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इतिहास के पन्नों में दफन, आज़ादी के गुमनाम योद्धा

आज़ादी के गुमनाम योद्धा

मैं पिछले दिनों राजस्थान में संगरिया, हनुमानगढ़ के पास एक दोस्त से मिलने गया हुआ था। दोस्त से बातों ही बातों में किसान, मजदूर, महिलाओं से सम्बन्धित मुद्दों पर चर्चा चल निकली, अब चर्चा चल ही निकली तो चर्चा होते होते आजादी की लड़ाई के दौर में जा पहुंची। चर्चा के उस दौर में मेरी मुलाकात उस इलाके के एक गुमनाम महान योद्धा से हुई, जो आज़ादी से पहले गोरे अंग्रेजों और आज़ादी के बाद काले अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा और लड़ते हुए शहादत पाई।

उस योद्धा ने देश और समाज में व्याप्त सामंतवाद, मजदूर-किसान की समस्याओं, साम्प्रदायिकवाद और जातिवाद के खिलाफ बहुत लिखा। इन सब के खिलाफ लिखना और बोलना ही उसकी हत्या का कारण बना। लुटेरी ताकतों और धन-बल की नीति ने उसकी अन्याय के खिलाफ उठती बुलंद आवाज को हमेशा के लिए बंद कर दिया।

आज़ादी के गुमनाम नायक बलवंत सिंह आज़ाद

ऐसे क्रांतिकारी योद्धा का नाम था बलवंत सिंह आज़ाद जिसको लोग प्यार से पूरे इलाके में “बल्लू” कहते थे। वहां के इलाके की जनता उससे बहुत प्यार करती थी। जिस दिन उनकी हत्या हुई पूरे संगरिया में किसी के घर में चूल्हा भी नहीं जला। पूरे इलाके में बलवंत सिंह की हत्या पर गम और हत्यारों के खिलाफ रोष था, सबको मालूम भी था कि हत्या किसने और क्यों की है? लेकिन पूरे इलाके में से उनके लिए कोई सामूहिक आवाज हत्यारों के ख़िलाफ नहीं उठ सकी।

इसका सबसे बड़ा कारण बलवंत सिंह के पिता जी जो उस इलाके के बहुत बड़े सामन्त थे। बलवंत की हत्या करने वाले भी बड़े सामन्त और राजनीतिज्ञ थे। बलवन्त सामन्तवाद के खिलाफ लड़ रहा था। वह पूरे देश में से सामंतवाद को खत्म करना चाहता था। इसलिए उनके अपनों ने भी उनकी हत्या के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई।

उनकी पत्नी विद्या जी, जो उस समय 23-24 साल की थीं और उनकी 3 दूध पीती बेटियां थी। बलवन्त सिंह की हत्या के बाद उनके सामन्त पिता ने भी बलवन्त सिंह की पत्नी और उसकी बेटियों का साथ नही दिया। बलवंत सिंह की मौत के बाद विद्या जी को अपना हक भी उन्हें बड़े संघर्षों के बाद मिला।

विद्या जी ने अपनी अंतिम सांस 18.03.2018 को 95 साल की उम्र में ली, वे स्वयं के अनपढ़ होते हुए भी अपने पति  बलवन्त सिंह के उसूलों पर ताउम्र चलती रहीं और एक मजबूत महिला की तरह जिंदगी में संघर्ष किया।

बलवन्त सिंह ने कई किताबें भी लिखी थीं, लेकिन जो बाद में उचित देखभाल ना होने के कारण नष्ट हो गयीं। उनसे सम्बन्धित बहुत ही सीमित दस्तावेज मिले, जिनको पढ़कर अहसास हुआ कि उन्होंने उस समय बहुत ही जबरदस्त लिखा था। दलित जिनको आज भी सवर्ण जातियां समानता का संविधान  होने के बावजूद समाज में बराबरी देना नहीं चाह रहीं हैं और जिसके चलते प्रतिदिन दलित उत्पीड़न की घटनाएं अलग-अलग जगह से सामने आती रहती हैं। 

