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कोविड-19 ने हमारे मानवीय रिश्तों को किस तरह प्रभावित किया

कोविड 19 का हमारे मानवीय रिश्तों पर प्रभाव

हम भले ही 2021 में पहुंच चुके हों, लेकिन कोविड-19 की पकड़ हम पर अब भी छूटी नहीं है। वैसे कहने को तो यूं तो कोविड-19 ने हमारे जीवन के हर स्तर को छुआ है, फिर चाहे वो आर्थिक हो, मानसिक हो, सामाज़िक हो या कोई भौतिक स्तर रहा हो। कोविड-19 से कोई भी अनछुआ नहीं रहा है। लेकिन, अभी जैसा कि माह-ए-फरवरी है, जिसे प्रेम करने का महीना भी कहा जाता है, तब आइए जानते हैं कोविड ने हमारे मानवीय प्रेम सम्बन्धों को कैसे प्रभावित किया?

कोविड-19 के बाद लोगों की लव लाइफ पर खासा असर हुआ है। मैंने जब, कुछ लोगों से इसके बारे में बात की तब वो नाम नहीं लिखने की शर्त पर यह बताते हैं कि “जैसा कि हम सब जानते हैं कोविड-19 से हमारी लाइफ स्टाइल में बहुत ज़्यादा बदलाव आ गया है। कोविड ने हमारे घूमने-फिरने, खाने-पहनने, उठने-बैठने से लेकर ज़िन्दगी की लगभग सभी आदतों में बदलाव कर दिया है।”

जब अचानक लॉक डाउन लगा और सभी अपने घरों में कैद हो गए, जो जहां था उसे वहीं रुक जाना पड़ा। इसी डर में लोग अपनी नौकरी, अपना काम छोड़कर अपने पैतृक घरों की तरफ लौट आए, साथ ही लौट आईं उनकी अधूरी सी प्रेम कहानियां।

कोविड-19 ने प्रेम सम्बन्धों को काफी प्रभावित किया है

वैसे, बहुत दिलचस्प सा है हमारा देश! यहां प्रेम की सच्ची परिभाषा राधा-कृष्ण भले ही हैं, लेकिन प्रेमियों के लिए प्रेम करना और प्रेम सम्बन्धों को सब की नज़रों से बचाए रखने की यहां एक ही तकनीक है और वो है, अपने प्रेम को समाज से,अपनों से छुपाकर रखना।

हमारे एक मित्र बताते हैं कि कोविड-19 के बाद हम लोग शहरी परिवेश को छोड़ वापस अपने-अपने घर आ गए, जिससे आपसी मेल-जोल और संवाद घट गए और जब बातें कम हुईं, तब हमारा रिश्ता प्रभावित होने लगा। क्योंकि, व्हट्सएप्प के साथ कम्युनिकेट करना तो आसान है लेकिन घर में रहते उस कम्युनिकेशन के लिए वक्त निकाल पाना बहुत मुश्किल होता है।

वहीं, हमारा गांव इतना पिछड़ा है कि अब भी दो-दो, चार-चार दिन तक तो बिजली भी नहीं आती है, साथ ही साथ अब गाँव की परिस्थितियां अलग हैं। अब हम अपने-अपने घरों में हैं, कॉलेज या हॉस्टल में नहीं! मतलब, अब वक्त-बेवक्त किसी को फोन नहीं घुमाया जा सकता और यही वजह है की अब हम दोनों के बीच आपसी संवाद घटने लगे और तब एक-दूसरे के लिए गलतफहमियां अपने आप बढ़ने लग गईं, जिससे धीरे-धीरे हम दोनों के बीच लड़ाई-झगड़े बढ़ गए। हमारे घरों (गांव) की दूरी इतनी है कि हम चाह कर भी एक-दूसरे के घर नहीं पहुंच सकते और किस्मत से पहुंच भी जाएं, तब शायद हमें एक-दूसरे से मिलने की इजाज़त नहीं दी जाएगी।

वो आगे कहते हैं, “पूरा एक साल होने को आया है, मैं उससे एक बार ही मिल पाया हूं। अब कॉलेज खत्म हो चुके हैं और हम दोनों का एक ही वक्त पर एक शहर में होना अब मुश्किल हो गया है।” यानि उन्हें फिलहाल अब कोई उम्मीद नहीं है कि वे एक-दूसरे से जल्द ही मिल सकेंगे या नहीं। इसलिए वो रिश्ता जिसमें हंसी और खिलखिलाहट थी, वो कोविड-19 के चलते अब खाली खटपट का सा रह गया है।

बहरहाल, इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि हमें हर किसी को एक कहानी पर आंक लेना चाहिए, जहां यह दौर हमारे मानवीय रिश्तों को कमज़ोर कर रहा है। वहां कोविड-19 ने यह भी साबित किया है कि किस मज़बूती के साथ लोग दूर होकर भी एक-दूसरे के साथ खड़े हो सकते हैं।

मुश्किल, यह है कि हम एक ऐसे दौर, एक ऐसी सदी में हैं, जहां सब्र जैसा कुछ हम जानते-समझते ही नहीं। हर बात की जल्दी ने हमारी इस नई पीढ़ी को बे-सब्र बना दिया है। व्हाट्सएप्प के एक ब्लू टिक से लेकर इंस्टा की स्टोरी तक हमें हर बात पर व्यू तुरन्त चाहिए होता है, उस पर ये कोविड काल! जहां सब ठहर सा गया है।

बेशक, कोविड-19 ने हम सबको किसी ना किसी स्तर पर हमारे सम्बन्धों को प्रभावित किया है, लेकिन फिर भी यह समझने की चीज है कि प्रेम के पगने (बढ़ने) के लिए, उसे वक्त की धीमी आंच पर देर तक रखा जाए तभी वो मिठास दे पाएगा।

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