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पर्यावरण पर गहराता प्रकाश प्रदूषण पारिस्थितकी तंत्र के लिए बड़ी चुनौती

लाइट प्रदूषण का मानव पर प्रभाव

जब भी इस दुनिया में कोई आविष्कार होता है, उससे सबसे अधिक नुकसान हमारे पर्यावरण को होता है। 1878 में जब बल्ब का आविष्कार हुआ, तब अंधेरे से लिप्त और उससे डरने वाली दुनिया ने उसका तहे दिल से स्वागत किया। औद्योगिक क्रांति और बल्ब के आविष्कार से ये अंधेरी दुनिया उजाले में तब्दील हो गई। देखते ही देखते रात भी दिन में बदल गए।

हमारा रात का डर खत्म हुआ और हम कभी भी कहीं भी आने-जाने लगे, पहले से अधिक काम करने लगे। लेकिन इस कृत्रिम रोशनी ने एक नया प्रदूषण विकसित कर दिया है, जिसका नाम है लाइट (प्रकाश) प्रदूषण। यह पर्यावरण, जैव-विविधता के साथ-साथ मनुष्यों के लिए भी बेहद खतरनाक है। हम ध्वनि, हवा,पानी जैसे कई तरह के प्रदूषण को जानते हैं, लेकिन अभी भी ज्यादातर लोग लाइट प्रदूषण से अवगत नहीं हैं।

क्या है लाइट प्रदूषण?

सरल भाषा में कहें तो कृत्रिम लाइट (जैसे बल्ब) का गलत तरीके से, अनावश्यक या अत्यधिक उपयोग ही प्रकाश प्रदूषण है। खराब रूप से डिज़ाइन किए गए आवासीय, कमर्शियल और औद्योगिक आउटडोर या स्ट्रीट लाइट मुख्य रुप से प्रकाश प्रदूषण में योगदान देते हैं। जब आउटडोर बल्ब को किसी शिल्ड से नहीं ढ़का जाता तो प्रकाश आकाश या बगल में 50% से अधिक का उत्सर्जन करते हैं।

ये प्रकाश अनावश्यक रुप से इधर-उधर आकाश में फैलकर बर्बाद हो जाते हैं। इसके साथ ही ये आकाश और हवा को प्रदूषित भी करते हैं। उत्सर्जित प्रकाश का केवल 40% ही वास्तव में जमीन को रोशन करता है। एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार खराब डिजाइन के कारण लगभग 30% आउटडोर प्रकाश व्यवस्था बर्बाद हो जाते हैं। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, प्रकाश जलने से 1.7 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड और प्रत्येक वर्ष बर्बाद हुई बिजली में $ 2.2 बिलियन का योगदान होता है।

लाइट प्रदूषण का मानव पर प्रभाव

वर्तमान में दुनिया की अधिकतर आबादी प्रकाश से प्रदूषित आसमान के नीचे रहती है। 1994 में अमेरिका के लॅास एंजिलिस में रात के वक्त भूकंप आया। जिसके बाद पूरे शहर की बिजली काट दी गई। घना अंधेरा होने की वजह से आसमान में टिमटिमाते तारे साफ-साफ दिखने लगे। जिसे देख वहाँ के लोग डर गए और पुलिस को फोन कर आसमान में कुछ चमकने की शिकायत करने लगे। जांच के दौरान पता चला कि वहाँ के कई लोगों ने पहली बार प्राकृतिक रूप से रात को पहली बार देखा था।

2016 के “World Atlas of Artificial Light Brightness,” के अनुसार दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी लाइट प्रदूषण से ग्रस्त आसमान के नीचे रहती है। विश्व की इतनी बड़ी आबादी एक प्राकृतिक रात का अनुभव नहीं कर पाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में 99 प्रतिशत जनता एक प्राकृतिक रात का अनुभव नहीं कर पाती है।

‘जर्नल अर्बन क्लाइमेट’ के अनुसार 1993 से 2013 के बीच दिल्ली, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भारी मात्रा में लाइट प्रदूषण बढ़ा है। शोधकर्ताओं के अनुसार 2012 से 2016 के बीच भारत में रात के वक्त कृत्रिम रोशनी प्रदूषण 2 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है।

