक साधन उपलब्ध कराएगी। मगर हमने सरकार द्वारा नियंत्रित अस्पतालों, स्कूलों, परिवहन और दूरसंचार कंपनियों की गिरती स्थिति को देखा है। बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल. सरकार नियंत्रित दूरसंचार कंपनियां एयरटेल, रिलायंस आदि निजी कंपनियों के सामने फीकी पड़ती चली गई।

निजी कंपनियों से सरकार राजस्व प्राप्ति पर ज़्यादा जोर दे

स्कूल, अस्पताल, बिजली, परिवहन की भी यही स्थिति है। सरकार द्वारा नियंत्रित स्कूल, अस्पताल, बिजली आदि की दिन-ब-दिन हालत बिगड़ती जा रही है। जबकि निजी स्कूलों, अस्पतालों और बिजली फल-फूल रहे हैं। फिर प्राइवेट कम्पनियों के मुकाबले सरकारी कंपनियों की एकदम लचर स्थिति से कैसे निपटा जाए? रास्ता क्या है? हम इस स्थिति को आखिर कैसे संभाल सकते हैं? ताकि वर्तमान परिदृश्य में आम जनता के हित पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

फिल्म बनाने की प्रक्रिया में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती लेकिन दर्शक को प्रत्येक टिकट पर मनोरंजन कर देना पड़ता है। कुछ राज्य में सरकार द्वारा 40 से 50% मनोरंजन कर लिया जाता है। इसलिए सरकार के पास बहुत सारा राजस्व आ जाता है जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर जनता के हित को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। इसी तरह सरकार को चाहिए कि इन निजी कंपनियों से भी प्रत्येक लेनदेन पर ऐसा ही कर लगाना चाहिए।

इससे दो लाभ होंगे। एक तो सरकार को बहुत सारे भवन और बुनियादी ढांचे को बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होगी और दूसरा कि सरकार को बहुत सारे राजस्व भी प्राप्त होंगे। जनता को बेहतर सुविधा के साथ-साथ सरकार को राजस्व प्राप्ति, यह हमारे देश में प्रचलित वर्तमान स्थिति का सबसे उचित समाधान है।

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