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स्त्रियों को महज़ एक बाजार उत्पाद बनाने में मीडिया का योगदान

स्त्रियों को महज एक बाजार उत्पाद बनाने में मीडिया का योगदान

देश के विकास के साथ मीडिया में भी नए बदलाव आए हैं। जहां मीडिया पहले देश के आंदोलन में एक प्रमुख भागीदार था, वो आज बदलकर महज़ एक व्यापार बन गया है। मीडिया के व्यापारीकरण के साथ ही उसके सिद्धांतों एवं उसका स्वरूप पूरी तरह बदल गया है।

जो मीडिया कभी स्त्रियों के हक में बात करती थी, आज उसने ही स्त्रियों का प्रयोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए करना प्रारम्भ कर दिया । स्त्रियों ने इस बारे में नहीं सोचा कि दरअसल, जिसे उन्होंने अपना उत्थान समझा वो उनके ही विरुद्ध कार्य करेगा। विज्ञापनों ने अपने उत्पादों के विक्रय के लिए स्त्रियों के अंगों का प्रदर्शन करना प्रारम्भ किया कर दिया है।

इस व्यवस्था से स्त्रियों को आर्थिक रूप से बल तो मिला परन्तु, वो एक उत्पाद बनकर रह गईं । जिसका प्रयोग मीडिया अपने हक में करने लगा। आजकाल ज्यादातर न्यूज चैनल स्त्रियों को अपने मुख्य चेहरे के रूप में प्रस्तुत करते हैं, ताकि अधिक से अधिक लोग उनके न्यूज चैनल की तरफ आकर्षित हों। स्त्रियों को उनके पुरुष सहकर्मियों के समकक्षों के समान वेतन भी नहीं दिया जाता है। उन्हें वो काम दिए जाते हैं, जो उनके चैनलों के लिए अधिक संख्या में दर्शकों को आकर्षित करने का कार्य करें।

मीडिया का हमारे समाज पर प्रभाव

मीडिया ने हमारे समाज के सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह से प्रभावित किया है। सिनेमा में दिखाए जाने वाले गानों व उनके संवादों ने किस तरह से महिलाओं के प्रति समाज के व्यवहार को प्रभावित किया है, यह बात किसी से छुपी नहीं है। कई मंचों पर इसे स्वीकार करते हुए बॉलीवुड के अभिनेता एवं अभिनेत्रियों ने ये कहा कि उन्हें शर्म आती है कि उन्होंने महिलाओं के प्रति ऐसे व्यवहार को प्रोत्साहित किया जो वह स्वयं के लिए पसंद नहीं करेंगे।

मीडिया में दिखाई जाने वाली हर बात समाज में रहने वाले लोगों को प्रभावित करती है, यही कारण है कि आज हर एक व्यापारिक घराना किसी ना किसी रूप में मीडिया से जुड़ना चाहता है। मीडिया यदि चाहे तो किसी को भी रातों-रात हीरो बना सकता है और इसका उल्टा भी उतना ही सत्य है। आज लोग इस विषय में जागरूक हो रहे हैं और वो मीडिया को भी इस विषय में सोचने पर मजबूर कर रहे हैं।

मीडिया की वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भूमिका

मीडिया समाज के लिए एक आईने का काम करता है, यदि वही महिलाओं के प्रति इस तरह के गलत व्यवहार को बढ़ावा देगा तो समाज को शिक्षा देने का कार्य कौन करेगा? मीडिया ने महिलाओं को कभी मुख्य भूमिकाओं में दिखाया ही नहीं, जो समाज को संदेश देने के काम आ सकें। ऐसा नहीं है कि महिलाएं किसी काम में अपनी कमजोरियों का प्रदर्शन करती हों। कई ऐसी महिला पत्रकार हैं, जो आज उन बीहड़ इलाकों से रिपोर्टिंग करती हैं जहां पुरुषों को भी जाने से डर लगता है।

वर्तमान में समाज का सामाजिक ताना-बाना बदल रहा है, महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही हैं । वो समान कार्य के लिए , समान वेतन की मांग भी अब करने लगी हैं। कुछ परिवर्तन हुए हैं और अभी बहुत सारे परिवर्तनों के होने की दरकार है। मीडिया को यह समझना होगा कि यदि वह महिलाओं के प्रति गलत बर्ताव को बढ़ावा, अनजाने में ही सही अब तक देता रहा है तो अब वह इसे बदल भी सकता है।

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