आज व्हाट्सएप्प पर मुझे एक मैसेज आया जिसकी शुरुआत में कुछ 13 प्रकार के हिन्दू देवी-देवताओं के नाम लिखे हुए थे, जिसके अनुसार हिन्दू धर्म में उन्हें भगवान बुलाया जाता है। इस मैसेज में बताया गया है कि ये सारे नाम गुरु ग्रंथ साहिब में परमात्मा को परिभाषित करते हुए दर्ज़ हैं।
इसमें एक जगह नीचे चमकौर साहिब में हुई जंग के बारे में भी बताया गया था, जहां कुछ महज़ 40 सिखों ने वज़ीर खान की 10 लाख फौज से टक्कर ली थी। वहीं, आगे चलकर वज़ीर खान ने छोटे साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह और फतेह सिंह को महज़ 7 साल की उम्र में इस्लाम धर्म को ना कुबूल करने के कारण दीवारों में ज़िंदा चुनवा दिया था।
चार साहिबज़ादे और उसकी रूपरेखा
अगर आपने चार साहिबज़ादे फिल्म देखी है, तो ये शब्द उसी की रूपरेखा यहां प्रस्तुत कर रहे थे। एक सिख होने के नाते, पहली नज़र में इस मैसेज से शरीर में एक गज़ब का जोश मिलता है। इस मैसेज को उंगलियां अपने आप आगे फॉरवर्ड कर देती हैं। इसी के फलस्वरूप आज मेरे दो मित्रों द्वारा यही मैसेज मुझे व्हाट्सएप्प पर मिला। जब मैंने इसे ध्यान से पढ़ा, तो एक सिख होने के नाते मुझे इस में कुछ खटक रहा था। यहां, कुछ बातें गौर करने लायक हैं कि गुरु ग्रंथ साहिब जी में सिख गुरु के साथ कई संतों, भक्तों और मुस्लिम फकीरों की वाणियां भी दर्ज हैं।
वाणी का पैमाना यह था कि जो वाणी परमात्मा को सिर्फ एक समझकर लिखी गई हों, जो कहीं भी किसी प्रकार के अंधविश्वासों को बढ़ावा ना देती हों। हमारे सिख धर्म में किसी भी अन्धविश्वास और मूर्तियों की पूजा करना मना है। इसी तरह गुरु ग्रंथ साहिब में कई जगह शब्दों में राम को परमात्मा का नाम देकर समझाया गया है। जो कि इस मैसेज में मौजूद हैं लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब में कई जगह खुदा को परमात्मा का नाम देकर भी समझाया गया है। जिसका इस मैसेज में कहीं भी ज़िक्र नहीं है।
उसी तरह, छोटे साहिबज़ादों को वज़ीर खान के हुक्म के अनुसार दीवारों में चिनवा कर शहीद किया गया उसका इस मैसेज में वर्णन है, लेकिन गंगू जिसने माता गूजरी कौर और छोटे साहिबज़ादों को कैद करवाया था उसका कहीं भी ज़िक्र नहीं है।
आनंदपुर का किला छोड़कर गुरु गोविंद सिंह जी चमकौर की गाड़ी में आए थे। उनसे आनंदपुर साहिब का किला छुड़ाने के लिये वज़ीर खान के साथ वहां के पहाड़ी राजाओं ने पहले ताकत से और बाद में अपनी धार्मिक किताबों की कसम खाकर, गुरु गोबिंद सिंह जी को आनंदपुर का किला छोड़ने के लिए मनाया था। उन पहाड़ी राजाओं का भी इस मैसेज में कहीं कोई ज़िक्र नहीं है।
अंग कटवाकर सिखों ने दी शहादत
कुछ इसी तरह एक विडियो यूट्यूब पर आज कल बहुत वायरल हो रहा है, जिसमें पंजाब सरकार के मंत्री श्री सिकंदर सिंह मलूका अपने चुनावी ऑफिस का उद्घाटन कर रहे हैं। इसी सिलसिले में रामायण के एक पात्र सम्पाती पर कुछ अलग ही शब्दों में उसकी आरती की जा रही है। यह पूरी तरह से सिख अरदास की नकल की गई है, इसके कुछ शब्द “बंद बंद कटवाये” सुनाई देते हैं। यह शब्द पूरी तरह सिख अरदास में मौजूद हैं और उनको समर्पित हैं, जिन्होंने इतिहास में सिख धर्म की रक्षा के लिये अपने और अपने बच्चो के भी अंग कटवाकर शहादत दी। मुझे इसका भी कहीं ज़िक्र नहीं मिलता है।
क्या हमारे देश के बहुसंख्यक धर्म-समाज ने अपने धर्म की रक्षा के लिये कहीं भी इस तरह एक एक अंग कटवाकर सिख धर्म की तरह शहादत दी है?