दलित जिनको उस समय अछूत कहा जाता था, जिनके साथ सवर्ण जातियां जानवरों से भी बुरा व्यवहार करती थीं। शहीद भगत सिंह भी अपने लेख “अछूत समस्या में बहुत अच्छे से इस समस्या को उठा चुके थे। समाज में अछूतों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार ना के बराबर थे, उस दौर में बलवन्त सिंह अछूत जातियों को महान जाति लिखकर संबोधित करते थे।

वहीं वो सवर्ण जातियों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि ये मुट्ठी भर विदेशी जिनका कोई अस्तित्व नहीं है ये हमारे राजा बने बैठे हैं तो सिर्फ तुम्हारे जातीय गौरव के कारण ही जो  7 करोड़ जनसंख्या की महान जाति जिनको आपने दूर समाज की मुख्यधारा से दूर रखा हुआ है, जिनको आप अछूत कहते हैं।

वो सभी जातियों के नेताओ से अपील करते है कि आपके भिन्न-भिन्न मत हो सकते है। उन मतों को रखते हुए एक दूसरे पर विश्वास करके ही भारत मे रहना होगा।

हिन्दू नेताओं से भी वो अपील करते हुए लिखते हैं 

‘हिन्दुओं के नेताओं से मेरी सविनय प्रार्थना है कि वो दूसरी जातियों को संतुष्ट रखने के लिए आत्मत्याग का उदाहरण दें, जिस प्रकार छोटे भाई के रूठने पर उसे सब कुछ दे दिया जाता है। तुम भी अपने समाज की अल्पसंख्यक जातियों को खुश रखो’

बलवन्त सिंह के बचे हुए दस्तावेजों को पढ़कर आसानी से उनकी विचारधारा को समझा जा सकता है। वो दलितों और अल्पसंख्यको के लिए बराबरी की बात करते हैं, क्योकि जिस दौर में ये सब बलवन्त सिंह लिख रहे थे उस दौर में हिन्दू-मुस्लिमों में साम्प्रदायिक दंगे बढ़ रहे थे। इसलिए वो उस दौर में आम जनमानस से अपील करते हैं कि सभी बराबरी से और भाईचारे से रहें, शांति से रहें, तभी हम आजादी की लड़ाई को लड़ सकते है। हमारे देश के दुश्मन अंग्रेज हैं ना कि दलित और मुस्लिम।  

देश की आजादी कैसी हो इस पर भी उनकी राय स्पष्ट है

वो लिखते है कि हम गुलामी से रिहा होना चाहते हैं लेकिन हमारी आज़ादी कैसी हो? अल्पसंख्यकों को आज़ाद मुल्क में क्या मिलेगा? मजदूर-किसानों को क्या मिलेगा? देशी राज्य रहेगें या नहीं?

देशी राज्यों के बारे में वो कहते हैं कि अगर देशी राज्य मतलब रियासतें स्वयं का भारत मे अपना बपौती अधिकार रखना चाहती हैं तो यह असम्भव होगा आजाद मुल्क में।

देशी रियासतों की क्रूर सत्ता का जिक्र करते हुए वे लिखते हैं कि ‘उन्होंने प्रजा की गाढ़ी कमाई पर ऐशो-आराम किया है। प्रजा की बहू-बेटियों की इज्जत, मान, धर्म की कभी इन्होंने परवाह तक नहीं की, प्रजा की बच्चियों की  दिन-दहाड़े ये नर पिशाच इज्जत लूट लेते हैं इनका खात्मा होना बहुत जरूरी है।