कृत्रिम रोशनी हमारे प्राकृतिक दिन-रात के पैटर्न को बाधित करती है और हमारे पर्यावरण के नाजुक संतुलन को बदल देती है। प्रकाश प्रदूषण से सभी नागरिकों पर प्रभाव पड़ता है। यह हमारे सोने के साइकल को बदलता है। जिससे हमें कम नींद आना, नींद नहीं आना, गहरी नींद ना आना, सिरदर्द, अवसाद, आंखों में दिक्कत, मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग और कैंसर जैसी कई बीमारियां हो सकती है।

इन सबके मद्देनजर 2009 में, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (एएमए) ने सर्वसम्मति से प्रकाश प्रदूषण में कमी का समर्थन किया, और चकाचौंध और ऊर्जा कचरे को कम करने के लिए आउटडोर लाइट को कम करने और जरुरत अनुसार प्रयोग करने की वकालत की।

लाइट प्रदूषण का वातावरण एवं वन्यजीवों पर प्रभाव

खगोल विज्ञान हमें पृथ्वी की जलवायु पर सूर्य के प्रभाव को निर्धारित करने में मदद करता है, और अंतरिक्ष से पृथ्वी के लिए किसी भी संभावित खतरों की पहचान करता है। अंतरिक्ष की निगरानी और अनुसंधान करने के लिए, खगोलविदों को अंधेरे से परिपूर्ण आसमान की आवश्यकता होती है, लेकिन जो प्रकाश प्रदूषण की वजह से बाधित हो रहा है।

प्रकाश प्रदूषण सभी वन्यजीवों के भोजन, नींद, संभोग और उनके प्रवास चक्रों को प्रभावित करता है। वन्यजीव रात में बहुत अधिक कृत्रिम प्रकाश होने पर अपने रास्तों से भटक जाते हैं। उल्लू और नाइटहॉक जैसे पक्षी चांद और तारों की रोशनी का उपयोग शिकार करने और रात में प्रवास करने के लिए करते हैं। कृत्रिम रोशनी की वजह से इस तरह के पक्षी अपने इच्छित प्रवास मार्ग से भटक जाते हैं, और अन्य जानवरों का शिकार हो जाते हैं।

समुद्री पक्षी जैसे अल्बाट्रोस कृत्रिम प्रकाश की चमकदार रोशनी के कारण प्रकाशस्तंभ, विंड टरबाइन और समुद्र में ड्रिलिंग प्लेटफार्मों से अक्सर टकरा जाते हैं। अकेले उत्तरी अमेरिका में, प्रबुद्ध इमारतों और टावरों के साथ टकराव में प्रति वर्ष 100 मिलियन पक्षी मर जाते हैं।

कछुओं के बच्चे रात की प्राकृतिक लाइट का इस्तेमाल कर समुद्र में जाते हैं। कृत्रिम लाइट के अत्यधिक उपयोग से दुर्घटना में इनकी मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है। कृत्रिम लाइट से कीड़ों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। एक अध्ययन के अनुसार कृत्रिम रोशनी की वजह से केवल जर्मनी में गर्मियों के मौसम में 100 अरब कीड़े मर जाते हैं।

कीट प्राकृतिक रूप से प्रकाश के लिए आकर्षित होते हैं और प्रकाश के स्रोत के पास रहने के लिए अपनी सारी ऊर्जा का उपयोग करते हैं। कृत्रिम प्रकाश उनके संभोग और प्रवास में हस्तक्षेप करता है और साथ ही उन्हें प्राकृतिक शिकारियों के लिए कमजोर बनाता है, जिससे उनकी आबादी कम हो जाती है। यह उन सभी प्रजातियों और पौधों को भी प्रभावित करता है जो भोजन या परागण(pollination) के लिए कीड़ों पर निर्भर हैं।

लाइट प्रदूषण को कम किया जा सकता है

ऐसा नहीं है कि इसे बिलकुल रोका नहीं जा सकता, अच्छी खबर यह है कि अन्य प्रदूषणों के विपरीत प्रकाश प्रदूषण को हम आसानी से रोक सकते हैं। कई लोग प्रकाश प्रदूषण को कम करने और प्राकृतिक रात के आकाश को वापस लाने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं। आउटडोर लाइटिंग का उपयोग केवल तभी करें और जब इसकी आवश्यकता हो, यह सुनिश्चित कीजिए कि बाहर लाइट कम से कम हो और आकाश में ऊपर जाने के बजाय प्रकाश जमीन की ओर पड़ रहा हो,और रात के समय खिड़की, ब्लाइंड, शेड और पर्दे को बंद करके प्रकाश बनाए रखें। जरूरत पड़ने पर ही प्रकाश व्यवस्था का उपयोग करें।

 

 

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