मसलन, अगर हिन्दू धर्म में इस तरह की आरती का प्रचलन हो गया तो कुछ सालों बाद समाज को इस तरह से भ्रमित किया जाएगा कि जिन्होंने अपने धर्म के लिये शहादत दी थी, वह असल में सिख नही हिंदू थे। कुछ इसी तरह 2000 सदी की शुरुआत में बॉलीवुड में एक फिल्म गदर आई थी। जिसने बॉलीवुड में कमाई के सिलसिले में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये थे। इस फिल्म का मुख्य किरदार एक सिख नौजवान के रूप में दिखाया गया था, जिसकी पर्दे पर इंट्री ही विस्थापित हो रहे लोगों को मारते हुए दिखाई दे रही है।
उसके चेहरे पर एक सिख नौजवान की तरह ही दाढ़ी, मूंछ और सिर पर पगड़ी है, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है वैसे-वैसे कभी उस किरदार के सिर के बाल कटे हुए दिखाई देते हैं तो कभी उसका क्लीन शेव चेहरा दिखाई देता है।
हद तो तब हो गई जब यह किरदार पाकिस्तान में जाकर इस्लाम धर्म को कुबूल कर लेता है, लेकिन जब हिंदुस्तान को बदनाम करने की कोशिश की जाती हैं तब यह अपनी पूरी ताकत का भव्य प्रदर्शन करता है।
इस फिल्म से सुभाष चंद्रा भी जुड़े हुए थे और सुभाष चन्द्रा के आरएसएस के साथ कितने नज़दीकी सम्बंध हैं, मुझे इसे बयां करने की ज़रूरत नहीं है। सिख इतिहास कुर्बानियों से भरा पड़ा है। जहां किसी और मज़हब को जबरन ना कुबूल करने के चलते ज़ुल्म-सितम की इंतिहा के बावजूद कुर्बानियां दी गयी हैं, गज़ब देखिए कि यहां तारा सिंह सिख नौजवान एक ही झटके में अपने सिख धर्म को त्याग कर इस्लाम धर्म कुबूल कर लेता है।
समाज को भ्रमित किया जा रहा है
आज भी आरएसएस की यह कोशिश है कि किसी तरह सिख को एक केशधारी हिन्दू की परिभाषा में ही पहचाना जाए। इसकी एक शाखा भी है, जिस का नाम राष्ट्रीय सिख संगत यानि कि आरएसएस है, जहां सिखों की तरह दिखने वाले पुरुष अपने सिर पर पगड़ी बांधकर और नीचे आरएसएस का खाकी कच्छा पहनकर आरएसएस के सदस्य की रूपरेखा में खड़े होते हैं। इस तरह आरएसएस द्वारा पूरा भ्रम पैदा किया जा रहा है कि वह सिख नहीं, एक हिन्दू हैंं।
मैं भी व्यक्तिगत रूप से इस तकलीफ से गुज़र चुका हूं और दिल से प्रार्थना करता हूं कि वह काला दौर (80 के दौर का पंजाब) कभी वापिस ना आए, मैं उसकी कीमत अपनी पहचान खोकर नहीं दे सकता हूं।
मैं व्यक्तिगत रूप से यह कह रहा हूं कि मैं एक सिख हूं, सिख ही मेरा पहनावा है और यही मेरी पहचान है। मेरा किसी और धर्म या समुदाय से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। इसी रूपरेखा में मैं भारत देश का नागरिक भी हूं। देश की सेना में जाने का मेरा बहुत अरमान था, शायद मेरे बेटे मेरे इस अरमान को पूरा करेंगे लेकिन जहां भी देश को ज़रूरत होगी, मैं वहां सेवा के लिए उपलब्ध हूं। अत: कोई भी ताकत मेरी सिख होने की पहचान को चुनौती ना दे।