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“समाज अपनी सोच बदले, तो लड़कियां हर क्षेत्र में परिवर्तन लाने की क्षमता रखती हैं”

जब खुद में हिम्मत, विश्वास और हौसला हो तो रास्ते भी खुद-ब-खुद बन जाते हैं। वास्तव में कोई भी रास्ता छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि हर रास्ता मंज़िल तक पंहुचाने वाला होता है। यह केवल इस बात पर निर्भर करता है कि आप में उसपर चलने का हौसला कितना है? यह कहना है जयपुर से 60 किमी दूर टोंक जिला के मालपुरा ब्लॉक स्थित सोड़ा पंचायत की सरंपच छवि राजावत का। जो देश की पहली एम.बी.ए शिक्षा प्राप्त सरपंच हैं।

छवि से प्रेरणा लेकर हर लड़कियां आगे बढ़ना चाहती हैं

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ माडर्न मैनेजमेंट से एम.बी.ए करने के पश्चात कॉर्पोरेट क्षेत्र के कार्य को छोड़कर सामाजिक सेवा को अपना उद्देश्य बनाने वाली छवि आज की युवा पीढ़ी की रोल मॉडल हैं और उन्हें एक नई दिशा में बढ़ने का संदेश भी देती हैं। उन्होंने अपने काम और आत्मविश्वास से ऐसी छवि बनाई है, जिससे हर किशोरी बालिका प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहती है।

कुछ ऐसी ही है टोंक जिला के निवाड़ी ब्लॉक स्थित ललवाडी गांव की रहने वाली राधा राजावत की। जो छवि को अपना गुरू और आदर्श मानती हैं और अब उन्हीं की राह पर चलते हुए गांव में शिक्षा और जागरूकता का अलख जगा रही हैं। इस संबंध में राधा के पिता लक्ष्मण सिंह तथा माता भंवर कंवर का कहना है कि पहले हमारी मानसिकता राधा की पढ़ाई को लेकर नकारात्मक थी, हम इसे पढ़ाना नहीं चाहते थे।

मगर इसकी ज़िद्द के आगे हमें झुकना पड़ा और इसे गांव के बाहर 8वीं के बाद पढ़ने भेजा, परन्तु राजपूत समुदाय के लोग व परिवार के अन्य लोगों के विरोध करने पर रोक दिया। मगर इसने हिम्मत नहीं हारी और सारे विरोध झेलते हुए 12वीं तक की पढ़ाई स्वयं मजदूरी करके पूरी की। इतने संघर्षों के बाद भी इसने 12वीं बोर्ड में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किये, जिसके बाद फिर हमने इसको कभी भी पढ़ने से नहीं रोका।

राधा ने लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा उठाकर हालात सुधरवाये

इस संबंध में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता भरत मीणा का कहना है कि राधा ने 8वीं कक्षा से ही साक्षर भारत मिशन के तहत बाल संवाददाता के रूप में चयनित होकर अपने गांव व पंचायत की समस्याओं को अखबार के माध्यम से उठाना शुरू कर दिया था। जो इस गांव के लिए एक मिसाल है।

वहीं किशोरी मंच की सदस्या पूनम राजावत के अनुसार 2013 में राधा ने पूरी पंचायत की बालिकाओं व महिलाओं का नेतृत्व करते हुए पंचायत स्तर पर विकास कार्यों में हो रही लापरवाही और भ्रष्टाचार तथा अन्य समस्याओं के समाधान के लिए न केवल टोंक के जिला कलेक्टर बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को भी रूबरू करवाते हुए ज्ञापन दिया था।

उसने उच्च शिक्षा के लिए लड़कियों को दूर जाने और इससे उनकी शिक्षा में आ रही रुकावटों को भी ज़ोरदार तरीके से उठाया। जिसका काफी प्रभाव पड़ा था। इसका परिणाम यह रहा कि लालवाड़ी पंचायत में 12वीं तक विद्यालय हुआ। जिससे पंचायत की बालिकाओं को शिक्षा ग्रहण करने में आ रही रुकावटें दूर हो गई और अभिभावक भी उन्हें स्कूल भेजने लगे।

