इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज में अगले सत्र से भारतीय भाषाओं में शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने की केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की घोषणा सराहनीय है, यह शिक्षा जगत के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश में अपनी भाषा में शिक्षा स्वाभाविक रूप से दी जानी चाहिए, मगर आजादी के बाद से ही अंग्रेजी के पक्ष में लगातार माहौल बनाया जाता रहा है ।
आज वर्तमान में शिक्षा पाठ्यक्रमों में अंग्रेजी भाषा को ही पहले प्राथमिकता दी जाती है। वहीं जहां हिंदी बोलने वाले को कमजोर समझा जाता है। शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक जी का घोषणा महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि संघ लोक सेवा आयोग से लेकर सभी राज्य की प्रशासनिक परीक्षाओं में अंग्रेजी का वर्चस्व अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और भी अन्य सरकारी परीक्षाओं में हमेशा से हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों के साथ भेदभाव होता आया है और छात्रों को अपनी मांगों को लेकर हड़ताल करनी पड़ती है। इसी के चलते लगातार संघ लोक सेवा आयोग एवं अन्य सरकारी परीक्षाओं में हिंदी माध्यम के विद्यार्थी कम होते जा रहे हैं।
हमें सब से पहले जरूरत है उच्च शिक्षा जैसे- मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में भारतीय भाषाओं को महत्व देना, 1964 में भारत की केन्द्रीय सरकार ने डॉ. दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया, जिसे कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है ।
डॉ. कोठारी उस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे, उस समय आयोग ने भारतीय स्कूली शिक्षा की गहन समीक्षा प्रस्तुत की जो भारत के शिक्षा के इतिहास में आज भी सर्वाधिक गहन अध्ययन माना जाता है ।
कोठारी आयोग ( 1964-66 ) या राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा केवल स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा भी हमें अपनी भारतीय भाषाओं में दी जानी चाहिए और इस बात को संसद ने भी माना था परन्तु उस शिक्षा नीति को लेकर अब तक कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं हुए हैं।
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