जीवन के अंतिम दिनों में 

देश के आजाद होने के बाद पूरा देश विभाजन के कारण हिन्दू-मुस्लिम के दंगों से गुजर रहा था। पूरे देश मे उथल-पुथल मची हुई थी। कहीं खुशी तो कहीं गम की लहर थी। इसी का फायदा उठाकर सामंत, कट्टर  साम्प्रदायिकतावादी, जातिवादी जो आज़ादी   से पहले पर्दे के पीछे से अंग्रेजो को सहायता करते थे। अब लूट मचाने के लिए कांग्रेस में घुस गए थे।

उन्ही में से कुछ नेता जिनका बलवन्त सिंह ने उनके कृत्यों का विरोध किया। उन नेताओं ने उनको जान से मारने की धमकियां दी। इस संदर्भ में एक पत्र बलवन्त सिंह ने कांग्रेस की अखिल भारतीय कमेटी को लिखा। इस पत्र को ही उन्होंने हजारों की संख्या में छपवाकर जनता में वितरित किया। इस पत्र में उन्होंने उन सभी लुटेरो की पोल खोल दी, इसी पत्र से बौखलाए हुए लुटेरो ने उनकी हत्या कर दी।

इस पत्र में क्या लिखा हुआ था?

बहुत से स्वार्थी कांग्रेस के राजस्थान के नेता जिनमे चौधरी कुम्भाराम, चौधरी रामचन्द्र प्रधान बीकानेर, चौधरी नन्दा राम, चौधरी जीवन राम आदि का नाम लिखते हुए बलवन्त सिंह लिखते हैं कि कैसे ये नेता राजस्थान में साम्प्रदायिकता भड़का रहे हैं।

कैसे चापलूसी करके ये नेता जिनकी छवि कट्टर जातीय और साम्प्रदायिक है अब कांग्रेस में घुस गए हैं, जो अब इन्ही दंगो का फायदा उठाकर ये नेता सरकारी जमीनों पर कब्जा कर और उनकी कालाबाजारी कर रहे हैं। बलवन्त सिंह इन नेताओं को जनता का और कांग्रेस का महाशत्रु बताते हैं और कहते हैं कि जनता को ऐसे गद्दारों  से सचेत रहते हुए अपने पांव पर खड़ा होना चाहिए। बलवन्त सिंह कांग्रेस की अखिल भारतीय कमेटी से मांग करते हैं कि ऐसे नेताओं को बाहर करके कांग्रेस को कलंकित होने से बचाया जाए।

बलवन्त सिंह जिसकी आवाज को उस समय लुटेरी ताकतों ने बन्द कर दिया था। आज भी ऐसे हजारों बलवन्त सिंह इतिहास के पन्नों में दफन हैं, जिनकी आवाजों को लुटेरो द्वारा बन्द कर दिया गया। हमारा यह एक छोटा सा प्रयास है कि हम ऐसी आवाजों जिनको दफनाने की कोशिश की गई, उन आवाजों को आज आवाज दे सकें।

हमारे देश में लुटेरे अब भी जिंदा हैं। वो नए रूप-रंग में हैं। वो सत्ता पर काबिज हैं। वो धर्म-जात का चोला पहने हुए हैं। वो वर्दी में हैं। वो चुन-चुन कर क्रांतिकारी कतारों का शिकार कर रहे हैं। अब वो उस समय से ज्यादा ताकतवर हैं। उनके कत्ल करने का सिलसिला अभी रुका नहीं है दबोलकर, पनसारे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश, रोहित इस फेहरिस्त में कत्ल कर दिए गए हैं, इससे आगे और बहुत नाम जुड़ जाएंगे इनसे पहले भी और बाद में भी।

हमें हत्यारों की इस मुहिम को रोकना है तो हमको उन इतिहास के पन्नों में दफन तमाम क्रांतिकारी योद्धाओ की आवाजों को आवाज देनी होगी। हमें लड़ना ही होगा।

                                                                                                                                        इंक़लाब जिंदाबाद

ये लेख बलवन्त सिंह की पत्नी विद्या जी को समर्पित है। 

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