अमेरिकी पॉप स्टार रियाना ने भारतीय किसानों के समर्थन ट्वीट किया है। मैं रियाना को नहीं जानता था क्योंकि मेरे पास जानने का कोई कारण नहीं था। अब मैं रियाना को जानता हूं क्योंकि उन्होंने मेरे देश की मौजूदा स्थिति के बारे में अपनी वैचारिकी को रखा और यह बिलकुल भी गलत नहीं है।
why aren’t we talking about this?! #FarmersProtest https://t.co/obmIlXhK9S
— Rihanna (@rihanna) February 2, 2021
क्या म्यांमार और रूस के मसले पर भी लोग इतना खुलकर बोल रहे हैं?
रामायण में विभीषण के प्रसंग को भी ऐसे ही देखा जा सकता है। विभीषण की नज़र में राम जो कि परदेसी थे, उनके विचार उन्हें अपने राष्ट्र से ऊपर लगा। यह नितांत व्यक्तिगत चुनाव हो सकता है कि आप रावण के लक्ष्य का पवित्रीकरण करें या राम के लक्ष्य का। आप साम्यवाद के आचरण को अपना मानें या पूंजीवाद को। इसमें कोई अनुचित या अनर्गल लगने वाली बात नहीं है।
मगर यहां एक दूसरी बात भी है, और वो ये कि हमारे पड़ोसी देश म्यांमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार को निरस्त कर दिया गया है और किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस पर घोर आपत्ति जताते हुए उसी स्तर की टिप्पणी क्यों नहीं की?
Breaking News: Daw Aung San Suu Kyi, Myanmar’s deposed civilian leader, faces up to three years in prison on an obscure charge of illegally importing walkie-talkies.https://t.co/AAvPFgbKEW
— The New York Times (@nytimes) February 3, 2021
इस सवाल पर सोचते हुए यही लगता है कि हम कितने सेलेक्टिव हैं? संशय होता है कि दुनिया की सशक्त बिरादरी का सारा खेल कहीं उस पूंजी की आमद से तो निर्धारित नहीं हो रहा? क्या भारतीय किसानों का दमन पिछले वर्ष के थाईलैंड विरोध और इस वर्ष के म्यांमार लोकतांत्रिक आपातकाल से बड़ा है?
क्या भारत की लोकतांत्रिक सरकार चीन की तानाशाह सरकार से भी बदतर है जहां उग्यार मुस्लिमों की रिपोर्टिंग भी ठीक से नहीं हो पा रही?क्या रूस में विपक्ष के नेता को छुड़ाने का मसला कम संवेदनशील है?
विश्व में अन्याय कहीं भी हो यदि आप सशक्त हैं और विवेकाधीन निर्णय लेने के लिए अपनी आंतरिक नैतिकता का इस्तमाल करते हैं, तो मुझे लगता है आपको इसमें कोई अंतर नहीं दिखता होगा कि वह परेशानी भारत में है या म्यांमार में? हां पर संदेह होता है जब मैं आपको ऐसा करते हुए नहीं देख पाता हूं।
सरकार की वकालत करने वाले सिलिब्रिटीज़ रचते हैं जनहितकारी होने का ढोंग
मुझे अपने देश के तमाम पूंजीवादियों पर भी इसी प्रकार का संदेह रहता है, क्योंकि कलाकार का हृदय तब भी फटना चाहिए था जब 150 से अधिक किसान इस आंदोलन में शहीद हो जाते हैं। अगर कलाकार को अपने देश की चिंता केवल सरकारी पक्ष की वकालत करते समय होती है, तो संदेह होता है उनके जनहितकारी होने पर!
India’s sovereignty cannot be compromised. External forces can be spectators but not participants.
Indians know India and should decide for India. Let's remain united as a nation.#IndiaTogether #IndiaAgainstPropaganda— Sachin Tendulkar (@sachin_rt) February 3, 2021
कुल मिलाकर मैं यहीं कहना चाहता हूं कि किसानों की समस्या का समाधान क्या हो हम इस पर चर्चा करें। कोरोना के बाद बेरोजगारी और हताशा चरम पर है। ना तो कंगना के ट्वीट से और न ही किसी टेलिविज़न एंकर की चीख से हिंदुस्तान की समस्या का समाधान निकल सकता है।
भारत के नौजवानों को नौकरियां चाहिए। किसानों को आर्थिक सुरक्षा। आम आदमी को सस्ता पेट्रोल। विद्यालयों में भरपूर अध्यापक। मध्याह्न भोजन के माध्यम से कुपोषण से लड़ाई। चीन द्वारा अरुणाचल की जमीन हथियाये जाने पर रोक। सरकार को देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने की ज़रूरत है न कि ट्विटर युद्ध में उतरना।
इस आंदोलन से एक अच्छा काम यह हुआ है कि हमें हिंदू मुस्लिम की राजनीतिक जमीन में, किसान और भारतीय नागरिक जैसी मनचाही फसल मिल गई है। यह बना रहे और सरकार की नीतियों को प्रभावित करता रहे बस।