राधा के आत्मविश्वास और युवा नेतृत्व की क्षमता को देखते हुए स्थानीय राजनीतिक दलों ने उसे पार्टी में शामिल होने और बड़ा पद देने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन उसने राजनीति से ऊपर उठकर समाज के सभी वर्गों के लिए काम करने की इच्छा जताते हुए उसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।

साक्षरता दर बढ़ी और लोगों को रोजगार भी मिला

राधा द्वारा शुरू किये गए जागरूकता का परिणाम है कि अब ललवाड़ी गांव में केवल राधा ही नहीं, राधा जैसी अन्य बालिकाएं भी अपने अधिकारों के लिए बोलने लगी हैं। पंचायत सहायक हेमराज सिंह ने बताया कि वर्ष 2014 में पंचायत प्रेरक के रूप में सभी के सहयोग से राधा ने न केवल बालिकाओं की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया अपितु गांव के निरक्षर 1800 लोगों को साक्षर किया तथा उनकी परीक्षा दिलवाकर प्रमाण पत्र भी बंटवाए।

राधा के पास पढ़कर साक्षर हुई शशि कंवर ने बताया कि पहले गांव में एक भी महिला पढ़ी लिखी नहीं थीं, परन्तु राधा और इसके साथ जुड़ी अन्य किशोरी बालिकाओं के प्रयासों से आज गांव की लगभग सभी बालिकाएं पढ़ रही हैं तथा 70 प्रतिशत महिलाएं भी साक्षर हो चुकी हैं।

एक अन्य पंचायत सहायक मुकेश मीणा ने भी राधा के प्रयासों को सराहनीय बताते हुए कहा कि उसके सहयोग से नरेगा में करीब 1000 लोगों को रोज़गार से जोड़ा गया तथा सभी प्रकार की पेंशन योजनाओं से 1200 महिला एवं पुरूषों को लाभ मिलना संभव हो सका है। इसके अतिरिक्त गांव के 2000 परिवारों को राधा के सहयोग से शौचालय निमार्ण की सरकारी योजना से जुड़वाकर लाभ दिलवाया गया।

ग्रामीणों को सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं का भी लाभ मिल रहा

वर्ष 2013 से पहले यदि बालिका शिक्षा की बात करें तो यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से अधिक नहीं था। जबकि वर्तमान में 80 प्रतिशत से अधिक बालिकाएं शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ चुकी हैं। वहीं 2013 से पहले सरकारी योजनाओं से लोगों के जुड़ने का प्रतिशत मात्र 40 था, जबकि आज 80 प्रतिशत लोग सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं से लाभांवित हो रहे हैं।

पहले अभिभावक बालिकाओं को गांव से बाहर नहीं भेजते थे, परन्तु अब 30 से 40 प्रतिशत बालिकाएं गांव से बाहर जाकर भी अपनी पढ़ाई कर पा रही हैं। राधा की साथी मैना राणा कहती हैं कि उसकी समाज सेवा की लगन व मेहनत को देखकर पंचायत की महिलाओं व किशोरी बालिकाओं तथा जागरूक लोगों ने राधा से पंचायत चुनाव लड़ने की गुज़ारिश की है। ताकि पंचायत में विकास की गति तेज हो सके।

राधा ने स्वयं के साथ-साथ अपने एक साथी कार्यकर्ता देवालाल गुर्जर को भी सरपंच पद के चुनाव में खड़ा किया और योजना बनाई कि यदि हम दोनों में से जो जितेगा वह सरपंच पद पर पूर्ण ईमानदारी से कार्य करते हुए लोगों की सेवा करेगा। राधा तो जीत नहीं सकी, परन्तु साथी कार्यकर्ता की जीत भी उसी की जीत थी क्योंकि वह अब तक पंचायत में चल रही तानाशाही और भ्रष्टाचार के तंत्र पर चोट करने में सफल रही।

