केंद्र सरकार द्वारा संसद में अध्यादेश लाकर किसानों के हितों के लिए तीन कानून बनाए गए, जिनको रद्द करने के लिए हमारे देश के किसान देश की राजधानी दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर लगातार दो महीने से आन्दोलन कर रहे हैं। इन कृषि बिलों को लेकर आंदोलनरत किसानों को अब तक दो महीनों से भी अधिक का समय गुज़र चुका है। इन कृषि बिलों को लेकर सरकार एवं किसानों के बीच सुलह होने एवं इन पर अपनी पूर्ण सहमति देने के लिए अब तक किसान नेताओं और सरकार के बीच अब तक 11 से भी अधिक वार्ताओं का दौर हो चुका है, फिर भी दोनों आपस में सुलह या सहमति नहीं बना पा रहे हैं।
किसकी भाषा में गड़बड़ी है, किसानों के या फिर सरकार के?
कृषि बिलों को लेकर आंदोलनरत किसान सरकार से अपनी किस भाषा में बात कर रहे हैं? और सरकार किस भाषा में किसानों से वार्ता करने की कोशिशें कर रही है ? किसानों को सरकार के कृषि बिलों के दूरदर्शी फायदे और सरकार को किसानों के कृषि बिलों पर जताई जा रही आपत्तियां क्यों समझ नहीं आ रही हैं?
कहीं आंदोलन में आंदोलनरत किसानों के बीच कुछ व्यक्ति किसान बन कर विदेशों से तो नहीं आए हैं, कि इनकी भाषा सरकार के मंत्री या फिर आला अधिकारियों को भी समझ में नहीं आ रही है, ठीक वहीं दूसरी ओर सरकार भी किसानों से जुडी हुई असल आपत्तियों एवं उनसे जुडी समस्याओं पर अपना ध्यान ही नहीं देना चाहती है।
लेकिन,यह ज़रूर है कि आंदोलनरत किसान एवं उनसे स्वतंत्र रूप से जुड़े किसान संगठन जिन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं, उनको अच्छे से पढ़कर और समझ कर आए हैं। लेकिन सरकार शुरू से ही जिन कृषि कानूनों को किसानों के हित में बता रही है, उनको बनाने से पहले सरकार ने किसानों एवं उनसे जुड़े किसान संगठनों एवं देश के आम जनमानस से कोई चर्चा, सलाह या मशविरा नहीं किया है, जिसके चलते दोनों तरफ इन कृषि बिलों को लेकर असमंजस की स्थिति बन रही है।
किसानों की सरकार से एक ही सीधी मांग है – “तीनों कानून वापस लो”
किसानों का कहना है कि हम कानून वापसी के बाद ही कोई नए कानूनों या फिर पहले के बनाए हुए कानूनों पर चर्चा करेंगे। अब असल सवाल यह है कि “क्या सरकार इन कानूनों को वापस लेगी ? क्या किसान अपना आन्दोलन खत्म करेंगे ? इन दोनों ही सवालों का जवाब देना बहुत ही मुश्किल है।”
सरकार ने इसे अपने सत्ता की निरकुंशता के स्वाभिमान पर ले रखा है, ऐसा लग रहा है कि सरकार इन कानूनों को वापस लेना अपनी हार मान बैठी है। वहीं आंदोलनरत किसानों ने भी सरकार के इस निरकुंश रवैये को देखते हुए भी यह घोषणा कर दी है कि ” जब तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं हो जाते हम आन्दोलन खत्म नहीं करेंगे, यहीं मर जाएंगे लेकिन हार मानकर वापिस अपने घरों में नहीं जाएंगे।”
दिन प्रतिदिन किसानों के आन्दोलन में विश्वविद्यालयों के युवाओं, अन्य राज्यों के किसानों, पत्रकारों, स्कूलों के विद्यार्थियों, बड़े-बड़े सेलिब्रेटी की भी भीड़ बढ़ती जा रही है। देश के कई हिस्सों में इस आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने के लिए ‘किसान महापंचायतें ’ बुलाई जा रहीं हैं,और इन पंचायतों में भी देश के अन्य राज्यों से किसान भी बड़ी संख्या में पहुंच भी रहे हैं।
ये रिहाना कौन है?