स्थानीय शिक्षक बाबूलाल शर्मा और एक सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता दयाराम गुर्जर ने बताया कि राधा ने सामाजिक मुद्दों, समस्याओं और चुनौतियों को न केवल पंचायत स्तर पर बल्कि समय समय पर जिला और राज्य स्तर पर भी उठाने का प्रयास किया है। समाज के प्रति उसकी लगन का ही परिणाम है कि उसे तत्कालीन उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था।

राधा और उसकी साथी बालिकाएं अब बिना झिझक, हर मंच पर अपनी बात रखने में सक्षम हैं तथा अन्य बालिकाओं को भी अपने जैसा जागरूक बनाने की मुहिम छेड़ रखी हैं।

समाज को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत

हालांकि, सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ कम उम्र में ही राधा को परिवार की जिम्मेदारियां भी उठानी पड़ रही हैं। राधा के पिता लक्ष्मण सिंह ने दुखी स्वर में बताया कि वह कैंसर पीड़ित हैं। बड़ा बेटा पत्नी और बच्चों के साथ अलग रहता है। ऐसे में परिवार की बड़ी होने के नाते पूरी जिम्मेदारी इसपर ही आ गई है, जिसे यह प्राइवेट नौकरी करके मेरा ईलाज करवा रही है तथा अपनी पढ़ाई भी कर रही है।

मगर अब जयपुरिया हॉस्पिटल के वरिष्ठ डॉक्टर प्रहलाद धाकड़ के सहयोग से मेरा ईलाज निःशुल्क चल रहा है। यह सारी मेहनत राधा की है, जिसे पहले मैं पढ़ाने के पक्ष में नहीं था, परन्तु अब मुझे मेरी गलती का अहसास है। आज राधा ने महिला शिक्षा के प्रति मेरी सोच पूरी तरह से बदलकर रख दी है।

राधा बताती है कि उसके माता-पिता बचपन में ही उसकी शादी करवाना चाहते थे लेकिन उसने इसका कड़ा विरोध किया और आज वह अपने परिवार की आर्थिक प्रगति का एकमात्र माध्यम है। यदि उसकी शादी हो गई होती तो उसके परिवार के सामने पैसे की किल्लत हो चुकी होती। वह कहती है कि यदि मैंने विरोध न किया होता, तो आज मेरे परिवार की क्या हालत होती, इसका अंदाज़ा मेरे अभिभावक को भी है।

अब मैं जॉब के साथ-साथ अपनी जैसी बालिकाओं को आगे बढ़ाने तथा शिक्षा की मुख्यधारा से उन्हें जोड़ने का प्रयास कर रही हूँ। इसके लिए अध्यापक बनने हेतु पात्रता परीक्षा रीट की तैयारी कर रही हूं। शिक्षिका बनने के साथ-साथ मैं समाज सेवा का कार्य भी निरंतर करती रहूंगी।

राधा के संघर्ष और सामाजिक जागरूकता के प्रति उसका जज़्बा महिला सशक्तिकरण का एक बेमिसाल उदाहरण है। वास्तव में समाज में लड़का और लड़की के बीच अंतर को दूर करना आवश्यक है। केंद्र की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है लेकिन इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण लोगों की सोच में परिवर्तन लाना है। जिस दिन मां-बाप बेटा और बेटी के बीच समान व्यवहार को प्राथमिकता देने लगेंगे, उस दिन से हर लड़की राधा राजावत जैसी सशक्त बन सकेगी। जो अपने क्षेत्र में परिवर्तन लाने की क्षमता रखती है।

 

यह आलेख जयपुर, राजस्थान से रमा शर्मा ने संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2020 के अंतर्गत लिखा है

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