मशहूर अमेरिकन पॉप स्टार रिहाना (Rihanna) ने CNN के एक रिपोर्ट को टैग करते हुए ट्विटर पर ट्विट किया जिसमें लिखा था- “Why aren’t we talking about this ?!” #FarmaresProtest” इसमें सिर्फ यही कहा गया है कि “हमलोग इस बारे में बात क्यूँ नहीं कर रहे ?!” क्या इन कुछ शब्दों से हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है ? क्या हमारा इतना बड़ा, विशाल लोकतांत्रिक और मजबूत देश हिल सकता है ?
रिहाना के ट्विट से पहले और बाद में भी कई अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों ने इस बारे में सोशल मीडिया के माध्यम से इन कृषि बिलों एवं आंदोलनरत किसानों के सम्बन्ध में भी बोला था। लेकिन, रिहाना के एक ट्विट के बाद ऐसा लगा जैसे ट्विटर पर भूचाल आ गया हो। कुछ इसके पक्ष में तो कुछ इसके विपक्ष में अपने पुराने हथियारों के साथ मैदान में कूद पड़े। ऐसा नहीं है कि रिहाना ने सिर्फ भारत में ही हो रहे आन्दोलन के बारे में बोला है, पूरी दुनिया में रिहाना को जहां भी सामाजिक मुद्दे दिखते हैं वो उनके हक के लिए आवाज़ उठाती आई हैं।
उस एक ट्विट के बाद ऐसा लगा जैसे किसानों का यह आन्दोलन अंतर्राष्ट्रीय हो गया। ऐसा बिलकुल नहीं है, ये आन्दोलन देश के किसानों का है, देश के अन्दाताओं का है। इसको आप चाह कर भी एक चाहरदीवारी में कैद नहीं कर सकते हैं। इन भारत के किसानों के घरों से निकले बच्चे दुनिया के हर कोने में रहकर इस आंदोलन को वहीं से अपनी बात और समर्थन दे रहे हैं। आज के इस आधुनिक दौर में आप एक आवाज़ को दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने से नहीं रोक सकते। इसीलिए यह कहना कि “उस एक ट्विट मात्र से ही ऐसा हुआ है, ऐसा कहना बिलकुल भी जायज़ नहीं है।
ऐसा क्या लिखा था उस ट्विट में ? कि अचानक से हमारे भारत के बहुत बड़े सेलिब्रिटी खिलाड़ी और कलाकार सरकार के बचाव में उतर आए और देश को जोड़े रखने और गलत खबरों से बचने की नसीहत देने लगे। ये सब वहीं लोग हैं, जो कल तक इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप थे। यहां तक कि भारत के विदेश मंत्रालय को भी एक स्टेटमेंट जारी कर आम जनमानस को कुछ नसीहतें देनी पड़ीं।
क्या एक लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने का हक नहीं?
कोई भी लोकतांत्रिक देश हो या फिर राजतांत्रिक, वहां के आम जन को जब भी अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से या फिर विरासत में मिले राजा से कोई शिकायतें होती हैं और प्रशासन द्वारा लगातार उस शिकायत को अनसुना किया जाता है, तो जनता को मज़बूरन आन्दोलन करने पड़ते हैं।
भारत वर्ष एक लोकतांत्रिक देश ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारतीय संविधान के तहत यहां के हर एक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। उन्हीं अधिकारों के दायरे में रहकर ही आप कुछ कर सकते हैं। जिस संविधान ने आपको अधिकार दिए हैं, गलती करने पर वही आपको दण्डित भी करता है।
जिस तरीके से सरकार द्वारा आन्दोलन कर रहे किसानों को परेशान किया जा रहा है, यह बिलकुल भी उचित नहीं है। किसान अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं, ठीक वहीं सरकार को चाहिए कि वह अपनी साफ नियत के साथ किसानों से बात करे और समस्या का समाधान करे।